ये सबाल व्यवस्था से जुड़े आम बड़ा सबाल है, एक मीडिया कर्मी के साथ आम जनता के लिये भी। इसका स्पष्ट जबाब पदासीन जिम्मेवार लोग ही बेहतर दे सकते हैं। बहरहाल, नालंदा के डीएम डॉ. त्यागराजन का एक व्हाट्सप गु्रुप से अचानक लेफ्ट हो जाना चर्चा का विषय बन गया है।
व्हाट्सअप के Nalanda Press Club नामक एक लोकप्रिय ग्रुप पर जब नगरनौसा प्रखंड के बीडीओ और मुखिया से जुड़े काले कारनामे की एक खबर का लिंक डाली गई। उस खबर की शीर्षक थी- “ओ सुशासन बाबू के डीएम साहेब, नगरनौसा में भ्रष्टाचार का यह कैसा नजारा ?”।
इस खबर लिंक पर ग्रुप के एक सम्मानित सदस्य ने टिप्पणी लिखी कि “वैसे भी डीएम साहेब के बीडीओ ही बेलगाम हो गए हैं। जिले में बड़े पैमाने पर बीडीओ को फेरबदल करने की जरूरत है।”
फिर क्या था। डीएम साहेब को खबर के साथ यह टिप्पणी इतनी नागवार गली कि वे ग्रुप से ही लेफ्ट हो गये। जबकि वे अच्छी तरह जानते हैं कि इस ग्रुप में प्रायः मीडियाकर्मी ही अधिक जुड़े हैं।
इस आलोक में ग्रुप में एक अन्य सदस्य की यही टिप्पणी भी काफी मायने रखती है- “ई देखिये.. डीएम साहेब ही लेफ्ट हो गये। एक अदद सबाल का सामना तक नहीं कर सकते… आईएएस हैं साहब। बीडीओ की आलोचना तक नहीं झेल सकते , बड़ा मुश्किल है आयना दिखाना सिस्टम को..”
अब सबाल उठता है कि नालंदा के डीएम साहब व्यवस्था के आयना से इतने बिदकते क्यों हैं। क्या उनका बिदकना ही समस्या का समाधान है। बेहतर होता कि यदि वे जनहित के किसी सूचना पर स्वंय कोई टिप्पणी कर जाते या किसी शिकायत पर गंभीर होने के भाव उनके दायित्व और कर्त्यव्य की साख को आगे बढ़ाती।
सबसे बड़ी बात कि डीएम हों या एसपी। IAS हों या IPS, वे स्वंय वेहतर जानते हैं कि वे एक लोक सेवक हैं और उनकी सब सुख-सुविधाएं आम जनता के खून-पसीने में ही निहित है। संवैधानिक व्यवस्था को दुरुस्त करना उनकी अंतिम नैतिक जिम्मेवारी है। इससे इतर उनकी नियत पर सबाल उठाना स्वभाविक है।