“एक तरफ जहां आम जन से जुड़े मामले में नालंदा पुलिस प्रायः बिना अनुसंधान के मनमानी कार्रवाई करने में माहिर है, वही शीर्ष प्रशासन द्वारा चिन्हित बतौर दोषी लोगों के खिलाफ दर्ज एफआईआर को देख उसके हाथ-पांव फूलने लगते हैं।”
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज। पटना प्रमंडलीय आयुक्त सह प्रथम लोक शिकायत निवारण प्राधिकार श्री आन्नद किशोर के आदेश से जिले के हरनौत थाना में ओडीएफ में गड़बड़ी के मामले को लेकर कुल 84 दोषी के खिलाफ प्रथामिक दर्ज कराये गये।
नालंदा जिले के नगरनौसा प्रखंड क्षेत्र स्थित गिलानीचक गांव में नियम विरुद्ध निर्माणाधीन पानी टंकी धाराशाही हो गई। बिहार सरकार के कबीना मंत्री ललन सिंह के पैत्रिक गांव होने के कारण यह मामला काफी सुर्खियों में रहा।
इस अनियमियता के मद्देनजर नालंदा डीएम डॉ. त्यागराजन एस एम के आदेश पर चंडी थाना में दोषी लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई।
इससे इतर एक बड़े मामले में पुलिस की हाथ पर हाथ धरे बैठे रहना उसकी कार्यशैली से अधिक उसकी नियत पर सबाल उठते हैं।
मामला नालंदा जिले के अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन नगरी राजगीर स्थित पौराणिक स्थल मलमास मेला सैरात भूमि से जुड़ा है।
इस मामले की एक लंबी सुनवाई के बाद पटना प्रमंडलीय आयुक्त सह प्रथम लोक शिकायत निवारण प्राधिकार श्री आन्नद किशोर के आदेश से अवैध ढंग से जमाबंदी कायम और लगान निर्धारण करने-कराने के मामले में कुल 4 लोगों के खिलाफ स्थानीय राजगीर थाना संख्या-85/2018 नामजद एफआईआर दर्ज की गई। इस एफआईआई में उल्लेखित भादवि की सभी धाराएं गैर जमानती हैं।
यह प्राथमिकी राजगीर डीसीएलआर ने जिला प्रशासन की गठित एक उच्चस्तरीय टीम द्वारा जांचोपरांत दोषी पाये गये मलमास मेला सैरात भूमि पर काबिज बड़े अतिक्रमणकारी भू-माफिया शिवनंदन प्रसाद , तत्कालीन डीसीएलआर उपेन्द्र झा , अंचलाधिकारी आनंद मोहन ठाकुर एव राजस्व कर्मचारी अनिल कुमार पर गैर जमानती धाराओं के तहत राजगीर थाने में दर्ज की है।
बता दें कि मलमास मेला सैरात की कूल भूमि 73 एकड़ 03 डिसमिल है और इस सैरात भूमि पर व्यापक पैमाने पर अतिक्रमण किये जाने का खुलासा पिछले वर्ष जुलाई माह में हुआ।
बीचली कुआं राजगीर के आरटीआई एक्टिविस्ट पुरुषोतम प्रसाद द्वारा लोक शिकायत निवारण प्रथम अपीलीय प्राधिकार में दायर वाद की सुनावाई के दौरान अपने अंतरिम आदेश में पटना प्रमंडलीय आयुक्त आन्नद किशोर ने नालंदा के डीएम के अधिकृत लोक प्राधिकार को 24 घंटे के अंदर दोषियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर 36 घंटे के भीतर रिपोर्ट करने के निर्देश दिये थे।
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज टीम ने उदाहरणार्थ उपरोक्त तीन मामलों की पड़ताल की। इस दौरान किसी भी थाने की पुलिस खुद के शासन के द्वारा दर्ज मामलों में संतोषजनक जबाब देने की स्थिति में नहीं दिखी। किसी भी मामले में पुलिस ने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है।
अब सबाल उठता है कि यह कैसा सुशासन और कानून का राज है कि पुलिस की कार्रवाईयां आम और खास मामला की तराजू पर तौले जाते हैं तथा आरोपी-दोषी व्यक्ति के प्रभाव का आंकलन किया जाता है ?
स्थिति तब कहीं अधिक गंभीर बन जाती है, जब विभागीय रहनुमा सब कुछ जानते हुये भी अनजान बने रहते हैं और अधिनस्थ पुलिस अफसर उपरी आदेश के इंतजार का रोना रोते हैं।
कितनी अजीब बात है कि मामला जब सफेदपोशों-रसूखदारों से जुड़ा हो तो जिम्मेवार पुलिस अफसर अपनी तोतारटंत बोल से पल्ला झाड़ लेते हैं कि उपरी आदेश का इंतजार है। मानो यहां थाना स्तर पर सब कुछ उपरी आदेश से होने की परंपरा कायम हो गया हो।