एक्सपर्ट मीडिया न्यूज (राम विलास)। प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा बिहार के नालंदा जिलान्तर्गत राजगृह के ऐतिहासिक एवं पौराणिक मलमास मेला को राष्ट्रीय मेला का दर्जा देने संबंधी कार्रवाई आरंभ कर दी गई है।
इस कार्रवाही के तहत प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा संस्कृति मंत्रालय से रिपोर्ट मांगी गई है। यह कार्रवाई राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर स्मृति न्यास के अध्यक्ष नीरज कुमार के अनुरोध पत्र पर आरंभ की गई है।
नीरज कुमार द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ज्ञापन भेजकर राजगृह के ऐतिहासिक, पौराणिक, धार्मिक और सांस्कृतिक मलमास मेला को राष्ट्रीय मेला का दर्जा देने का अनुरोध किया गया है।
इस ज्ञापन के आलोक में प्रधानमंत्री कार्यालय ने पीएमओ/ पीजीटी/ 2018/ 0114220, दिनांक 31 मार्च 2018 द्वारा संस्कृति मंत्रालय को आवेदन भेज कर विस्तृत रिपोर्ट की मांग की गयी है।
प्रधानमंत्री कार्यालय के आदेश के अनुपालन में संस्कृति मंत्रालय की अपर सचिव सुनीता धवले द्वारा कार्रवाई आरंभ कर दी गई है।
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर स्मृति न्यास के अलावे अखिल भारतीय महामंडलेश्वर स्वामी अंतर्यामी शरण जी महाराज, बड़ी संगत के पीठाधीश विवेक मुनि, सदगुरु कबीर आश्रम के महंत द्वारिका दास, कैलास विद्यातीर्थ के महंत ब्रह्मचारी बालानंद एवं अन्य के द्वारा भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह, केन्द्रीय संस्कृति मंत्री डॉ महेश शर्मा, केन्द्रीय गृह सचिव राजीव गौवा और नालंदा के डीएम डॉ त्याग राजन एस एम को ज्ञापन भेजकर राजगृह के मलमास मेला (पुरुषोत्तम मास) को राष्ट्रीय / राजकीय मेला का दर्जा देने के लिए गुहार लगाया गया है।
प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को भेजे गए आवेदन पत्र के अनुसार राजगृह का यह मलमास मेला आदि-अनादि काल से लगता आ रहा है।
इस मेले का वर्णन अग्निपुराण, वायुपुराण, महाभारत सहित अन्य सनातन धर्मग्रंथों के अलावे जैन और बौद्ध साहित्य में भी मिलता है।
महामंडलेश्वर, पीठाधीश्वर, महंत और न्यास अध्यक्ष के अनुसार राजगृह का यह ऐतिहासिक मलमास मेला राष्ट्रीय/राजकीय मेला का दर्जा पाने के सभी मानकों व शर्तों को पूरा करता है।
इस मेले के नाम पर 73 एकड़ मेला सैरात की भूमि भी बिहार सरकार द्वारा आवंटित है। जिसका हर मेले के समय सरकार द्वारा बन्दोवस्ती की जाती है। इससे सरकार को करोड़ों रुपये राजस्व प्राप्त होते हैं।
इन लोगों ने कहा है कि इस मलमास मेला से कम महत्व के मेले को सरकार द्वारा राजकीय और राष्ट्रीय मेला का दर्जा दिया जा रहा है ।
लेकिन इतने बड़े पौराणिक मेले को अब तक राष्ट्रीय/राजकीय मेला का दर्जा न मिलना किसी दुर्भाग्य से कम प्रतीत नहीं होता है।
मलमास मेला शुद्ध रूप से हिन्दूओ का धार्मिक और आध्यात्मिक मेला है। एक महीना तक चलने वाले इस मेले में भारत के कोने-कोने से हिंदू श्रद्धालु तो आते ही हैं।
नेपाल, मारीशस आदि राष्ट्र से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु इस मेले में पहुंचते रहे हैं।
इस अवसर पर राजगृह में विराट मेला का आयोजन होता है। मेला का दृश्य लघु भारत से कम प्रतीत नहीं होता है।
उन्होंने कहा है कि राजगृह मगध साम्राज्य की ऐतिहासिक राजधानी रही है। यह धरती भगवान बुद्ध और तीर्थंकर महावीर की कर्मभूमि के रूप में विश्व विख्यात है।
भगवान श्रीकृष्ण की मौजूदगी में इसी राजगृह में मगध सम्राट जरासंध और पांडु पुत्र भीम का मल युद्ध हुआ था।जनकपुर जाते समय विश्वामित्र के साथ राम-लक्ष्मण भी इस सुरम्य वन–प्रकृति क्षेत्रों का दर्शन किए थे।
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