बिहार के स्कूलों में यूं चल रहा है शिक्षकों का फर्जी हाजिरी का खेल!
यह फर्जीवाड़ा न केवल सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग है, बल्कि छात्रों के भविष्य के साथ खुला मजाक भी है। यदि समय रहते इस फर्जीवाड़े पर अंकुश नहीं लगाया गया तो आने वाली पीढ़ियों की शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो सकती है...

पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज डेस्क)। बिहार के सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता पर लंबे समय से सवाल उठते रहे हैं, लेकिन अब जो मामला सामने आया है, उसने पूरे तंत्र को कटघरे में खड़ा कर दिया है। राज्य भर में शिक्षकों के द्वारा फर्जी तरीके से उपस्थिति दर्ज कराने का खेल धड़ल्ले से चल रहा है। शिक्षक न केवल अपने दायित्व से बच रहे हैं, बल्कि तकनीकी खामियों का गलत इस्तेमाल कर पूरे सिस्टम को चकमा दे रहे हैं।
राज्य सरकार द्वारा शिक्षकों की उपस्थिति दर्ज करने के लिए विकसित की गई डिजिटल प्रणाली में अब बड़े स्तर पर धांधली सामने आ रही है। शिक्षकों को पर्सनल यूजर ID के माध्यम से उपस्थिति देनी होती है। लेकिन जब किसी शिक्षक को इसमें समस्या आती है, तो वे स्कूल की साझा ID का उपयोग कर अपनी फर्जी हाजिरी दर्ज कर लेते हैं।
सूत्रों के अनुसार, जिला शिक्षा कार्यालयों को ऐसे कई मामलों की शिकायत मिली है जहां शिक्षकों ने खुद उपस्थित हुए बिना अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। कुछ मामलों में तो हद यह हो गई कि महिला शिक्षिका की जगह पुरुष ने बायोमैट्रिक उपस्थिति दर्ज कराई!
एक और गंभीर मामला ‘मार्क ऑन ड्यूटी’ का है। कई शिक्षक लगातार स्कूल में बिना उपस्थित हुए इस विकल्प का इस्तेमाल कर रहे हैं। जांच में ऐसे हजारों शिक्षक चिह्नित हुए हैं, जो इस बहाने से साल भर में शायद ही कुछ दिन स्कूल गए हों।
इस फर्जीवाड़े में अब स्कूल के अन्य कर्मचारी भी शामिल होते दिख रहे हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार कुछ टोला सेवक, तालिमी मरकज, रसोइया और अन्य सहायक कर्मी, शिक्षकों की उपस्थिति दर्ज कराने के लिए पैसे लेते हैं। शिक्षकों का फोटो फोन में रखा होता है, जिसे कैमरे के सामने दिखा कर बायोमेट्रिक उपस्थिति दर्ज करा दी जाती है।
शिक्षा विभाग के उच्च अधिकारियों ने माना है कि यह गंभीर मामला है और लगातार शिकायतें मिल रही हैं। कुछ जिलों में ऐसे शिक्षकों की पहचान कर ली गई है, जो वर्षों से इस फर्जीवाड़े का हिस्सा बने हुए थे। विभाग ने संकेत दिए हैं कि अब कड़ी जांच के बाद दोषी शिक्षकों पर निलंबन और प्राथमिकी दर्ज करने जैसी कार्रवाई होगी।
जहां एक ओर बिहार सरकार शिक्षा सुधार की बात कर रही है। वहीं दूसरी ओर शिक्षक खुद ही इस व्यवस्था को खोखला कर रहे हैं। यह न केवल सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग है, बल्कि छात्रों के भविष्य के साथ खुला मजाक भी है। यदि समय रहते इस फर्जीवाड़े पर अंकुश नहीं लगाया गया तो आने वाली पीढ़ियों की शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो सकती है।