“झारखंड के पांचवें सीएम के तौर पर कोड़ा ने 2006 में कुर्सी संभाली थी। वे करीब तीन साल तक सीएम रहे। उस वक्त वह निर्दलीय विधायक थे।”
चुनाव आयोग ने उक्त कार्रवाई चुनावी खर्च का सही हिसाब नहीं देने के मामले में की है। यह मामला वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव से जुड़ा है। मधु कोड़ा तब चाईवासा लोकसभा क्षेत्र से चुनाव जीते थे।
चुनाव आयोग ने अक्टूबर 2010 में उन्हें नोटिस जारी कर पूछा था कि चुनावी खर्च का सही तरीके से ब्योरा नहीं देने पर क्यों आपको अयोग्य घोषित कर दें।
चुनाव आयोग को मधु कोड़ा ने इसका कोई संतोषजनक जबाव देने में विफल रहे। चुनाव आयोग के अनुसार उनका वास्तविक चुनाव खर्च 18 लाख 92 हजार 353 रुपए था, जबकि उन्होंने इससे कहीं कम खर्च दिखाया था।
अपने 49 पेज के आदेश में चुनाव आयोग ने कहा है कि कोड़ा द्वारा जमा करवाया गया ब्योरा झूठ और गलत था।
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मधु कोड़ा ने झारखंड के पांचवें सीएम के तौर पर 14 सितंबर 2006 को कुर्सी संभाली थी। जो 27 अगस्त 2008 तक 709 दिन चली। मुख्यमंत्री बनते समय वह निर्दलीय विधायक थे।
कोड़ा का संबंध राजनीति के शुरुआती दौर में आरएसएस से भी रहा था। झारखंड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की सरकार में वह पंचायती राज मंत्री थे।
2003 में अर्जुन मुंडा की सरकार में भी उन्हें यही विभाग मिला। 2005 के विधानसभा चुनाव में भाजपा से टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने बागी बनकर निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीते।
उस समय किसी दल को बहुमत नहीं मिलने पर उन्होंने बीजेपी के नेतृत्व वाले अर्जुन मुंडा सरकार को समर्थन दिया। सितंबर 2006 में कोड़ा और 3 अन्य निर्दलीय विधायकों ने मुंडा सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया, जिससे सरकार गिर गई।
इसके बाद यूपीए ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया, उनकी सरकार को राजद, कांग्रेस और झामुमो सहित निर्दलीयों का समर्थन हासिल था।