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बिहार में सता समीकरण के नये फूल, नीतीश फिर तेजस्वी संग चलाएंगे यूं सरकार

“बिहार की राजनीति के गेंद फिर नीतीश कुमार के पाले में है। यह आने वाले समय में ही पता चलेगा कि पाटलिपुत्र से हस्तिनापुर की दौड़ में वे हैं या नही….

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पटना (जयप्रकाश नवीन)। बिहार में पिछले तीन दिन से जारी राजनीतिक आशंका के बादल छंट चुका है। तस्वीर सामने आ चुकी है। सावन की हरियाली के बीच बिहार में सता समीकरण के नये फूल खिल रहे है।

सीएम नीतीश कुमार एक बार फिर से भतीजे तेजस्वी के साथ सरकार बनाने जा रहें हैं। जदयू से तलाक के बाद बीजेपी में मुहर्रम का मातम मचा हुआ है। बीजेपी के कोटे के मंत्री सता से बेदखल पर मातम में हैं। नीतीश कुमार पर जनादेश का गला घोंटने का आरोप लगा रहें हैं। नैतिकता का पाठ पढ़ाने में लगें हुए हैं।

सीएम नीतीश कुमार के बारे में कहा जाता है कि जो वह काम बाएं हाथ से करते हैं उसकी खबर दाएं हाथ को भी नहीं होती है। यही कारण है कि कभी -कभी राजनीतिक पंडित भी उनके निर्णय से मात खा जाते हैं। उनकी भविष्यवाणी असफल रहती है। कुछ ऐसी अटकलें फिर से राजनीतिक गलियारे में उठने लगी है।

नीतीश कुमार ने बीजेपी से अपने रिश्ते खत्म कर मंगलवार को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर बीजेपी खेमें में खलबली मचा दी है। वे तेजस्वी के साथ मिलकर फिर से बिहार के मुख्यमंत्री बनने जा रहे।

नीतीश कुमार ने यह फैसला तब लिया है जब उनकी सरकार गिराने की साज़िश का आरोप लग रहा था। उन्होंने बीजेपी को झटका दिया है, कि राजनीति का कोई चाणक्य है तो नीतीश कुमार ही है।

वैसे देखा जाए तो  बिहार में सता समीकरण के नये फूल खिलने की पृष्ठभूमि तो अप्रैल महीने में ही शुरू हो गई थी। राजद द्वारा दिए गए इफ्तार पार्टी में उनका जाना,लालू परिवार के सदस्यों के साथ बैठना, बातचीत करना भाजपा को बेचैन कर गया था।

अप्रैल माह में जितनी गर्मी पड़ रही थी उससे ज्यादा तापमान बिहार की राजनीति में सुलग रहा था। सीएम नीतीश कुमार के राजद के इफ्तार पार्टी में शामिल होने के बाद से बिहार की राजनीति हलचल तेज हो गई थी। पटना से दिल्ली तक उनके इस फैसले से सब चौंक से गये थें।

भले ही इफ्तार पार्टी में शामिल होने के राजनीतिक मायने नहीं थें। लेकिन सब जानते हैं कि राजनीति में ऐसे बहानों के बीच बहुत कुछ बदलता है।

सियासी गलियारे में तब भी खबरें छन कर आ रही थी कि उसके अनुसार लगभग तय हो चुका था कि आने वाले कुछ हफ्तों के अंदर वे किसी दूसरी भूमिका पर काम करेंगे।

देखा जाए तो पिछले कुछ माह से एनडीए के नेताओं द्वारा बयानबाजी,सीएम पद को लेकर अटकलें लगती रही है। यह बात उच्च स्तरीय राजनीतिक हलकों में बिल्कुल साफ हो गई थी। कुछ करीबी मित्रों को भी सुशासन बाबू ने इशारे से यह बता दिया कि आने वाले कुछ हफ्तों के अंदर ही वे अपनी दूसरी भूमिका पर काम शुरू करेंगे।

मुख्यमंत्री बनने का उनका सपना पूरा हो गया। बिहार में सबसे लंबी अवधि तक मुख्यमंत्री बनने का सपना भी पूरा हुआ। श्री कृष्ण सिंह से लेकर लालू प्रसाद तक के सभी का रिकॉर्ड उन्होंने तोड़ दिया।

दूसरी और यह बात भी साफ हो गई है कि अब भगवा ब्रिगेड ने उनका जीना मुश्किल कर दिया है। 42 सीटों के सहारे तेज आक्रमक सांप्रदायिक शक्तियों से मुकाबला संभव नहीं है। भगवा ब्रिगेड बेहद आक्रमक , हमलावर है और सहयोगी रूप में ही नए-नए दांवपेच दिखा रहा है।

पिछले महीने ही बीजेपी की ओर से मुख्यमंत्री के नये चेहरे के रूप में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय का नाम उछाल कर जदयू पर प्रेशर डाला गया था। नित्यानंद राय को बिहार में बीजेपी सीएम चेहरा बनाकर तेजस्वी यादव को पछाड़ने के लिए यादव मुख्यमंत्री का पासा फेंक कर वह कई शिकार करना चाह रही थी।

भाजपा नीतीश कुमार को केंद्र में उपराष्ट्रपति का पद देने‌ का भी लालच दे चुकी थी। ताकि  बिहार की उसकी राह आसान हो जाएं। क्योंकि बीजेपी की राह में नीतीश कुमार ही सबसे बड़ा रोड़ा हैं।

वैसे बीजेपी आरसीपी सिंह के बहाने  नीतीश कुमार को वह ‘राजनीतिक मौत’ देना चाह रहीं थीं जिसे सदियों याद रखी जाती। नीतीश कुमार शुरू से ही समाजवादी सोच के रहें हैं ऐसे में उनका लोहियावाद और मंडलवाद जाग जाना ही उनकी राजनीति पूंजी कहलाएगी, वर्ना उन्होंने जो पिछले 17-18 साल में बतौर मुख्यमंत्री जो राजनीतिक शौहरत कमाई है,वह एक झटके में खत्म भी हो सकती है।

सीएम नीतीश कुमार के राजद के दावत-ए-इफ्तार में जाना भी महज एक इतिफाक नहीं था। खुद तेजप्रताप यादव ने दस दिन पूर्व ही इसकी सूचना सार्वजनिक कर दी थी कि नीतीश चाचा का स्वागत है। अंदर खाने में काफी हद तक उनकी लालू प्रसाद से दोस्ती ताजा हो गई है।

देखा जाए तो सीएम नीतीश कुमार कुमार बिहार की राजनीति के ‘चाणक्य’ माने जाते हैं,वे अन्य राजनीतिज्ञो से कोसों दूर की सोच रखते हैं,कब विरोधी को चित करना और और कब दोस्ती कर लेनी चाहिए इसमें उन्हें महारथ हासिल है।

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