एक्सपर्ट मीडिया न्यूज डेस्क। विपक्षी गठबंधन की बुनियाद जब से पड़ी है, इसमें शामिल कम से कम तीन नेता तो अक्सर बिदकते रहे हैं। बैठक के पहले ही बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने कांग्रेस को औकात बताने के लिए पटना में बैठक की सलाह नीतीश को दी थी। कांग्रेस के इकलौते विधायक को टीएमसी में शामिल कराया। आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल तो ऐसे बिदके थे कि साझा प्रेस कॉन्फ्रेंस का बायकाट कर दिया। मध्य प्रदेश में अपनी उपेक्षा से समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव अब तक खफा हैं।
आगामी लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर बने विपक्षी इंडिया गठबंधन में दो दर्जन से अधिक दल शामिल हैं। इंडिया गठबंधन अपने साथ 26 दलों का दावा करता है तो एनडीए 38 पार्टियों का। गोलबंदी की दृष्टि से दोनों गठबंधनों में जबरदस्त जोर आजामाइश दिख रही है, लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है। यह हाल के संपन्न विधानसभा चुनावों से ही साफ हो गया है।
हालांकि विपक्षी गठबंधन में शामिल दल विधानसभा चुनावों के दौरान एकजुट नहीं रह पाए, जबकि एनडीए में ऐसी बात नहीं दिखी। अब लोकसभा में एकजुट रहने के लिए सभी विपक्षी दल बेताब हैं। चूंकि विपक्षी गठबंधन में एकजुटता का अड़ंगा कांग्रेस की ओर से ही आया हुआ था, इसलिए दलों के ‘दिल’ अभी तक नहीं मिल पाए हैं।
अखिलेश की नजर में कांग्रेस-भाजपा एक जैसीः समाजवादी पार्टी के नेता और यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव के मन से मध्य प्रदेश में कांग्रेस की ओर से की गई समाजवादी पार्टी की उपेक्षा अभी तक बैठी हुई है।
अखिलेश कहते हैं कि ईडी रेड पर कांग्रेस या दूसरे विपक्षी नेता भले कुछ भी बोले, लेकिन भाजपा वही काम कर रही है, जो कांग्रेस पहले सत्ता में रहने पर करती थी। यानी अखिलेश के मुताबिक कांग्रेस और भाजपा का चरित्र एक जैसा है। अखिलेश के इस रुख से संकेत मिलता है कि विपक्षी गठबंधन में वे भले शामिल हों, लेकिन उनको कांग्रेस पर भरोसा नहीं है।
ममता ने तो कांग्रेस का विधायक ही तोड़ लियाः कांग्रेस पर भरोसा नहीं करने वालों में अकेले अखिलेश ही नहीं है, बल्कि पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी भी कांग्रेस को ठेंगे पर रखती हैं। बंगाल से वाम दलों को मटियामेट करने के बाद ममता, कांग्रेस का नामलेवा भी बंगाल में नहीं रहने देना चाहती। इसका ज्वलंत उदाहरण तो उसी दिन सामने दिख गया था, जब वाम दलों के सहयोग से उपचुनाव जीत कर आए कांग्रेस के इकलौते विधायक को ममता ने अपनी पार्टी में शामिल कर लिया था।
ममता बनर्जी और तृणमूल के दूसरे नेता अक्सर कहते भी हैं कि उनके लिए भाजपा और कांग्रेस समान रूप से दुश्मन हैं। वाम दलों के हरा कर ही टीएमसी सत्ता में आई ती, इसलिए वाम दल को टीएमसी नेता देखना नहीं चाहते।
अरविंद केजरीवाल भी बात-बात में रूठते रहे हैः दिल्ली के सीएम और आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल फिलवक्त खुद आबकारी मामले में उलझे हुए हैं। उनके कई नेता इस मामले में गिरफ्तार भी हुए हैं। गिरफ्तारी की तलवार तो केजरीवाल पर भी लटक रही है।
विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के खिलाफ उम्मीदवार उतारने वालों में केजरीवाल की आम आदमी पार्टी भी थी। केजरीवाल भले अभी कांग्रेस के खिलाफ खुल कर बोल नहीं रहे, लेकिन उनका पहले से ही जैसा रुख रहा है, उसे देखते हुए उनके आगे विपक्षी गठबंधन में बने रहने पर संदेह ही बना हुआ है।
नीतीश कब बिदक जाएं कहना मुश्किलः बिहार के सीएम नीतीश कुमार की बात करें तो वे भी कांग्रेस के अब तक के रंग-ढंग से नाराज ही हुए हैं। कहने को तो उनकी नाराजगी विपक्षी एकता की दिशा में कांग्रेस की सुस्ती को लेकर है, लेकिन असली वजह दूसरी है। जिस तरह नीतीश साल भर से विपक्षी एकता के लिए दौड़ते-भागते रहे हैं और कड़ी मेहनत के बाद उन्होंने विपक्षी दलों को एक मंच पर जुटाया, उसका कोई लाभ उन्हें नहीं मिल पाया।
हालांकि उन्होंने प्रधानमंत्री बनने की अपनी इच्छा का भी दमन किया, लेकिन हवा में सियासी फिजा में तैरती उन्हें संयोजक बनाने की बात अमल में नहीं आ पाई। उल्टे विपक्षी एकजुटता का काम कांग्रेस ने अपने हाथ में ले लिया। इसलिए नीतीश कब बिदक जाएं कहना मुश्किल है।
विपक्षी वोटों के बंटवारे के लिए कई और दलः विपक्षी एकता का खेल बिगाड़ने के प्रयास में न सिर्फ इसमें शामिल दल हैं, बल्कि कई और विपक्षी दल भी हैं, जो इंडिया गठबंधन का खेल बिगाड़ सकते हैं। पूर्व सीएम मायावती की पार्टी बीएसपी, ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम, पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी, रामवचन यादव की कर्पूरी जनता दल और मुकेश सहनी की वीआईपी भी विपक्षी वोटों का बंटाधार करने के लिए मैदान में होंगी।
यह अलग बात है कि इनका जनाधार बड़ा नहीं है, लेकिन एक-एक, दो-दो प्रतिशत वोट भी उन दलों ने बर्बाद किए तो विपक्ष का बड़ा नुकसान हो सकता है।
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