“सबसे चौंकाने वाली हार बख्तियारपुर का रहा। जहां उन्हें उम्मीद भी नहीं था कि वे हारेंगे। उन्होंने अपनी जीत को पक्का करने के लिए दो सांसद दिनेश यादव और चौधरी महबूब अली कैसर को चुनाव प्रचार में लगाया था……………”
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज़ नेटवर्क। वेशक बिहार विधान सभा के उपचुनाव का परिणाम सब के लिए चौंकाने वाला है। ख़ासकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए जो कि दरौंदा को छोड़कर सभी सीटों पर एनडीए की जीत का सपना देख रहे थे।
इसलिए इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि यह चुनाव परिणाम नीतीश कुमार को करारा झटका है। हालांकि उप चुनाव परिणाम पर नीतीश कुमार के समर्थकों का कहना है कि इससे पार्टी की सेहत पर कोई अंतर नहीं पड़ता है। लेकिन पलटीमार राजनीति की भूमिका इसमें कहीं अधिक अहम रही है।
पिछले दस साल के दौरान बिहार का चुनावी इतिहास तो यही कहता हैं कि उपचुनाव में एनडीए की पराजय होती है और उसके एक साल के अंदर होने वाले चुनाव का परिणाम उल्टा हो जाता है फिर चाहे वो लोकसभा हो या फिर विधानसभा।
लेकिन सही मायने में विधान सभा के उपचुनाव में वोटर ने परिवारवाद के खिलाफ अपना वोट दिया। वोटरों ने साफ कर दिया है कि प्रत्याशी किसी भी दल का हो वोटर अब परिवारवाद को अपना वोट नहीं देना चाहता है।
इस चुनाव में सांसदों ने अपने ही परिवार के सदस्यों को टिकट दिलाया। लेकिन, जनता ने इन प्रत्याशियों को नकार दिया। सिर्फ समस्तीपुर लोकसभा सीट इसका अपवाद रहा। जहां से रामविलास पासवान के भतीजे प्रिंस राज चुनाव जीत गए।
नहीं तो विधान सभा चुनाव में चर्चा में रहे दरौंदा जहाँ से जनता दल यूनाइट के अजय सिंह को निर्दलीय व्यासदेव सिंह से हार का मुंह देखना नहीं पड़ता। जीत हार का अंतर सत्रह हज़ार से अधिक वोट का था।
दूसरा बेलहर जहां बांका से सांसद गिरिधारी यादव के भाई ललधारी यादव को हार का मुंह देखना पड़ा। यहां से आरजेडी के रामदेव यादव जीते।
इसके बाद किशनगंज सीट, जहां कांग्रेस के सांसद डॉक्टर जावेद ने अपनी मां सैयदा बानु को टिकट तो दिलवा दिया लेकिन वो तीसरे स्थान पर रहीं।
ओवैसी के पार्टी एआईएमआईएम के उम्मीदवार कमरुल यहां से खाता खोलने में कामयाब रहे।
नीतीश कुमार के लिए सबसे चौंकाने वाली हार बख्तियारपुर का रहा। जहां उन्हें उम्मीद भी नहीं था कि वे हारेंगे। उन्होंने अपनी जीत को पक्का करने के लिए दो सांसद दिनेश यादव और चौधरी महबूब अली कैसर को चुनाव प्रचार में लगाया था।
इनके संयुक्त चुनावी अभियान के बाद भी उनकी पार्टी के उम्मीदवार डॉक्टर अरुण कुमार को आरजेडी उम्मीदवार ज़फ़र आलम से हार का मुंह देखना पड़ा।
इस का एक कारण वीआईपी पार्टी के उम्मीदवार दिनेश भी हैं, जोकि विधान सभा उप चुनाव में 25, हज़ार वोट ले आए। उन्होंने जदयू का ही वोट काटा। वे अगर चुनाव नहीं लड़ते तो निश्चित रूप से यह वोट जनता दल युनाइट को ही जाता।