
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क। झारखंड के सिमडेगा जिले के चुंदियारी गांव की एक घटना ने एक बार फिर राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं और बुनियादी ढांचे की बदहाल स्थिति को उजागर किया है। यह 18वीं सदी नहीं है, लेकिन झारखंड के कई गांवों में हालात आज भी उस युग से मिलते-जुलते हैं।
चुंदियारी गांव की 65 वर्षीय बुजुर्ग महिला गंगो देवी को कमर में गंभीर चोट लगी थी। लेकिन न तो गांव में पक्की सड़क थी, न कोई स्वास्थ्य केंद्र, और न ही समय पर एम्बुलेंस पहुंच सकी। मजबूरन उनके परिजनों को खाट पर लादकर तीन किलोमीटर पैदल चलकर उन्हें नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र तक ले जाना पड़ा। यह दर्दनाक घटना न केवल चुंदियारी गांव की सच्चाई है, बल्कि झारखंड के सैकड़ों गांवों की व्यथा को बयां करती है।
झारखंड में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) या तो बदहाल हैं या अपर्याप्त सुविधाओं से जूझ रहे हैं। कई गांवों में एम्बुलेंस सेवाएं नाममात्र की हैं।
सिमडेगा जैसे सुदूर जिलों में जहां सड़कें भी नहीं हैं, वहां एम्बुलेंस का पहुंचना तो दूर की बात है। गंगो देवी का मामला इस बात का जीता-जागता सबूत है कि सरकारी योजनाएं और बजट के बड़े-बड़े दावे कागजों तक ही सीमित रह जाते हैं।
हेमंत सोरेन सरकार ने इस साल के बजट में स्वास्थ्य सेवाओं के लिए ₹3497 करोड़ और सड़कों व पुलों के लिए ₹5300 करोड़ आवंटित करने की घोषणा की थी। पिछले साल यह राशि क्रमशः ₹7223 करोड़ और ₹6389 करोड़ थी।
इतनी भारी-भरकम राशि के बावजूद गांवों में न सड़कें बनीं, न स्वास्थ्य सुविधाएं सुधरीं। सवाल यह है कि यह पैसा गया कहां? क्या यह राशि भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई, या फिर सरकारी अमले की उदासीनता ने इसे बेकार कर दिया?
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी ने अपने फेसबुक पोस्ट में इस मुद्दे पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने लिखा है कि जब भ्रष्टाचार करने की बात आती है, तो हेमंत सरकार सुरसा से भी बड़ा मुंह खोल लेती है। लेकिन जब व्यवस्था को लेकर सवाल किया जाए, तो मुख्यमंत्री और उनके मंत्री गूंगे-बहरे बन जाते हैं।
मरांडी का यह बयान उन लोगों की भावनाओं को व्यक्त करता है, जो सरकारी लापरवाही और भ्रष्टाचार के शिकार हैं।
चुंदियारी गांव के लोग बताते हैं कि गंगो देवी का मामला कोई अपवाद नहीं है। यहां हर साल दर्जनों लोग समय पर इलाज न मिलने के कारण दम तोड़ देते हैं। गांव की एक अन्य निवासी राधा देवी ने बताया कि यहां सड़क नहीं है, एम्बुलेंस नहीं आती। बीमार पड़ने पर या तो खाट पर लादकर ले जाना पड़ता है या फिर मरीज को भगवान भरोसे छोड़ देना पड़ता है। ग्रामीणों का कहना है कि सरकारी योजनाएं उनके गांव तक पहुंचती ही नहीं।
झारखंड जैसे राज्य में, जहां भौगोलिक और सामाजिक चुनौतियां बहुत हैं, वहां स्वास्थ्य सेवाओं और बुनियादी ढांचे को मजबूत करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। कुछ संभावित समाधान निम्नलिखित हो सकते हैं-
ग्रामीण सड़कों का विकास: सुदूर गांवों तक पक्की सड़कों का निर्माण, ताकि एम्बुलेंस और अन्य जरूरी सेवाएं समय पर पहुंच सकें।
मोबाइल स्वास्थ्य इकाइयां: ग्रामीण क्षेत्रों में मोबाइल मेडिकल वैन की व्यवस्था, जो प्राथमिक उपचार और आपातकालीन सेवाएं प्रदान कर सकें।
स्वास्थ्य केंद्रों का सशक्तिकरण: मौजूदा स्वास्थ्य केंद्रों में चिकित्सकों, दवाइयों और उपकरणों की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
जवाबदेही तय करना: भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए पारदर्शी निगरानी तंत्र और सख्त जवाबदेही की व्यवस्था।
बहरहाल, गंगो देवी की कहानी झारखंड के उन हजारों लोगों की कहानी है, जो सरकारी उदासीनता और भ्रष्टाचार के शिकार हैं। यह समय है कि सरकार केवल बड़े-बड़े वादों और बजट की घोषणाओं से आगे बढ़े और जमीनी स्तर पर बदलाव लाए। जब तक गांवों में सड़कें नहीं बनेंगी, स्वास्थ्य केंद्र नहीं सुधरेंगे और एम्बुलेंस समय पर नहीं पहुंचेगी, तब तक झारखंड के गांवों में ‘अस्पताल से श्मशान तक’ का यह दर्दनाक सफर जारी रहेगा।
समाचार स्रोत: बाबूलाल मरांडी की फेसबुक वॉल, स्थानीय साक्षात्कार और सरकारी बजट दस्तावेज।