“इस डाक्यूमेंट्री फिल्म के निर्देशक सुजीत कुमार उस वक्त अवाक रह गए, जब साईंस कॉलेज के एक पूर्व प्राध्यापक डा. रामबहादुर सिंह ने बताया कि ‘आनर्स में हमने ही अभ्यानंद का भौतिकी का पेपर सेट किया था। उसने सारे प्रश्नों का सही हल किया था। वे उन्हें 100 में 100 नंबर देना चाहते थे, पर प्रिंसीपल ने कहा कि भौतिकी में कभी 100 में 100 नंबर नहीं दिया जाता।’
पटना (विनायक विजेता)। राज्य के पूर्व डीजीपी एवं शिक्षाविद अभ्यानंद के जीवन और उनकी कार्यप्रणाली पर एक लधु फिल्म का निर्माण किया जा रहा है। इसे निर्देशित कर रहें हैं मुंबई निवासी डाक्यूमेंट्री मिल्मों के मशहुर निर्देशक सुजीत कुमार।
इस फिल्म में अभ्यानंद के स्कूली जीवन से लेकर उनके डीजीपी के कार्यकाल तक का जीवन वृत का फिल्मांकन हो रहा है। पहले 2007 में एडीजी और बाद में डीजीपी बनने तक उनके द्वारा पुलिस विभाग में किए गए सुधारात्मक कार्यों और गरीब बच्चों को सुपर-30 के माध्यम से उनके द्वारा दी जा रही शिक्षा पर भी विशेष तौर पर फिल्मांकन किया जा रहा है।
राज्य में अपराधियों से जप्त अवैध हथियारों को गलाकर उससे निकले लोहे का उपयोग कुदाल, फावडा एवं अन्य कृषि यंत्र बनाने के अभ्यानंद के फार्मूले को इस डाक्यूमेंट्री फिल्म में विशेष तरजीह दी जा रही है।
नवम्बर 2011 में सर्वप्रथम मुजफ्फरपुर के मुशहरी थाने से इस फार्मूले पर कार्यान्वयन हुआ जहां पुलिस द्वारा सौंपे गए छह देशी कट्टा को गलाकर एक लुहार ने 1 कुदाल, 1 क्लीपर, 1 काठी और एक फावडा बनाकर पुलिस को सौंपा जिसकी चर्चा तब न्यूयार्क टाइम्स सहित देश विदेश के अखबारों में हुई थी।
अभ्यानंद का मानना था कि कि बिहार में प्रतिवर्ष 60 हजार अवैध हथियार जप्त होते हैें। आपराधिक प्रक्रिया कोड 1973 की धारा 452 के अंतर्गत ऐसे हथियारों को ट्रायल के बाद विनष्ट कर दिए जाने का प्रावधान है जिसे विनष्ट किए जाने वाले हथियारों का उपयोग कृषि यंत्र बनाने में किया जा सकता है।
इस डाक्यूमेंट्री फिल्म के निर्देशक ने पटना के सेंत जेवियर और संत माइकल स्कूल सहित साइंस कॉलेज जहां अभ्यानंद ने माध्यमिक और उच्च शिक्षा प्राप्त की उसके पूर्व शिक्षक, प्राध्यापक और अभ्यानंद के बैचमेट रहें कई लोगों से बात कर उन पर भी फिल्मांकन किया है।
फिल्म के निर्देशक ने अभ्यानंद को स्कूल में गणित पढाने वाले अध्यापक पी एस राज का भी फिल्मांकन किया है। फिल्म की यूनिट ने इसके अलावा बीएमपी सहित कई स्थानों का फिल्मांकन किया है, जहां अभ्यानंद के कार्यकाल में व्पयाक सुधार हुए।
इस फिल्म में अभ्यानंद द्वारा शुरु किए गए स्पीडी ट्रायल, सैप की बहाली और पुलिस विभाग में किए गए सुधारात्मक कार्यों का विशेष तैर पर फिल्माया जा रहा है।
गौरतलब है कि अभ्यानंद के पिता जगतानंद जब राज्य के डीजीपी जैसे पुलिस विभाग के सर्वोंच्च पद पर थे तब अभ्यानंद पटना साईंस कॉलेज के छात्र थे पर घर में तमाम सुविधा और गाडियां रहते हुए भी वे साइकिल से ही कॉलेज जाते थे।
इस फिल्म के निर्देशक पूर्व में अभ्यांनद पर 45 मिनटों की एक लधु फिल्म बनाना चाहते थे पर फिल्म की यूनिट ने अभ्यानंद पर शोध करना शुरु किया तो उन्हें यह लगा कि कमसे कम यह फिल्म ढाई घंटे की होनी चाहिए।
इस फिल्म की यह यूनिट यह देखकर भी हैरान है कि बीएमपी सहित पुलिस विभाग में अभ्यानंद ने कई सुधारात्मक कार्य, पुलिस अस्पताल सहित कई संरचनाओं को मूर्त रुप दिया पर कहीं किसी भी शिलाालेख या पट्टी पर अभ्यानंद का नाम वर्णित नहीं है। इस टीम ने बीएमपी में लगातार तीन दिनों तक शुटिंग की है।
इसके अलावा इस टीम की यूनिट ने अभ्यानंद का 35 वर्षों का सीआर भी यह देखने को निकाला है कि उनके बारे में किसकी अभियुक्ति क्या है। इस डाक्यूमेंट्री फिल्म के अलावा रोचेस्टर (न्यूयार्क) विश्वविद्यालय का एक का छात्र एलेक्जेंडर ली भी 2010 से ही अभ्यानंद पर एक विशेष शोध कर रहे हैं।