“बिहार में बुनियादी समस्याओं, बढ़ रहे क्राइम ग्राफ, बेरोजगारी की समस्या, बालू, गिट्टी तथा ईंट संकट तथा अन्य समस्याओं के हल में विफल सीएम नीतीश कुमार अब समाज सुधारक के चोले से अपनी छवि चमकाने की जुगत में हैं। इसलिए 21 जनवरी को बिहार फिर से एक और मानव श्रृखंला निर्माण को तैयार हो रहा है। इस बार दहेज प्रथा तथा बाल विवाह के खिलाफ सरकार ने 13 हजार 666 किलोमीटर लंबी मानव श्रृखंला बनाने का लक्ष्य रखा है।“
पटना (जयप्रकाश नवीन )। बिहार एक बार फिर मानव श्रृखंला का गवाह बनने जा रहा है।इस बार दहेज प्रथा और बाल विवाह उन्मूलन को लेकर चलाए जा रहे अभियान के समर्थन में रविवार 21 जनवरी को राज्यव्यापी मानव श्रृखंला का फिर से निर्माण होने जा रहा है।
एक साल बाद फिर से बिहार मानव श्रृखंला को लेकर तैयार है। इस बार दहेज प्रथा और बाल विवाह के खिलाफ मानव श्रृखंला बनाने की तैयारी युद्ध स्तर पर चल रही है। मानव श्रृखंला को लेकर समूचे प्रदेश में जिला प्रशासन सरकारी कर्मचारी के सर पर भूत सवार है।
पिछले दो महीने से राज्य का कामकाज ठप्प पड़ा हुआ है। सरकारी कार्यालयों में आम आदमी का कोई भी काम नहीं हो पा रहा है। पहले जिला प्रशासन ओडीएफ को लेकर पागल थी और अब मानव श्रृखंला को लेकर।
बिहार के सभी समाचार पत्रों तथा क्षेत्रीय न्यूज चैनलों में सिर्फ़ मानव श्रृखंला को लेकर समाचार भरे पड़े हुए है।जन सरोकार से संबंधित खबरें नदारद है। सरकारी कर्मियों को फरमान जारी कर दिया गया है कि मानव श्रृखंला पिछली बार से भी ज्यादा लंबी कैसे बनें। पागलपन की हद तक सरकारी कर्मचारी पहुँच गए हैं ।
इस बार का मानव श्रृखंला सीएम नीतीश कुमार के लिए प्रतिष्ठा का बिपय बना हुआ है। सीएम नीतीश कुमार पहले ही एलान कर चुके हैं कि इस मानव श्रृखंला में पिछले बार से भी ज्यादा लगभग पाँच करोड़ लोगों की भागीदारी होंगी। पिछले साल की मानव श्रृखंला का रिकार्ड तोड़ गिनीज बुक में नाम दर्ज करा के ही रहेंगे।
सीएम नीतीश कुमार रविवार को आयोजित मानव श्रृखंला को लेकर जो भी आकलन लगाए लेकिन पिछले साल के मानव श्रृखंला का क्या हश्र हुआ है।किसी से छिपा नहीं है। यह सरकार की छवि चमकाने तक ही सीमित रह गया।
जिस शराबबंदी के समर्थन में लोग आगे आए थें वही लोग धीरे धीरे मानव श्रृखंला को भूल गए। भले ही शराब बंदी से लोगों के जनजीवन में सुधार आया हो लेकिन, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि बिहार में शराब का कारोबार भी तेजी से बढ़ा। आए दिन शराब बरामद होने की खबरें आनी शुरू हो गई। शराबबंदी के समर्थन में उतरे लोग ही बाद में शराब पीते पकड़े गए ।
पिछले बार की मानव श्रृखंला को लेकर सरकार पर आरोप भी लगता रहा कि सरकारी खजाने से बड़ी धनराशि मानव श्रृखंला पर खर्च की गई।
उस समय विपक्षी भाजपा ने भी सरकार पर हमला बोला था ।मानव श्रृखंला को लेकर भाजपा खजाने की लूट और सरकार की नौटंकी बता रहे थे।
इस बार के मानव श्रृखंला को लेकर राजनीतिक परिदृश्य बदला हुआ है। सीएम नीतीश के साथ राजद और कांग्रेस की जगह भाजपा, लोजपा और हम जैसे राजनीतिक दल गठबंधन में हैं। उनकी मजबूरी है मानव श्रृखंला को समर्थन देने की।
इधर गठबंधन में शामिल रालोसपा सुप्रीमों उपेन्द्र कुशवाहा ने एलान किया है कि उनकी पार्टी भी बिहार में बदहाल शिक्षा व्यवस्था को लेकर मानव श्रृखंला का आयोजन करेगी।
गठबंधन में फेरबदल से भी इसका असर पड़ना लाजिमी हैं। राजद के लोगों में मानव श्रृखंला के प्रति अरूचि है। राजद समर्थित पंचायत प्रतिनिधियों ने असहयोग भी दिखाना शुरू कर दिया है।
एक तरफ मानव श्रृखंला को लेकर नीतीश कुमार के काम काज से कई वर्ग नाराज चल रहे हैं। सूबे के जनप्रतिनिधि मुखिया पहले ही अधिकारी छीने जाने से नाराज चल रहे हैं। नियोजित शिक्षकों के कई गुटों ने भी मानव श्रृखंला का बहिष्कार किया है।
आंगनबाडी कार्यकर्ता भी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं। उपर से बिहार बालू, गिट्टी और ईट संकट से मजदूर, व्यापारी वर्ग में भी पहले से ही सरकार के प्रति गुस्सा दिख रहा है।
किसी ने सरकार से पूछा है कि जो दहेज लेकर शादी कर चुके हैं, क्या वो मानव श्रृखंला में शामिल हो सकते हैं? किसी ने कमेंट किया कि सीएम साहेब बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के खिलाफ मानव श्रृखंला का निर्माण करें, सारे रिकार्ड ध्वस्त हो जाएंगे ।
इस बार हाईकोर्ट ने स्कूली छात्रों को जबरन मानव श्रृखंला में शामिल करने पर रोक लगा रखी है। सरकार को भी अदालत को आश्वासन देना पड़ा कि किसी के साथ जबर्दस्ती नहीं की जाएंगी।
जिला मुख्यालयों से आ रही रिपोर्ट से साफ झलकता है कि मानव श्रृखंला निर्माण को लेकर जनप्रतिनिधियों पर निजी शिक्षण संस्थानों पर दबाव बनाया जा रहा है कि मानव श्रृखंला में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कराएं।
अगर मानव श्रृखंला में बड़ी संख्या में स्कूली छात्र शामिल नहीं होते हैं तो मानव श्रृखंला उस मुकाम को हासिल नहीं कर सकता है, जो पिछले बार कर सका था।
इस मानव श्रृखंला से भले ही सीएम की व्यक्तिगत छवि चमक जाएँ, लेकिन बिहार का बदहाल चेहरा तो खिलने से रहा, यह एक यक्ष प्रश्न लोगों के सामने है।