“इस वायरल वीडियो की पड़ताल करने पर पता चला कि यह वीडियो घाघीडीह मंडल भाजपा उपाध्यक्ष कृष्णा पात्रो द्वारा मुखिया लक्ष्मी सोय को बदनाम करने की नीयत से बनाया गया है…
✍️संतोष कुमार
वैसे इस वीडियो के द्वारा सरकार और जिला प्रशासन को बदनाम करने की नीयत से एक फर्जी प्रयास किया जा रहा है, जिसमें बागबेड़ा थाना अंतर्गत सोमाय झोपड़ी की रहने वाली एक आदिवासी महिला अनीता मुंडारी को घास काटकर अपना और अपने बच्चों का पेट भरने का दावा किया जा रहा है।
इस वीडियो में बताया जा रहा है कि महिला के घर में 4 दिन से चूल्हा नहीं जल रहा और यही कारण है कि महिला घास काटकर बना रही खाना और मासूम बच्चों को खिला रही घास। इसमे यह भी जिक्र किया गया है कि 21 दिन के लॉक डाउन से आदिवासी महिला का हाल बेहाल है।
जबकि मुखिया लक्ष्मी सोय का दावा है कि महिला को 10 किलो अनाज उपलब्ध कराया गया है। वहीं ये भी जानकारी मिली है कि महिला का पति दिहाड़ी मजदूर है और उसके पास लाल कार्ड नहीं है।
ऐसे में इस तरह की खबरों को दुष्प्रचारित करने के पीछे की मंशा क्या है इसकी कड़ाई से जांच होनी चाहिए। वहीं यह भी पता चला है कि महिला भाजपा नेता के मकान में किराए पर रहती है। वैसे इसके पीछे कुछ पत्रकारों की भूमिका भी सवालों के घेरे में है उसकी भी जांच होनी चाहिए।
सवाल नंबर दो जैसा कि आपने महिला से सवाल किया है कि आपके पास राशन कार्ड नहीं है। जिसका जवाब महिला ने ना में दिया। आप एक जनप्रतिनिधि हैं, महिला आपके यहां किराए में रहती है और उस वक्त आपकी स्थानीय विधायक भी भाजपा से रह चुकी है, तो आपने उसका राशन कार्ड क्यों नहीं बनवाया ?
तीसरा महत्वपूर्ण सवाल वैश्विक महामारी जैसी विषम परिस्थिति के दौरान एक जनप्रतिनिधि होने के नाते क्या आप की नैतिक जिम्मेदारी नहीं बनती है, कि अगर महिला घास बना कर अपना और अपने बच्चों का पेट पाल रही है तो आप उन्हें सब्जी वगैरह खरीद कर दे सकें। या स्थानीय प्रशासन या जनप्रतिनिधियों को पूरे मामले से अवगत कराते।
मतलब साफ है कि आपने एक आदिवासी महिला के नाम पर वीडियो वायरल कर ओछी राजनीति करने का प्रयास किया और झारखंड सरकार को बदनाम करने का षड्यंत्र रचा है।
सबसे अहम सवाल उन मीडियाकर्मियों एवं संस्थानों से जिन्होंने क्रिएट किए गए खबर पर बगैर पड़ताल किए प्रमुखता से दिखाने का काम किया।
क्या इस वैश्विक महामारी के दौर में भी अपनी संवेदनाओं को मार दिया। क्या पत्रकारिता धर्म इसकी इजाजत देता है ? हमने अपने मूल मान्यताओं को ताक पर रख दिया है और यही कारण है कि आज पत्रकारिता का नैतिक ह्रास हुआ है।