कला-संस्कृति

बिरहोर-हिंदी-अंग्रेजी शब्दकोष निर्माण: विलुप्त होती संस्कृति-भाषाओं को संरक्षित करने की दिशा में देव कुमार का एक बड़ा प्रयास

JALESH MAHTO“यह प्रयास अत्यंत प्रशंसनीय एवं सराहनीय है जो बिरहोर-हिंदी-अंग्रेजी भाषा के शब्दकोष निर्माण हेतु कार्य कर रहें है। यह सभी लोगों को इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगा तथा पाठकीय सामग्री  उपलब्ध होने से विकास कार्यों में गति मिलेगी ……..जलेश्वर कुमार महतो, समाज सेवी एवं शिक्षक”।

एक्सपर्ट मीडिया न्यूज डेस्क।  भाषा संस्कृति की रीढ़ होती है। भाषा का विलुप्त होना संस्कृति का विलुप्त होना है। इतिहास के पन्नों में भी संस्कृति का अलंकार भाषा से ही होता है।

ऐसे ही झारखंड के गर्भ में कई भाषाएं पलीं और विकसित हुई जो आज विलुप्त होने को हैं। अगर समय रहते इसका संरक्षण नही किया गया तो हम एक समृद्ध संस्कृति की कई भाषाओं को खो बैठेंगे।

इतिहास में इसके कई उदाहरण मौजूद है। जहाँ संस्कृति हास् होने के साथ कई प्राचीन भाषाएं विलुप्त हो चुकी है। अब समय है विलुप्ति के कगार पर पहुँच चुके ऐसे भाषाओं को सुरक्षित एवं संरक्षित करना नही तो जनजातीय भाषाओं का अस्तित्व मिट जायेगी।

This is an exemplary effort to preserve the extinct culture and languages making this the Birhor Hindi English dictionary 1इस दिशा में देव कुमार के द्वारा आदिम जनजाति बिरहोर समुदाय की भाषा के संरक्षण और आदिवासी संस्कृति को बढ़ावा देने का  प्रयास किया जा रहा है।

ज्ञातव्य हो कि देव कुमार विगत कई वर्षों से विकास कार्यों से जुड़े हैं एवं देश के प्रतिष्ठित संस्थान निफ्ट, राँची के छात्र रह चुके हैं।

आखिर क्या खास होगी शब्दकोष में….

इस शब्दकोष में जल, जंगल एवं जमीन से जुड़ी लगभग 1000 से अधिक बोलचाल की शब्दावलियों,जड़ी बूटियों से संबंधित उपचार, सांस्कृतिक गीतों को शामिल किया जा रहा है।

इसे तीन भाषाओं में यथा बिरहोर,हिंदी एवं अंग्रेजी में  तैयार किया जा रहा है। इसमें महत्वपूर्ण चित्रों को समावेश करने का प्रयास किया जा रहा है।

यह इसलिए खास है कि संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) द्वारा बिरहोर भाषा को गंभीर खतरे की भाषा की श्रेणी में शामिल किया गया है।

झारखंड में कई प्राचीन आदिम भाषाओं का लिखित साक्ष्य नही मिलता। बस ये बोलियों के रूप में ही जाने व बोले जाते हैं। समय आ गया है इन्हें कलमबद्ध किया जाये ताकि आने वाली हमारी भावी पीढ़ी इससे रूबरू हो सके।

वर्तमान में पश्चिमी प्रभाव में हम अपनी मौलिक महत्व को खोते जा रहे हैं। समय के साथ चलना तो वैश्विक दृष्टिकोण से सही हो सकता है लेकिन अपनी संस्कृति व भाषा को छोड़कर कदापि नही।

बिरहोर भाषा में एक-मिया:, दो-बरिया, तीन-पेया, चार-पुनिया, पाँच-मोड़ेटा, छः-रुईटा,आम-ऊल,मुर्गी-एङगा सिम, पृथ्वी-ओते, जंगल-बिर, छाया-उम्बुल इत्यादि शब्दों से जाना जाता है।

 

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