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सर्वमान्य नहीं हो सकता है 1932 का खतियान, हेमंत सरकार ने ‘स्थानीयता’ के मुद्दे से सिर्फ पीछा छुड़ाया

राँची (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)।  झारखंड के  पूर्व विधायक सूर्य सिंह बेसरा ने 1932 के खतियान पर स्थानीय माने जाने के झारखंड सरकार के विधेयक से नाराजगी जतायी है। दिल्ली प्रवास पर आज उन्होंने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि केवल 1932 के खतियान के आधार पर “स्थानीय व्यक्ति” को परिभाषित करना सर्वमान्य नहीं हो सकता है। झारखंड राज्य के अंतर्गत 1932 के पहले तथा इसके बाद भी विभिन्न समयों में अलग-अलग जिले में अंतिम सर्वे सेटेलमेंट हुआ है।

अविभाजित सिंहभूम में 1964 में अंतिम सर्वे सेटेलमेंट हुआ। इसी तरह 1935, 1938, 1977, 1981 एवं 1994 में अंतिम सर्वे सेटेलमेंट हुआ है। संविधान के अनुच्छेद -16( 3 )के तहत “लोक नियोजन” विषय पर “स्थानीय नीति” निर्धारित करने का अधिकार केवल संसद को ही है। हेमंत सरकार ने झारखंड की “स्थानीय नीति” को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव केंद्र के पाले में भेजकर अपना पीछा छुड़ा लिया है।

लोक नियोजन विषय पर “स्थानीय नीति” परिभाषित करने का अधिकार केवल संसद को है। संविधान के अनुच्छेद-16(3) के तहत केवल संसद ही इस पर फैसला करेगा। स्थानीयता में अधिवास शब्दों का प्रयोग किया गया है जो भारतीय नागरिकता के बारे में प्रावधान है। यह सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के प्रतिकूल है।

संविधान के अनुच्छेद- 371(d) आंध्र प्रदेश के संबंध में विशेष उपबंध के तर्ज पर झारखंड की “स्थानीय नीति” नहीं है। वर्तमान में केंद्र में भाजपा गठबंधन की सरकार है। यह अहम प्रश्न है कि क्या नरेंद्र मोदी की सरकार संसद से इस विधेयक को पारित कर संविधान के नौवीं अनुसूची में शामिल करा पाएगी। ऐसे में तब तक झारखंड में “स्थानीय नीति” लागू नहीं होगी।

बेसरा ने यह भी प्रश्न उठाया है कि झारखंड विधानसभा के विशेष सत्र में पारित विधेयक में झारखंड का “स्थानीय व्यक्ति” कौन होगा, यह तय हो। इसके संदर्भ में “अधिवास” यानी संविधान के अनुच्छेद- 5 का जिक्र किया गया है, जिसमें भारत के नागरिकता का प्रावधान है। अगर यह नियम बन जाए तो यूं ही मान लिया जाए कि इस प्रकार की “स्थानीय नीति” सुप्रीम कोर्ट के 9 जनवरी 2002 को न्यायमूर्ति बीएन खरे और बीएन अग्रवाल की खंडपीठ में दिए गये ऐतिहासिक फैसले के उलट होगा।

इस जजमेंट के मुताबिक “कोई भी भारतीय नागरिक हर किसी राज्य का “स्थाई निवासी” नहीं हो सकता है। अतः वर्तमान झारखंड की “स्थानीय नीति” संविधान के अनुच्छेद -5 अर्थात (अधिवास) के आधार पर  “स्थानीयता नीति” बनाना पूर्ण रूप से  असंवैधानिक है।

बेसरा ने स्थानीय नीति पर हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली महागठबंधन सरकार के फैसले को  दूरदर्शिता की कमी बताया है। साथ ही इस विधेयक में बड़ी खामियां और त्रुटियां रहने की भी बात कही है। इस पर पुनर्विचार कर उसे अविलंब संशोधित करने और और संकल्प प्रस्ताव के साथ अध्यादेश जारी करते हुए उसे तत्काल लागू करने को कहा है। अन्यथा राज्य की जनता इस विधेयक के खिलाफ व्यापक जन आंदोलन कर वर्तमान राज्य सरकार की “स्थानीय नीति” को बदलेगी।

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