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छत्तीसगढ़ मंत्रिमंडल के फैसले में 32 प्रतिशत आदिवासी आरक्षण को बढ़ाने पर मुहर

एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क। छत्तीसगढ़ प्रांत की भूपेश बघेल कैबिनेट ने बड़ा फैसला लेते हुए 32 प्रतिशत आदिवासी आरक्षण को बढ़ाने पर मुहर लगा दी है। सरकार आदिवासी आरक्षण बढ़ाने के लिए विधेयक लेकर आएगी।

गुरुवार को मुख्यमंत्री निवास कार्यालय में आयोजित कैबिनेट की बैठक यह फैसला लिया गया। आदिवासी आरक्षण को लेकर छत्तीसगढ़ विधानसभा का विशेष सत्र एक-दो दिसंबर को होगा।मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की की अध्यक्षता में कैबिनेट की बैठक हुई ।

कैबिनेट की बैठक में आरक्षण का नया कोटा तय हुआ है। सरकार अनुसूचित जनजाति वर्ग को उनकी जनसंख्या के अनुपात में 32 प्रतिशत आरक्षण देगी।

अनुसूचित जाति को 13 प्रतिशतऔर अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण मिलेगा। वहीं सामान्य वर्ग के गरीबों को 4 प्रतिशत आरक्षण दिया जाएगा।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बताया, विधानसभा के विशेष सत्र में पेश करने वाले विधेयक के मसौदे पर चर्चा हुई। उसमें अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़ा वर्ग और इडब्ल्यूएस के आरक्षण पर भी बात हुई है।

उच्च न्यायालय ने जिला कैडर का आरक्षण भी खारिज किया था। वह भी उतना ही महत्वपूर्ण है। पहले उसे एक आदेश के तहत दिया जाता था। अब उसको भी एक्ट में लाया जाएगा।

बैठक में आदिवासी आरक्षण को लेकर तीन आइएएस अधिकारियों के दौरे की रिपोर्ट भी पेश हुई। इसके साथ ही ओबीसी गणना के लिए बने क्वांटिफाइबल डाटा आयोग की रिपोर्ट पर भी चर्चा हुई।

कृषि, पंचायत और संसदीय कार्य विभाग के मंत्री रविंद्र चौबे ने बताया कि आरक्षण अधिनियम के जिन प्रावधानों को उच्च न्यायालय ने रद्द किया है, उसे कानून के जरिये फिर से प्रभावी किया जाए।

इसके लिए लोक सेवाओं में आरक्षण संशोधन विधेयक-2022 और शैक्षणिक संस्थाओं के प्रवेश में आरक्षण संशोधन विधेयक-2022 के प्रारूप को मंजूरी दी गई है। इन विधेयकों को एक-दो दिसम्बर को प्रस्तावित विधानसभा के विशेष सत्र में पेश किया जाएगा।’

मंत्री रविंद्र चौबे ने कहा कि सरकार बार-बार यह कह रही है कि सरकार जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देने के लिए प्रतिबद्ध है। वहीं सर्वोच्च न्यायालय ने भी सामान्य वर्ग के गरीबों को 10 प्रतिशत तक आरक्षण देने को उचित बता चुकी है तो उसका भी पालन किया जाएगा।

सरकार का कहना है कि उन्होंने 2012 में बने सरजियस मिंज कमेटी और ननकीराम कंवर कमेटी की रिपोर्ट अदालत में पेश करनी चाही थी, लेकिन अदालत ने तकनीकी आधारों पर इसकी अनुमति नहीं दी।

सरकार ने अभी जनप्रतिनिधियों और अफसरों का एक अध्ययन दल तमिलनाडू, कर्नाटक और महाराष्ट्र के आरक्षण मॉडल का अध्ययन करने भेजा था। उसकी रिपोर्ट भी कैबिनेट में रखी गई।

 

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