बिहारशरीफ (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क)। कहते हैं कि किसी भी सरकार और उसकी विधि व्यवस्था का सही आंकलन करना हो तो जेल हो आईए। राजा-महाराज के दौर में भी शासन के हर पहलु उसके कैदखानों में दिखते थे।
उनके सुशासन-विकास को मुंह चिढ़ाती एक ऐसी ही सनसनीखेज खबर बिहार शरीफ मंडल जेल से जुड़ी सामने आई है। इस जेल की व्यवस्था के सामने आए स्वरुप से स्पष्ट होता है कि सरकार और उससे जुड़े तंत्र अब पूरी तरह से ‘चौपाया…’ हो गया है।
खबरों के मुताबिक नालंदा जिला जज डॉ. रमेश चंद्र द्विवेदी के निर्देश पर किशोर न्याय परिषद के प्रधान दंडाधिकारी सह अपर जिला व सत्र न्यायाधीश मानवेंद्र मिश्र ने बिहार शरीफ मंडल कारा का निरीक्षण किया।
इस दौरान वे जेल की व्यवस्था की हालत देख दंग रह गए। उन्होंने देखा कि एक कठौती में पांच कैदी एक साथ खाना खा रहे हैं। वहीं कुछ कैदी उसी कठौती के खाली होने का इंतजार कर रहे थे, ताकि वे अपनी भूख मिटा सकें।
यही नहीं, किसी वार्ड में क्षमता से अधिक कैदी थे। वहाँ के कैदी बैठकर गुजारने को विवश थे। वहीं किसी वार्ड में ताला लटके मिले।
कितनी अजीब स्थिति है कि जेल में कैदियों के खाने के लिए न थाली है न पत्तल। एक कठौती में पांच-पांच कैदी खाते हैं। कैदियों का दूसरा झुंड कठौती खाली होने का इंतजार करता है। ताकि वे लोग उसमें खा सकें।
यह सब देखकर अपने न्यायप्रिय फैसलों को लेकर देश-दुनिया में चर्चित हो रहे मानवेन्द्र मिश्र सरीखे जज खिन्न हो गए। जेल प्रशासन को फटकार लगाते हुए व्यवस्था में सुधार के लिए आवश्यक निर्देश दिए और कहा कि जेल आईजी को मंडल कारा की कुव्यवस्था की रिपोर्ट भी भेजी जाएगी।
आलावे, जज साहब ने अतिरिक्त कैदियों को खाली वार्ड में शिफ्ट करने, बाल बंदियों को पर्यवेक्षण गृह भेजने, महिला वार्ड के बच्चों के लिए खिलौना, गर्म कपड़े उपलब्ध कराने, उम्रकैद के सजायाफ्ता कैदियों को सेंट्रल जेल में शिफ्ट करने, कैदियों को जेल मैन्यूअल के अनुसार खाना दने, कोरोना गाइडलाइन का पालन करते हुए साफ-सफाई के आवश्यक निर्देश भी दिए।
अब देखना है कि जज साहब के दौरे और निर्देश के बाद बिहार शरीफ मंडल कारा की हालत में कितना सुधार हो पाता है? क्योंकि बिहार शरीफ जेल में यह कोई नया समस्या नहीं हैं। हाँ अब हालत कुछ अधिक वद्दतर हो गई है।
यहाँ जेल प्रबंधन से जु़ड़े लोग सारी समस्याएं सिर्फ कमाई के लिए जान बूझ कर पैदा करते है। क्योंकि कैदियों को जितनी अधिक तकलीफ होगी, उसके परिजन मुक्ति के लिए उतनी ही अधिक चढ़ावा पहुंचाएंगे। और चढ़ावा पहुंचाते भी है।
वैसे लोगों को सब सुविधा उपलब्ध होती है। उन्हें मोबाईल पर अपनी प्रेमिका तक से घंटो बतियाने की छूट होती हैं। अंदर से ही गंभीर वारदात को अंजाम उनके बाँए हाथ का खेल होता है। और जो समर्थ नहीं होते। जिनका कोई नहीं होता, यहाँ भी उसका कोई नहीं होता। यह सब किसी से छुपी हुई नहीं है।
यह कदापि नहीं माना जा सकता है कि सरकार का गृह कारा जैसे संवेदनशील विभाग का बजट इतना कम होता है कि कैदियों को भोजन के लिए कठौती का सहारा लेना पड़े। उसमें भी कतार में खड़ा होना पड़े। आधा पेट या भूखा सोना पड़े।
अगर ऐसा है तो विकास के कसीदे गढ़ने वाले सीएम नीतीश कुमार तक के लिए इससे बड़ी शर्म की बात क्या हो सकती है? सरकार को जेलों और उसकी व्यवस्था को लेकर श्वेत पत्र जारी करनी चाहिए, क्योकिं इंसानों से पशुवत व्यवहार सभ्य शासन का हिस्सा कदापि नहीं हो सकता।
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