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वीरायतन के आगे सब बौने, आज तक न टैक्स वसूल सका और न अतिक्रमण हटा सका प्रशासन

veerayatan rajgir 1एक्सपर्ट मीडिया न्यूज डेस्क। नालंदा जिले के विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल राजगीर में एक धार्मिक संस्था वीरायतन का कोई सानी नहीं है। इस संस्था के खिलाफ किसी भी मामले में स्थानीय पुलिस-प्रशासन  कोई कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं जुटा पाती है। इसका कारण उनकी मिलीभगत भी हो सकती है और ऊंची राजनीतिक-प्रशासनिक रसुख का प्रभाव भी।

बहरहाल, वीरायतन को लेकर दो सनसनीखेज मामले प्रकाश में आये हैं। ये दोनों मामले वीरायतन के धर्म के मर्म के साथ प्रशासन के कर्म की कलई यूं ही खोल जाती है।

राजगीर नगर पंचायत के कार्यपालक पदाधिकारी शिवशंकर प्रसाद  ने होल्डिंग टैक्स की बकाया राशि जमा करने के संबंध में कार्यालय पत्रांक-630/12 को एक नोटिश जारी किया था।

उस नोटिश में जिक्र था कि भारतीय लेखा परीक्षा विभाग, बिहार के द्वारा प्रस्तुत अंकेक्षण में वीरायतन के जिम्मे वर्ष 1987-88 से वर्ष 2007-08 तक कुल 15.77 लाख रुपये होल्डिंग टैक्स बकाया अंकित है। इस दौरान मल कर (शौचालय) के आलावे शिक्षा शेष एवं स्वस्थ्य शेष की राशि भी जमा नहीं की गई है।

उस नोटिश के द्वारा नगर पंचायत कार्यालय ने पत्र प्राप्ति के 3 दिनों के भीतर बकाया राशि न जमा करने की सूरत में अग्रेतर कार्रवाई करने की चेतावनी भी दी गई थी।

कहते हैं कि तब वीरीयतन ने सरकारी टैक्स की राशि जमा करना तो दूर राजगीर नगर प्रशासन के उक्त पत्र को रद्दी की टोकरी में डाल दिया और यह सिलसिला आज तक जारी है।

एक अनुमान के अनुसार वीरायतन के जिम्मे चालू वित्तीय वर्ष तक करीब एक करोड़ रुपये बतौर सरकारी टैक्स विभिन्न मदों के बकाया है। जिसे वह न कभी चुकाया है और न ही विभागीय प्रशासन  उसे वसूल पाने की हिम्मत ही जुटा पाई है। अब इस टैक्सखोरी के खेल में कौन कितने नंगे हैं, यह एक बड़ा जांच का विषय है।

हर आदेश-निर्देश को ठेंगा दिखाने में माहिर वीरायतन से जुड़ा दूसरा मामला राजगीर नगर निवेशन प्राधिकार की अर्जित भूमि पर अतिक्रमण मुक्ति से संबंधित है।

राजगीर नगर पंचायत के कार्यपालक पदाधिकारी ने वीरायतन के प्रबंधक के नाम अपने कार्यालय पत्रांक-631/12 द्वारा पूर्वती राजगीर निवेशन प्राधिकार की अर्जित जमीन खाता संख्या-482, खेसरा संख्या-1603, कुल रकबा-61 डिसमिल भूमि को अतिक्रमण से मुक्त करने के संबंध में लिखी थी।

नोटिश में साफ अंकित है कि वीरायतन द्वारा एकरारानामा करने का अनुरोध किया गया था लेकिन, उक्त भू-खंड पर नगर विकास एवं आवास विभाग ने अपने कार्यालय पत्रांक- 206/05 के जरिये अस्वीकृत करते हुये भूमि को अतिक्रमण मुक्त करने का निर्देश दिया है। अतः आदेश दिया जाता है कि खाता संख्या-482, खेसरा संख्या- 1603, कुल रकबा- 61 डिसमिल को एक सप्ताह के भीतर खाली कर दें। अन्यथा बलपूर्वक खाली करा दिया जायेगा।

कहते हैं कि वीरायतन के कर्ता-धर्ता ने उक्त आदेश पत्र को भी कचरे में फेंक दिया और दूसरी तरफ नगर पंचायत प्रशासन ने भी आगे कोई अग्रेतर कार्रवाई अब तक नहीं की है।

उपरोक्त दोनों मामलों की पुष्टि करते हुये राजगीर नगर प्रबंधक विनय रंजन ने एक्सपर्ट मीडिया न्यूज से कहा कि इसमें अग्रेतर कार्रवाई क्या हुई, ये उनके उपर के अधिकारी ही बता सकते हैं। फिलहाल वे इस मामले में इतना ही कह सकते हैं कि नोटिश काल से ही वीरायतन और विभाग के बीच एक दूसरे पर फेंकाफेंकी का दौर जारी है। 

इसके बाद नगर पंचायत के कार्यपालक पदाधिकारी बुलंद अख्तर से दर्जनों बार संपर्क स्थापित करने का प्रयास किया गया। लेकिन उनका अधिकारिक मोबाइल पिछले एक सप्ताह से रेंज से बाहर बता रहा है तो कभी स्वीच ऑफ।   

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