‘जो दुश्मन के हौसले तोड़ कर आया, वो है भारत का सैनिक महान। कारगिल से जिसने दुश्मन को भगाया, वही है भारत का फौजी जवान।।’
पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। आज देश के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना कारगिल युद्ध की 24वीं विजय दिवस है। इस दिन हम उन बहादुर सैनिकों को याद करते हैं और उनका सम्मान करते हैं, जिन्होंने 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान हमारे प्यारे देश की संप्रभुता की रक्षा करते हुए बहादुरी से लड़ाई लड़ी थी।
कारगिल युद्ध सिर्फ दो देशों के बीच का संघर्ष नहीं था, यह हमारे देश की ताकत, एकता और लचीलेपन की परीक्षा थी। हमारे सैनिकों को कठिन इलाकों, खराब मौसम और दृढ़ दुश्मन से जूझते हुए अत्यधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा।कारगिल की बर्फीली चोटियों से घुसपैठियों को बाहर निकालने के लिए लड़ते समय उन्होंने अटूट साहस और अदम्य भावना का परिचय दिया।
ऐसे ही एक जांबाज सैनिक थे चंडी प्रखंड के ढकनिया गांव के थल सेना के हवलदार सत्येन्द्र सिंह,जो 72 घंटे के ड्राइ राशन के साथ युद्ध के मैदान में डटे हुए थें। कारगिल युद्ध के 24 साल बाद भी उस युद्ध की तस्वीरें धुंधली नहीं हुई है।
सत्येंद्र सिंह ‘आपरेशन मेघदूत’ का हिस्सा बनें। उन्होंने कारगिल और सियाचीन दोनों क्षेत्रों में हुए युद्ध में हिस्सा लिया था।
कारगिल युद्ध के पहले हवलदार सत्येन्द्र सिंह जोधपुर में 501लाईट एडी मिसाइल रेजिमेंट यूनिट में पोस्टेड थे। 5 जून,1999 की शाम को सीओ ने फॉलिग का आदेश दिया। इसी दिन शाम को बार्डर पर जाना है।
रेडी फॉर मूव का आदेश आने के बाद वह छह घंटे में पूरी रेजिमेंट कान्वे के साथ तैयार हो गये।वह उस रात को याद करते हुए बताते हैं कि रात नौ बजे यूनिट देश की रक्षा करने के इरादे से निकल पड़ी।
राजस्थान बार्डर पर पहुंचने के दौरान स्थिति इतनी गंभीर थी कि कान्वे की हेडलाइट आफ थी।यूनिट के सभी जवान अंधेरे में रास्ता तय कर रहें थे। इसी दौरान सुखविंदर सिंह नामक एक जवान दो गाड़ियों में दबकर शहीद हो गया। जिसकी जानकारी यूनिट को सुबह मिली।उसके शहादत पर पूरी यूनिट ने दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि दी।
रात के तीन बजे सत्येंद्र सिंह अपने यूनिट के साथ राजस्थान के मौकिल चौकी पहुंचे जहां सभी ने अपनी पोजिशन ली। सत्येन्द्र सिंह राजस्थान और पंजाब के बार्डर पर डटे रहे।
वे कहते हैं कि जिस स्थान पर वे तैनात थे वहां से भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, तुर्किस्तान और चीन का बार्डर मिलता था। शून्य से भी नीचे तापमान पर सत्येंद्र सिंह दूर दूर तक काली रात के सन्नाटे में वायरलेस आपरेट कर पाकिस्तानी हवाई जहाज के मूवमेंट की जानकारी प्रदान कर रहे थे।
सत्येन्द्र सिंह उन दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि उनके पास हैवी आर्टलरी मशीनगन थी जिसे लेकर पहाड़ पर चढ़ना काफी मुश्किल होता था। लेकिन दुश्मन द्वारा रास्ता खोलने की यदि हिमाकत करें तो,उसका मुंहतोड़ जबाव देना जरूरी था। इसलिए वे सभी चौकन्ने रहते थे।
जब वे रवाना हुए थे, तब उनके पास महज 72 घंटे का ड्राइ राशन था। बड़ी संख्या में सैनिक एक ही चूल्हे पर खाना खाते थे,कभी भूखे भी रह जाते थें। आपरेशन मेघदूत के पूरा होने के बाद भी सत्येंद्र सिंह 25नवंबर,1999 तक बार्डर पर डटे रहे थे।
1 सितंबर,2002 को थल सेना से अवकाश प्राप्त करने के बाद सत्येंद्र सिंह जमशेदपुर के जुगसलाई के गोशाला रोड में रह कर समाजिक कार्यों में जुड़ गए। जुगसलाई में उनका बड़ा नाम है। वे लोगों, सामाजिक संगठनों, अफसरों के बीच काफी लोकप्रिय रहे हैं।
उन्होंने अपने जुझारू पन से स्वास्थ्य सेवाओं, नगर की सुंदरता के लिए काफी कार्य किए हैं। स्थानीय सांसद के हाथों कई बार सम्मानित भी हो चुके हैं।
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