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41 साल बाद कोर्ट में साफ हुआ कन्हैया असली या नकली वारिस, मिली 3 साल की सज़ा

जमींदार कामेश्वर सिंह का बेटा कन्हैया सिंह मैट्रिक परीक्षा के दौरान चंडी हाईस्कूल से वर्ष 1977 में अचानक गायब हो गया था। कामेश्वर सिंह की करोड़ों की संपत्ति का कन्हैया इकलौता वारिस था

नालंदा (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क)। बिहारशरीफ कोर्ट के न्यायाधीश मानवेंद्र मिश्रा ने 41 साल से चल रहे एक मुकदमे में फैसला सुनाते तीन अलग-अलग धाराओं में आरोपी को जेल भेज दिया।

फैसले को सुनने के लिए कोर्ट के अंदर और बाहर काफी भीड़ जमा हो गई थी। मामला करोड़ों की संपत्ति से जुड़ा हुआ था।

खबरों के मुताबिक बेन थाना के मुरगावां गांव के जमींदार कामेश्वर सिंह का बेटा कन्हैया सिंह मैट्रिक परीक्षा के दौरान चंडी हाईस्कूल से वर्ष 1977 में अचानक गायब हो गया था। कामेश्वर सिंह की करोड़ों की संपत्ति का कन्हैया इकलौता वारिस था।

गायब होने के कुछ महीने के बाद पड़ोसियों ने गांव में आए एक भरथरी (साधु) को कन्हैया के तौर पर पहचान कर उसे कामेश्वर सिंह के यहां ले गए। कामेश्वर सिंह की बेटी रामसखी देवी ने उसे कन्हैया मानने से इंकार कर दिया था।

इसके बाद वर्ष 1981 में सिलाव थाने में संपत्ति को हड़पने की साजिश से आए नकली कन्हैया के खिलाफ मुकदमा कायम कर दिया गया।

हालांकि, वर्ष 1981 में मामला दर्ज होने के बाद जांच के क्रम में उसकी पहचान मुंगेर जिले के लक्ष्मीपुर थाना क्षेत्र के लखई गांव निवासी दयानंद गोसाईं के रूप में की गयी थी। छह बहनें इस मामले में खास दिलचस्पी नहीं ले रही थी, लेकिन एक बहन रामसखी देवी उसे कन्हैया मानने से इंकार कर रही थी।

सहायक अभियोजन पदाधिकारी राजेश पाठक ने बताया कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया था। लेकिन फिर से इसकी सुनवाई के लिए निचली अदालत में भेजा गया। इस मामले में अब तक कई मोड़ आ चुके हैं।

पहली बार इसकी पहचान होने पर कामेश्वर सिंह की पत्नी व बेटी रामसखी ने उसे कन्हैया मानने से इंकार किया था। इसके बाद उस पर संपत्ति हड़पने का सिलाव थाने में एफआईआर करायी थी।

करीब 41 साल बाद जज मानवेन्द्र मिश्र ने 420 , 419 और 120 भारतीय दंड सहिंता के तहत 3 साल की सजा और 10 हजार रुपए का जुर्माना सुनाते हुए आरोपित दयानंद गोसाईं को जेल भेज दिया।

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