“पिछले छह साल से चर्चित राजनीतिक के ‘पॉलिटिक्स PK’ प्रशांत किशोर एक बार फिर सीएम नीतीश कुमार के खेवनहार बन गए हैं। जदयू को आगामी लोकसभा और विधानसभा में फिर से सत्ता में लाने के लिए रणनीतिकार के रूप में देखा जा रहा है…”
पटना (जयप्रकाश नवीन)। पटना में अणे मार्ग में आज जदयू की ओर रही राज्य कार्यकारिणी की बैठक में प्रशांत किशोर भी सीएम नीतीश कुमार के साथ एक ही गाड़ी में बैठकर पहुँचे हैं। इस बैठक में प्रशांत किशोर की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रहने वाली है।
2012 में गुजरात चुनाव में तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी के चुनाव अभियान से अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत करने वाले 40 वर्षीय प्रशांत किशोर ने लोकसभा चुनाव में श्री मोदी को केंद्र का तख्ता दिलाने में सफलता पाई थी।
वहीं बिहार में लोकसभा चुनाव में जदयू की करारी हार के बाद सीएम नीतीश कुमार को तीसरे कार्यकाल में काफी अहम् भूमिका निभाई थीं।
प्रशांत किशोर के बारे में कहा जाता है कि अगर किशोर चुनावी रंगमंच पर आते हैं तो उनकी सत्ता छिन सकती है। जिसका परिणाम देश ने बिहार विधानसभा चुनाव में देखा था। जब लोकसभा चुनाव में धमाल मचाने के बाद एनडीए की मिट्टी पलीद हो गई थी। जिसके पीछे प्रशांत किशोर का हाथ बताया जाता था।
बाद में प्रशांत किशोर ने कांग्रेस के लिए काम किया, लेकिन कांग्रेस को वह कुछ खास सफलता हाथ नहीं दिला सके।
अब देश के चर्चित चुनावी राजनीतिकार प्रशांत किशोर फिर से जदयू के नाव पर सवार सीएम नीतीश कुमार के लिए कितना ‘खेवनहार’ बन कर उभरेगें यह तो समय ही बताएगा।
कहा जाता है कि आज हर राजनीतिक दल प्रशांत किशोर को अपने पार्टी का चुनाव अभियान की कमान देना चाहता है। उनकी संस्था ‘इंडियन पाॅलिटिकल एक्शन कमिटी’ चुनाव प्रचार अभियान की कमान संभालती है।उनकी संस्था का उद्देश्य राजनीतिक सलाहकार बनकर एक वकील की तरह अपने क्लाइंट को जीताना।
मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे प्रशांत किशोर के पिता श्रीकांत पांडे रिटायर्ड डॉक्टर हैं। पिछले 18 साल से बक्सर में अपना निजी क्लिनिक चला रहे हैं।
प्रशांत ने पटना के साइंस कॉलेज से इंटर की पढ़ाई करने के बाद उन्होंने हैदराबाद के एक कॉलेज से इंजिनियरिंग की। इसके बाद अफ्रीका में यूएन हेल्थ एक्सपर्ट के तौर पर काम कर चुके हैं। नौकरी छोड़कर सात साल पहले भारत लौटे हैं ।
कभी तीन साल तक पीएम नरेंद्र मोदी के उनके गांधीनगर घर में रहने वाले प्रशांत किशोर का नया ठिकाना फिर से सीएम नीतीश कुमार के घर,7 सर्कुलर रोड हो गया है।
कहा जाता है कि 2014 लोकसभा चुनाव की जीत का पूरा श्रेय अमित शाह और आरएसएस को मिला, लेकिन प्रशांत किशोर और उनकी टीम को लगा कि उन्हें वो वाह वाही नहीं मिला जिसके वो हक़दार थे।
इसलिए वे लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से दूरी बना ली थीं। बिहार में जदयू के पक्ष में मैदान में कूदने के पीछे अमित शाह को सबक़ सिखाने की सोच शामिल बतायी जाती थी। जिस मकसद में वें सफल भी रहे।
राजनीतिक सलाहकार के रूप में श्री किशोर का पहला चुनाव 2012 का गुजरात विधानसभा चुनाव था और बिहार का विधानसभा चुनाव तीसरा था।
मोदी के साथ काम करते हुए रणनीति बनाने में हासिल किए अनुभवों को इस्तेमाल कर, किशोर की आईपीएसी टीम बिहार में एक क़दम आगे बढ़ती दिखी। बिहार में एनडीए की हार और महागठबंधन की जीत से भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को जरूर प्रशांत किशोर की कमी खली होगी।
2015 में बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की जीत पर सीएम नीतीश कुमार ने इस जीत का श्रेय प्रशांत किशोर को दिया ही नहीं बल्कि साथ लेकर मीडिया के सामने आएं भी।वही राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने श्री किशोर को बुद्धिजीवी तक बता डाला।
श्री किशोर के बारे में कहा जाता है कि वें जिस पार्टी के लिए काम करें उस पार्टी के नेता की साख हो।साथ ही वह शीर्ष नेता के साथ रहना करीब रहना चाहते हैं। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर एक बार फिर से जदयू के खेमे में आ गए हैं।
लेकिन इस बार उनके सामने कई चुनौतियाँ भी है। इस बार बिहार में जदयू और बीजेपी साथ हैं। चुनाव प्रचार अभियान के दौरान उनका और उनकी टीम का आमना -सामना भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से हो सकती है। बीजेपी और जदयू की साझा चुनावी रैली की कमान श्री किशोर कैसे संभालेगें। यह एक महत्वपूर्ण सवाल है।दूसरी तरफ सीएम नीतीश कुमार की सुशासन की छवि जिस तरह धूमिल हुई है।
राज्य में अपराध, भ्रष्टाचार और अराजकता बढ़ी है, वहाँ श्री किशोर के लिए जदयू का ‘खेवनहार’ बनना आसान नहीं दिख रहा है।
पिछले यूपी चुनाव में कांग्रेस के प्रचार अभियान की कमान संभाल रखें प्रशांत किशोर के कोई खास उपलब्धि नहीं देखी गई।वैसे भी बिहार में चुनावी रणनीति कम और ‘थ्री सी ’(कास्ट,कैस और क्रिमनल) ज्यादा हावी रहता है।
अब आने वाला समय ही बताएगा कि प्रशांत किशोर और उनकी टीम सीएम नीतीश की नैया पार लगाती है या डूबा देती है?