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    Friday, April 26, 2024
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      जानिए, कौन हैं पद्मश्री छुटनी महतो, झेले हैं कितने सितम!

      "छुटनी महतो अभी 62 साल की है। उनकी शादी महज 12 साल की उम्र में गम्हरिया थाना के महतानडीह निवासी धनंजय महतो से हुई थी। उसके तीन बच्चे भी हैं। दो सितंबर 1995 को उसके पड़ोसी भोजहरी की बेटी बीमार हो गयी थी। उसके बाद........."

      एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क डेस्क।  इस साल केंद्र सरकार की ओर से देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों की घोषणा कर दी गयी है। वैसे हर साल मार्च या अप्रैल महीने में इसकी घोषणा की जाती है, लेकिन इस साल 25 जनवरी को ही पद्म पुरस्कारों के नामों की घोषणा कर दी गई है।

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      वैसे तो देश और विदेश के 141 लोगों को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिए जाने की घोषणा की गई है, लेकिन झारखंड की छुटनी महतो के नाम की घोषणा चौंकानेवाली है। छुटनी महतो एक संघर्ष की प्रतिमूर्ति है।

      छुटनी को यह सम्मान पहले ही मिल जाना चाहिए था, लेकिन देर ही सही भारत सरकार ने छुटनी के नाम की घोषणा इस साल पद्मश्री सम्मान के लिए कर दिया है।

      इधऱ छुटनी महतो के नाम की घोषणा होते ही सरायकेला-खरसावां जिले के लोगों के चेहरे खिल उठे। 72 वें गणतंत्र दिवस के मौके पर जिला वासियों को दोहरी खुशी मीली है।

      सुबह से ही सरायकेला- टाटा मार्ग पर स्थित भोलाडीह के बारबांस गांव में छुटनी को बधाईयां देनेवालों का तातां लगा रहा। कल तक गुमनाम संघर्ष करनेवाली छुटनी आज देश की आइकॉन बन चुकी थी।

      छुटनी ने बताया कि सम्मान मिलने की सूचना मिली तो कानों पर यकीं नहीं हुआ। फिर याद आया कि मोदी है तो मुमकिन है। सम्मान मिलने की जानकारी मिलते ही वे अपना पिछला सारा दर्द भूल गयीं।

      उन्होंने अंतिम सांस तक डायन प्रथा के उन्मूलन के लिए काम करने के जज्बे को खुद में जिंदा रखने के संकल्प को दोहराया और केंद्र और राज्य सरकार के साथ जिला प्रशासन एवं अपने शुभचिंतकों एवं संघर्ष के दिनों के साथी, खासकर मीडियाकर्मियों का शुक्रिया अदा किया।

      बातचीत के दौरान छुटनी कई बार भावुक हुई। वहीं छुटनी को बधाई देने पहुंचे खरसावां के पूर्व विधायक मंगल सिंह ने इसे गौरवशाली क्षण बताया और कहा कि सरायकेला- खरसावां जिवे डायन उन्मूलन की दिशा में अब नया अध्याय लिखेगा। उन्होंने केंद्र सरकार की सराहना की।

      वहीं भाजपा नेता शंभू मंडल ने छुटनी के संघर्ष के दिनों को याद करते हुए उन्हें संघर्ष की प्रतिमूर्ति बताया और भारत सरकार द्वारा छोटे से कस्बे की महिला को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिए जाने की घोषणा को एतिहासिक क्षण बताया।

      उन्होंने छुटना के सम्मान लेकर लौटने पर रांची एयरपोर्ट से ही स्वागत किए जाने की घोषणा की। वहीं छुटनी के बेटों ने अपनी मां का 21 वहीं सदी का मदर इंडिया बताया और कहा मां के संघर्षों को ताउम्र नहीं भूल सकता।

      तीसरी कक्षा की शिक्षा प्राप्त मां ने स्नातक तक हमलोंगों के सिर्फ इसलिए पढ़ाया, ताकि समाज से इस कुप्रथा को समूल नष्ट करने में मां का सहयोग कर सकूं। सभी ने भारत सरकार और झारखंड सरकार के प्रति आभार प्रकट किया।

      छुटनी डायन प्रथा के खिलाफ आंदोलन चलाती है। लोग उन्हें भी कभी डायन कप कर पुकारता थे, लेकिन डायन प्रथा के खिलाफ आंदोलन चलाने वाले समाजसेवी प्रेमचंद जी ने छुटनी महतो का पुर्नवास कराया और फ्री लीगल एड कमेटी (फ्लैक) के बैनर तले काम करना शुरू किया और अब भारत सरकार ने उनको पद्मश्री का अवार्ड देने का ऐलान कर दिया है।

      छुटनी महतो अभी 62 साल की है। उनकी शादी महज 12 साल की उम्र में गम्हरिया थाना के महतानडीह निवासी धनंजय महतो से हुई थी। उसके तीन बच्चे भी हैं।

      दो सितंबर 1995 को उसके पड़ोसी भोजहरी की बेटी बीमार हो गयी थी। लोगों को शक हुआ कि छुटनी ने ही कोई टोना टोटका कर दिया है। इसके बाद गांव में पंचायत हुई, उसको डायन करार दिया गया और लोगों ने घर में घुसकर उसके साथ बलात्कार करने की कोशिश की।

      छुटनी महतो सुंदर थी, जो अभिशाप बन गया था। अगले दिन फिर पंचायत हुई, पांच सितंबर तक कुछ ना कुछ गांव में होता रहा। पंचायत ने 500 रुपये का जुर्माना लगा दिया।

      उस वक्त किसी तरह जुगाड़ कर उसने 500 रुपये जुर्माना भरा। लेकिन इसके बावजूद कुछ ठीक नहीं हुआ। इसके बाद गांववालों ने ओझा-गुनी को बुलाया। छुटनी महतो को ओझा-गुनी ने शौच पिलाने की कोशिश की। उन्हें मानव मल पीने से यह कहा जा रहा था कि डायन का प्रकोप उतर जाता।

      जब उन्होंने मना कर दिया तो उसको पकड़ लिया गया और उनको मैला पिलाने की कोशिश शुरू की और नहीं पी तो उसके ऊपर मैला फेंक दिया गया। उनकी हत्या की योजना बनाई गई। चार बच्चों के साथ उनको गांव से निकाल दिया गया। उन्होंने पेड़ के नीचे अपनी रात काटी।

      वह विधायक चंपई सोरेन के पास भी गयी। वहां भी कोई मदद नहीं मिला, जिसके बाद उसने थाना में रिपोर्ट दर्ज करा दी। कुछ लोग गिरफ्तार हुए और फिर छूट गये, जिसके बाद जिंदगी और नरक हो गयी। छुटनी मायके आ गयी।

      मायके में भी लोग डायन कहकर संबोधित करने लगे और घर का दरवाजा बंद करने लगे। भाईयों ने बाद में साथ दिया। पति भी आये, कुछ पैसे की मदद पहुंचाई, भाईयों ने जमीन दे दी, पैसे दे दिये और छुटनी मायके में ही रहने लगी।

      पांच साल तक वह इसी तरह रही और ठान ली कि वह डायन प्रथा के खिलाफ लड़ेंगी। 1995 में उसके लिए कोई खड़ा नहीं हुआ था, उसकी सुंदरता के कारण लोग उसको हवस का शिकार बनाना चाहते थे।

      लेकिन उसने किसी तरह फ्लैक के साथ काम करना शुरू किया और फिर उसको कामयाबी मिली और कई महिलाओं को डायन प्रथा से बचाया। अब तो वह रोल मॉडल बन चुकी है।

      छुटनी ने इस कुप्रथा के खिलाफ ना केवल अपने परिवार के खिलाफ जंग लड़ा बल्कि 200 से भी अधिक झारखंड, बंगाल, बिहार और ओडिशा की डायन प्रताड़ित महिलाओं को इंसाफ दिला कर उनका पुनर्वासन भी कराया।

      ऐसी बात नहीं है, कि छुटनी को इसके लिए संघर्ष नहीं करने पड़े। लेकिन छुटनी तो छुटनी थी। धुन की पक्की छुटने कभी खुद को असहज महसूस होते नहीं देखना चाहती थी। जिसने जब जहां बुलाया छुटनी पहुंच गई और अकेले इंसाफ की लड़ाई में कूद गई।

      उसके इसी जज्बे को देखते हुए सरायकेला- खरसावां जिले के तत्कालीन उपायुक्त छवि रंजन ने डायन प्रताड़ित महिलाओं को देवी कह कर पुकारने का ऐलान किया था। हालांकि छुटनी को सरकारी उपेक्षाओं का दंश झेलना पड़ा।

      आज भी छुटनी वीरबांस में डायन रिहैबिलिटेशन सेंटर चलाती है, लेकिन सरकारी मदद न के बराबर उसे मिलती है। देर सबेर ही सही भारत सरकार की ओर से छुटनी को इस सम्मान से नवाजा गया जो वाकई छुटनी के लिए गौरव का क्षण कहा जा सकता है।

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