पटना। मामला खुद को सबसे बड़ा नरेंद्र मोदी विरोधी साबित करने का है। दिलचस्प है कि नोटबंदी अब मुख्य हथियार बन गया है। इस पूरे राजनीतिक खेल का मूल आम लोगों को हित से कितना जुड़ा है या फिर नहीं जुड़ा है, यह तो आने वाला वक्त बतायेगा लेकिन फिलहाल नोटबंदी का विरोध कर देश में सबसे बड़ा नरेंद्र मोदी विरोधी साबित करने की होड़ लगी है। इस खेल अथवा राजनीतिक उपक्रम में देश के दो मुख्यमंत्री दिल्ली के अरविन्द केजरीवाल और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी शामिल हैं। जबकि नीतीश कुमार के घोर विरोधी कहे जाने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस बार नोटबंदी का समर्थन कर खुद को इस रेस से अलग कर लिया है।
सबसे दिलचस्प यह है कि ममता बनर्जी का सहयोग कर राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने एक तरफ यह साबित कर दिया है कि भले ही उनकी पार्टी के विधायक दल की बैठक में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भाग लेते हैं, लेकिन सैद्धांतिक तौर पर होता वही है जो वे स्वयं चाहते हैं। इसका एक दूसरा पहलू यह भी है कि लालू प्रसाद ने ममता बनर्जी को सपोर्ट देकर नीतीश कुमार को यह भी बता दिया है कि नरेंद्र मोदी के विरोधियों में ममता बनर्जी उनसे कहीं अधिक आगे हैं।
हालांकि इस पूरे खेल का सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि राजद के दूसरी श्रेणी के नेताओं ने भले ही ममता बनर्जी के साथ मंच साझा कर और अच्छी खासी संख्या में कार्यकर्ताओं को जुटाकर नोटबंदी के सवाल पर अपना समर्थन सुश्री बनर्जी को दे दिया लेकिन इस कार्यक्रम में लालू प्रसाद या पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी या फिर उनके दोनों मंत्री पुत्र नजर नहीं आये। इसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि श्री प्रसाद नीतीश कुमार के साथ अपने रिश्ते यानी महागठबंधन को बनाये रखना चाहते हैं।
बहरहाल मामला नोटबंदी के विरोध का भी है। ममता बनर्जी ने नीतीश कुमार के गढ़ में घुसकर न केवल नरेंद्र मोदी को ललकारा बल्कि स्वयं नीतीश कुमार को भी संकेत दे दिया। उन्होंने कहा कि नोटबंदी गरीबों और वंचितों से जीने के अधिकार का हनन कर रहा है और इसका समर्थन करने वाले तानाशाही व्यवस्था के पोषक हैं। वैसे सबसे दिलचस्प यही है कि ममता बनर्जी ने एक के बाद एक कार्यक्रम कर वामपंथी दलों को भी आइना दिखा दिया है कि जनपक्षीय मुद्दों को लेकर लड़ने में वे उनसे किसी भी मायने में कम नहीं हैं।