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समाज के गुरु का यह कैसा उपहास !
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बिहार के वितरहित शिक्षकों का हाल
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अंगीभूत की आशा लिए कई सिधार गए स्वर्ग
नालंदा(जयप्रकाश नवीन)। “शिक्षा व्यवसाय में तो मूर्ख लोग शरण लेते हैं, किसी के द्वारा कहा यह कथन बिहार के वितरहित शिक्षकों पर पिछले 40 साल से सटीक बैठ रही है ।
बिहार में एक ऐसा विभाग, जहां पिछले 38-40 सालों से सरकार की ओर से शिक्षकों को वेतन के रूप में एक चवन्नी तक नसीब नहीं हुई है। वो विभाग है राज्य में व्याप्त वित रहित शिक्षा नीति के कलंक के रूप में सम्बद्ध डिग्री और इंटर कॉलेज।
पिछले 38 सालों में सरकार आती गई, जाती गई, पर किसी भी सरकार ने आजतक वितरहित शिक्षकों का अहल्या उद्गार में रूचि नहीं ली। राजनीतिक दलों ने इन्हें वोट बैंक के रूप में सिर्फ इस्तेमाल किया। सैकड़ों शिक्षक वेतन के अभाव में काल के मुँह में समा गए।
सरकार समाज के इन गुरूओं को भूख गरीबी एवं उपेक्षा के सिवा आज तक कुछ नही दे पाई है।
कहां गई गुरू वशिष्ठ की परम्परा। यह कहां का विचित्र तर्क है कि समाज का सबसे सम्मानित व्यक्ति सबसे दरिद्र रखा जाय।
ज्ञान की ज्योति जलाए रखने के लिए जिसने अपने शरीर के रक्त की बूंद बूंद दान कर दी है, ज्ञान की मसाल को पकड़े हुए जिसके हाथ जल रहे है पर वह उसे छोड़ता नही है। युगों से ज्ञान की भारी रथ को खींचते हुए जिसके कंधे छिल गए ,पैर लडखडाने लगे हैं। आंखों के आगे अंधकार छा चला है ।
आज जहाँ धर्म, नैतिकता, ज्ञान, सबको वस्तु मता दे दी गई है, जब छल कपट, स्वार्थ ही मानव -धर्म बन गया है, जिसे समाज में धन के साथ पाप का समझौता ही प्रतिष्ठा का कारण है -वहाँ समाज का गुरू अवहेलना का पात्र हो यह आश्चर्य की बात तो नहीं है, दुःख की अवश्य है। आज ज्ञान के देवता पर पर्याप्त मात्रा में बह सके इतने आंसू हम कहाँ से लाए।
हर साल हम पांच सितम्बर को शिक्षक दिवस मनाते हैं, शिक्षकों को सम्मानित करते हैं। बड़ी -बड़ी बातें सरकार करती है। लेकिन पिछले 40 साल से बिहार के वितरहित शिक्षकों के लिए शिक्षक दिवस कोई मायने नहीं रखता। शायद बिहार सरकार की नजर में वे शिक्षक ही नहीं है।
पिछले 38-40 साल में हजारों धरना-प्रदर्शन, विधानसभा का घेराव, भूख हड़ताल और न जाने कितने उपाय किए लेकिन राज्य सरकार के कान पर जूं तक नही रेंगी।
1995 में वितरहित शिक्षकों ने दिल्ली में पीएम और राष्ट्रपति के समझ नंग -धंडग प्रदर्शन भी किया। लाठियां खाई भीषण जाडे में रात सड़क पर गुजारी, जेल भरो अभियान चलाया, तीन महीने तक शिक्षक जेल में भी रहे। लेकिन किसी ने सुध नहीं ली।
इन वित रहित शिक्षकों को सबसे ज्यादा दंश, कांग्रेस और लालू-राबडी सरकार ने दी। अपने जीवन का बेशकीमती 25-30 साल इनकी सरकार में बर्बाद हो गया ।
2008 में नीतीश सरकार ने वितरहित कॉलेजों के अंगीभूत करने के वजाय “छात्र पास कराओ पैसे पाओ” योजना लागू की। यानी जिस कॉलेज से प्रथम, द्वितीय और तृतीय श्रेणी से पास छात्रों के हिसाब से पैसे देने की घोषणा की। वो भी ऊंट के मुँह में जीरा।अनुदान की राशि का बंदरबांट होने लगा। शिक्षकों को हजार, दो हजार साल में एक बार मिलने लगा। यानी बिहार के नियोजित शिक्षकों से भी बदतर हालत में है वितरहित शिक्षक। बिहार में नियोजित प्राथमिक विद्यालय के शिक्षकों को भी प्रतिमाह 15 हजार रूपये मिलते हैं ।
पिछले 38 सालों में सैकड़ों शिक्षक और उनके परिजन बीमारी और इलाज के अभाव में मर गए। उनके जवान बेटियों की शादी बामुशकिल से हो पा रही है। कई तो अभी तक कर्जे में है।
38 सालों में इनके पढाए छात्र बड़े पदों पर है। लेकिन खुद फटेहाल दशा में जीवन यापन कर रहे हैं। इनके द्वारा पढ़े कई छात्र आज मीडिया हाउस में काम कर रहे होंगे लेकिन शायद ही कोई वितरहित शिक्षकों के फटेहाल दशा पर कोई रिपोर्ट की होगी।
नीतीश सरकार ने 2008 में पास करो अनुदान पाओ के आधार पर अनुदान मुहैया कराने की घोषणा की थी। तीन सालों तक अनुदान मिला भी लेकिन 2011 से अब तक अनुदान की राशि कॉलेजों को नही मिल पा रही है। अनुदान की आस लिए सैकड़ों शिक्षक इस वर्ष सेवानिवृत्त हो गए। लेकिन अनुदान की राशि उनके हाथ से काफी दूर।
जिस राज्य में न गरीबी का मुद्दा उठता है, न रोजगार की और न प्रदेश के विकास की, न कानून व्यवस्था मुद्दा बनता है और न ही खराब शिक्षा व्यवस्था। सीएम साहेब आजकल वोट के सुरूर में शराब बंदी की राग अलापने में लगें हुए हैं।
सीएम साहेब शराब बंदी कानून से फूर्सत मिलें तो राज्य के 225 डिग्री कॉलेजों के हजारों शिक्षकों पर भी ध्यान दें, जिन्हें 2010 से अनुदान की राशि नही मिली। 2011 में 202 करोड़ की जगह सिर्फ 109 करोड़ निर्गत किया गया वो भी आज तक आपके भ्रष्ट अधिकारियों ने भुगतान नही की।