वसुमति ,बाहद्रथपुर, गिरिब्रज, कुशाग्रपुर और अग राजगृह पंच पहाड़ियों घिरा हुआ राजगीर अपने आप में कई इतिहास को समेटे हुए हैं। यह सर्व धर्मस्थली के रूप में भी विश्व विख्यात है। इसी पवित्र स्थल पर तीन सालों पर मलमास मेला लगता है।
आज एक तपोभुमि है, जहाँ वायु पुराण के अनुसार ब्रम्हाकुण्ड ही वह स्थल है जहाँ पर ब्रम्हा ने करके मनुष्यों की बुराइयों को अग्नि में अर्पित कर पवित्रता की ओर चलने का आन्हवार की ये थे। हिन्दु धर्म में मलमास या अधिमास में इस नगरी की महता काफी बढ़ जाती है।
मास के दौरान तैंतीस कोटी देवी-देवता यहाँ पर वास करते हैं। इस दौरान यहाँ ब्रम्हाकुण्ड सहित अन्य 22 कुण्ड 52 धारा में स्नान करना काफी फलदायक होते हैं।
मलमास मेला में देश के कोने-कोने के अलावा विदेश से भी लाखों की संख्या में लोग आते हैं। मेला में देश व विदेश से समय पिंड दान के लिए भी आते हैं।
मोक्ष पाने के लिए मेले को दौरान लोग गाय की पूँछ को पकड़कर वैतरणी नदी को पार करते हैं।
खगोलिय तथ्य है कि सूर्य को एक राशि पर करने में 30.44 दिन लगते हैं यही सूर्य का सौर महिना होता है। ऐसे में 12 महिनों का समय जो 365.25दिनों का होता है, एक सौर वर्ष है।
चन्द्रमा का महिना 29.53 दिनों का है जिससे चंद्र वर्ष में 35436 दिन ही होते हैं। यह फर्क 32.5 महिनों के बाद पुरे एक चन्द्र मास बराबर हो जाता है।
इसे समन्वय करने के लिए लगभग तीसरे साल एक अधिक मास होता है। तेरहवां मास (मलमास) विशेष धार्मिक काम के लिए वर्जित है। मलमास को पुरूषोत्तम मास भी कहा जाता है।
पश्चिमी देशों में तेरहवीं संख्या अभाग्य सूचक मानी जाती है। ऐसी मान्यता है की मलमास मेला के दौरान ब्रम्हाकुण्ड में स्नान करने का विशेष फल माना जाता है।
इस मेला का आरंभ विधि विधान पूर्वक ध्वजारोहण से किया जाता है। मेला पुरे एक माह तक चलता है। इस बार 16 मई से शुरु यह मलमास मेला- 2018 आगामी 13 जून तक चलेगा।
इस दौरान विशेष विभिन्न स्थलों से आने वाले संत अपने अखाड़ों से गाज-बाज व घोड़े के साथ निकलते हैं गुरूनानक कुंड में पहला स्नान करते हुए अन्य कुंड में स्नान करते हैं।