पटना (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज)। बिहार सरकार शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक ने आकड़ों के जरिए अब शिक्षकों को लेकर चुनाव आयोग पर निशाना साधा है।
श्री पाठक ने शिक्षा विभाग के अंतर्गत विभिन्न योजनाओं के क्रियान्वयन हेतु आउटसोर्सिग के माध्यम से लगाए गए कर्मियों को जिला निर्वाचन पदाधिकारियों द्वारा निर्वाचन कार्यों में प्रतिनियुक्त करने के संबंध में एक पत्र लिखा है।
उन्होंने लिखा है कि शिक्षा विभाग के द्वारा जिलों में चलाए जा रहे विभिन्न योजनाओं की प्रगति की समीक्षा जिला शिक्षा पदाधिकारियों से करने के क्रम में यह जानकारी प्राप्त हुई है कि जिलों में जिला निर्वाचन पदाधिकारियों द्वारा आउटसोर्सिंग के माध्यम से कार्यरत कर्मियों को भी आगामी लोक सभा निर्वाचन के अवसर पर विभिन्न निर्वाचन कार्यों में प्रतिनियुक्त कर दिया गया है। फलस्वरूप शिक्षा विभाग की जिलों में शुरू की गयी विभिन्न प्रकार की गतिविधियाँ अवरूद्ध हो गयी है।
श्री केके पाठक ने लिखा है कि विभाग भी यह मानता है कि शिक्षा विभाग के संसाधनों के बिना निर्वाचन कराया जाना संभव नहीं है। शिक्षा विभाग को भी निर्वाचन के अवसर पर शिक्षा विभाग के संसाधनों के उपयोग पर कोई आपत्ति नहीं है। परंतु ऐसा पाया जा रहा है कि जिला निर्वाचन पदाधिकारियों द्वारा अन्य विभागों के संसाधनों का कम-से-कम उपयोग कर शिक्षा विभाग के सभी संसाधनों, यथा, भवन एवं मानव संसाधन का उपयोग किया जा रहा है। जिससे शिक्षा विभाग के कार्यक्रम रूके पड़े हैं।
श्री पाठक ने बताया है कि वर्ष 2019 के लोक सभा आम निर्वाचन एवं वर्ष 2020 के विधान सभा निर्वाचन के अवसर पर तत्समय उपलब्ध करीब चार लाख शिक्षकों के आधार पर निर्वाचन सम्पन्न कराया गया था। आपको यह भी ज्ञात होगा कि पूरे राज्य में निर्वाचन कार्य के लिए करीब 3.5 लाख कर्मियों की आवश्यकता होती है। शिक्षा विभाग में पूर्व से कार्यरत करीब 3.5 लाख नियोजित शिक्षकों के अतिरिक्त विगत छः माह के अधीन करीब 1.75 लाख विद्यालय अध्यापक की नियुक्ति भी बिहार लोक सेवा आयोग की अनुशंसा के आधार पर की गयी है। इस प्रकार यदि इन नियोजित एवं बिहार लोक सेवा आयोग के अनुशंसा के आधार पर नियुक्त कर्मियों की सेवा ली जाती है तो जिला में पर्याप्त मानव संसाधन बल उपलब्ध है। परंतु इसके विपरीत इन कर्मियों के अतिरिक्त अस्थायी रूप से आउट सोर्सिंग के माध्यम से रखे गए कर्मियों, जिनके द्वारा विद्यालयों के बुनियादी संरचना के कार्य एवं विभिन्न विभागीय योजनाओं के कार्यान्वयन हेतु रखे गए हैं, उनको भी निर्वाचन कार्य में लगा दिया जाना पूर्णतः अवांछित एवं शिक्षा विभाग के मानव संसाधनों का दुरूपयोग ही है।
श्री पाठक के अनुसार जब पूरे राज्य में करीब पाँच लाख से अधिक शिक्षक ही उपलब्ध हैं और मतदान कर्मियों की आवश्यकता मात्र 3.5 लाख ही है तो वैसी स्थिति में आउट सोर्सिग कर्मियों को निर्वाचन कार्य में लगाए जाने का कोई औचित्य नहीं है और ऐसे भी ये आउट सोर्सिंग कर्मी हैं। वे कोई राज्य सरकार के कर्मी नहीं हैं और न ही उनकी कोई स्थायी नियुक्ति है। ये सभी किसी एजेन्सी के कर्मी हैं, जो शिक्षा विभाग में कार्य कर रहे हैं और ये पूर्णतः अस्थायी रूप में कार्यरत हैं। ऐसे आउटसोर्स कर्मियों को भी निर्वाचन कार्य में लगा देना कतई उचित नहीं है।
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