महिलाओं की आत्मनिर्भरता और मनरेगा के संगम से बंजर भूमि निहाल हो उठी…
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क ( नारायण विश्वकर्मा)। जी हां! ये सच कर दिखाया है कुछ मेहनतकश ग्रामीण महिलाओं ने। सही मार्गदर्शन मिल जाए और मन में लगन हो तो पत्थर में भी फूल खिल उठते हैं।
लातेहार के मनिका प्रखंड के जान्हो गांव की नौ महिलाओं ने बंजर जमीन में आम के फलों से गुलजार कर दिया है।
अभी देश में मनरेगा और आत्मनिर्भरता पर काफी जोर है। महिलाओं ने दोनों को साकार कर दिया है। महिलाओं को ये मौका मनरेगा से संचालित बिरसा मुंडा आम बागवानी योजना ने दिया है।
जान्हों गांव की बैइरटांड टोला की रहनेवाली रीता देवी, सारो देवी, शकुंतला देवी, करमी देवी, आसपतिया देवी, सुमीता देवी, जरनी देवी, मुनी देवी, यशोदा देवी सहित अन्य महिलाओं ने मनरेगा के साथ जुड़ कर अपने गांव की बंजर जमीन को आम के बागानों से पाट दिया है।
2016 से आम की बागवानी शुरू की
इस गांव की महिलाओं ने मनरेगा के तहत कुछ किसानों को गुमला की आम बागवानी के पैच दिखाये गये। इससे प्रेरित होकर इस गांव की महिलाओं ने आम की बागवानी करने की छानी।
2016 में आयोजित ग्रामसभा ने जान्हों गांव के बैराटांड में आम बागवानी के लिए प्रस्ताव पारित किया। योजना पारित होने के बाद सीएफटी को कार्यान्वयन करने वाली संस्था मल्टी आर्ट एसोसिएशन और एसपीडब्लूडी की तकनीकी टीम ने उन्हें कई तरह की मदद पहुंचाई और उन्हें प्रशिक्षण भी दिया।
इसके परिणामस्वरूप 9 एकड़ बंजर भूमि में इस गांव की नौ महिलाओं ने अपने कंधे पर बिरसा मुंडा आम बगवानी को सफल करने की जवाबदेही ली।
सब्जी की खेती से भी आमदनी बढ़ी
आम बागवानी के बाद सभी किसानों को इंटर क्रोपिंग के लिए प्लांडू और बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में संस्था द्वारा परिभ्रमण के बाद प्रशिक्षण भी दिया गया।
इसके बाद इस पैच के लगभग सभी लाभुकों ने सब्जी की खेती शुरू की। इससे प्रत्येक वर्ष 70 से 80 हजार रुपये तक आमदनी होने लगी, इससे महिलाओं के हौसले और बढ़ गए।
अच्छी बात यह रही कि ये सब्जी पूरी तरह से आर्गेनिक थी। इसके साथ ही साथ इस पैच में जुलाई 2019 से पालमारोजा घास की खेती भी की गयी।
इस घास की पेराई कर लगभग 2 लाख रुपये तक का पालमारोजा का तेल बेचा गया। महिलाओं ने ओल की खेती भी शुरू की है।
जान्हों आम बागवानी पैच में वर्तमान में करीब 15 से 20 क्विंटल फसल देनेवाली आम्रपाली और मल्लिका प्रजाति के आम पौधे के लगे हुए हैं। आम की फसल छोटी-छोटी टहनियां धरती को छू रही है। जान्हो बिरसा मुंडा आम बागवानी के पैच में आम के फलों को देखकर अनायास ही आपके मुंह में पानी आ जायेगा।
सच कहा जाये तो जान्हो गांव में 9 महिलाओं ने निराश झारखंडी ग्रामीण समुदाय को आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ाने का रास्ता दिखाया है। अत्यंत सीमित संसाधन में बेहतर कर पाना ही आत्मनिर्भरता की निशानी है।
छह सालों में पलायन रूक गया
यह गांव और गंवई लोग अपने संघर्ष की बदौलत 2016 में बिरसा मुंडा आम बागवानी मनरेगा योजना के तहत शुरुआत की थी।
वर्तमान में इन पौधों में आम की फसल आ गयी है। इससे किसान काफी खुश हैं। आम बागवानी में सब्जी के साथ ओल भी लगाना शुरू किया है।
इस बागवानी से किसान की आमदनी बेहतर हो गयी है। किसानों के संघर्ष की इस मुहिम में दर्जनों स्टेक होल्डरों ने काफी मदद की। आज इस टोले के लोगों को संघर्ष के बाद जो आम के फल मिल रहे हैं इसके कारण आम की मिठास दोगुनी हो गयी है।
इन महिलाओं को अगर राज्य सरकार की ओर से मदद मिले तो बागवानी के क्षेत्र में ये और भी आगे जा सकती हैं। पलामू प्रमंडल के सैकड़ों गांवों को इन महिलाओं के साथ जोड़ा जाये कई लोग आत्मनिर्भर बन सकते हैं।