दिव्यांग शिक्षक ने खोली MDM में गड़बड़ी की अनोखी पोल, देख लें प्रमाण
यह मामला केवल एक दिव्यांग शिक्षक की पीड़ा नहीं, बल्कि एक समूची व्यवस्था के निष्क्रिय होने का संकेत है। जब प्रमाण होने के बाद भी कार्रवाई न हो तो यह सवाल उठाता है कि आखिर जिम्मेदार कौन है? शिक्षा विभाग को इस मामले को गंभीरता से लेते हुए पारदर्शी और कड़ी जांच की दिशा में तुरंत पहल करनी चाहिए....

पटना/धनरूआ (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। पटना जिले अंतर्गत धनरूआ प्रखंड के मध्य विद्यालय में कार्यरत दिव्यांग शिक्षक चंद्रमणि कुमार ने विद्यालय में व्याप्त मध्यान्ह भोजन योजना (MDM) की गंभीर अनियमितताओं और भ्रष्टाचार का खुलासा करते हुए खुद को लगातार प्रताड़ित किए जाने का आरोप लगाया है।
चंद्रमणि कुमार, जो कि ट्राई साइकिल से स्कूल आने वाले एक विशिष्ट शिक्षक हैं, उन्होंने बताया कि विद्यालय के प्रभारी प्रधानाध्यापक अनिल कुमार एमडीएम रिपोर्ट के ब्लैंक फॉर्मेट पर हस्ताक्षर करने का दबाव बनाते रहे हैं। विरोध करने पर उन्हें हस्ताक्षर से वंचित कर दिया गया और गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी भी दी गई।

उन्होंने इस मामले की लिखित सूचना पटना जिला शिक्षा पदाधिकारी (डीईओ) और धनरूआ प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी (बीईओ) को भी दी है। बावजूद इसके अधिकारियों द्वारा कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई। श्री कुमार ने बताया कि डीपीओ अमृत कुमार को उन्होंने व्यक्तिगत रूप से मैसेज कर इस बारे में अवगत कराया था।
निरीक्षण में भी अनदेखीः 7 मई 2025 को प्रखंड मध्यान्ह भोजन प्रभारी गौतम विद्यालय में निरीक्षण के लिए आए। लेकिन शिकायतकर्ता की बात सुनने से उन्होंने परहेज़ किया। चंद्रमणि कुमार के अनुसार उन्होंने निरीक्षण अधिकारी को ब्लैंक फॉर्मेट पर हस्ताक्षर का प्रमाण भी सौंपा, जिसे उन्होंने नजरअंदाज कर दिया।

चंद्रमणि कुमार ने प्रभारी प्रधानाध्यापक अनिल कुमार पर कई गंभीर अनियमितताओं के आरोप लगाए हैं। जिनमें मेनू के अनुसार बच्चों को भोजन न देना, दाल में अत्यधिक पानी, सब्जी व अंडा की जगह अधपके केले देना, बच्चों को ज़मीन पर बैठाकर भोजन कराना, छात्रवृत्ति और कंप्यूटर शिक्षा से छात्रों को वंचित करना, शिकायत करने पर उन्हें जलील करना और बच्चों को नामांकन रद्द कर देने की धमकी देना, छात्रों को फल-अंडा वितरित नहीं करना, 75% से अधिक उपस्थिति वाले छात्रों को छात्रवृत्ति से वंचित करना शामिल हैं।
चंद्रमणि कुमार का कहना है कि पूर्व में भी संबंधित प्रधानाध्यापक का रिश्वत लेते हुए वीडियो वायरल हुआ था। लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। अब जबकि वे अगले वर्ष सेवानिवृत्त होने वाले हैं। ऐसे में जांच न होने की स्थिति में वे बच निकल सकते हैं।

चंद्रमणि कुमार ने यह स्पष्ट किया है कि यदि समय रहते कोई उच्चस्तरीय जांच नहीं की गई तो उनकी जान को खतरा हो सकता है। उन्होंने अधिकारियों से त्वरित और निष्पक्ष कार्रवाई की मांग की है।
बहरहाल, यह मामला केवल एक दिव्यांग शिक्षक की पीड़ा नहीं, बल्कि एक समूची व्यवस्था के निष्क्रिय होने का संकेत है। जब प्रमाण होने के बाद भी कार्रवाई न हो तो यह सवाल उठाता है कि आखिर जिम्मेदार कौन है? शिक्षा विभाग को इस मामले को गंभीरता से लेते हुए पारदर्शी और कड़ी जांच की दिशा में तुरंत पहल करनी चाहिए।