-: मुकेश भारतीय, Ceo_Cheif Editor, Expert Media News Network :-
सामाजिक समस्याएं अनंत होती है। उसके निराकरण का भार सिर्फ सरकारों पर नहीं छोड़ा जा सकता। पहल और आंदोलनं हर व्यक्ति के अंदर होती है। बिहार-झारखंड समेत प्रायः सभी प्रदेशों में लोकतंत्र का ताना-बाना तेजी से टूटता नजर आ रहा है।
शासन-प्रशासन में बैठे लोग भी इंसान है। उनमें भी वही भावनाएं होती है, जो हर मानवीय पहलु में होती है। उनमें धन संचय की प्रवृति है तो समाज के प्रति संवेदनाएं भी। यदि हम अपने कर्तव्यों-दायित्वों के प्रति ईमानदार हैं तो सामने वाले कभी पथभ्रष्ट नहीं हो सकते। उन्हें आम जन की मुख्यधारा में लानी होगी।
राजनीति की नियत में हमेशा खोट होती है। उसे सिर्फ सत्ता चाहिए। अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए वह हर तिकड़म अपनाती है। उनके लिए विचारधारा कोई मायने नहीं रखते। वे हमेशा ऐसे निर्णय लेते हैं, जिससे हर तरफ भय का वातावरण उत्पन्न हो उठता है। समसमायिक तौर पर इसके कई उदाहरण साफ देखे जा रहे हैं।
आज शासन-प्रशासन की शहरी सोच गांवो में शिफ्ट हो चली है। वे खेत-खलिहान को भी कंकरीट के जंगल बनाने पर तुले हैं। किसान-मजदूर की समस्याओं में सिर्फ उन्हें कमाई के रास्ते दिख रहे हैं।
राजनेताओं को लगता है कि वे रात में जो स्वप्न देखते हैं, वे हर अगली सुबह सूर्य की रौशनी के साथ पूरी हो जाए। पूर्ण शराबबंदी की गई। लेकिन आज उसका भद्दा स्वरुप सामने है। अदूरदर्शी कदमों के ऐसे ही दुष्प्रणाम सामने आते हैं। गाल बजाने से सब कुछ ठीक नहीं हो जाता।
बिहार-झारखंड जैसे प्रदेशों में एक बड़ा जल संकट पैदा किया जा रहा है। पेयजल के नाम पर उसके स्रोतों को निचोड़ा जा रहा है। यह सरकारी अदूरदर्शिता गांवों को जकड़ रही है। यहां कोई ऐसी योजनाओं का क्रियान्वयन नहीं किया जा रहा है, जिससे आंतरिक जल संचय बढ़े। सिर्फ उसे मशीनों से गली-गली बहाने पर तुले हैं।
गांवों को आवागमन के रास्तों से जोड़ना अलग बात है। लेकिन यहां खेतों की हरियाली के बीच व्यापारिक चौड़ी सड़कों का जाल बिछाए जाना खतरनाक मुहिम है। नीति निर्धारक यह भूल गए हैं कि भारत सदियों एक कृषि प्रधान देश रहा है। इसकी प्रकृति भी यही है। लेकिन इसे जबरन औधोगिक प्रधान बनाने पर तुले हैं। वे भारत को दूबई और सिंगापुर की चादर में लपेटना चाहते हैं।
बहरहाल, हम स्वार्थी न बनें। आने वाली पीढ़ी का ख्याल करें। सुशासन और विकास के नाम पर ऐसे समाज की रचना न करें, जो अपनी ज्वलंत समस्याओं का हल भी न ढूंढ न पाए और उसकी नजरों के सामने सिर्फ अंधेरा हो…..(जारी)