“बिहार के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय रेस में हैं और उनका फेस मीडिया में साफ तौर पर दिखाई दे रहा है, लेकिन……”
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क। खबर है कि डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय के नवादा और टाउन थाना में आधी रात को पहुंचने की सूचना मिलते ही हड़कंप मच गया।
थानों में निरीक्षण के बाद बात करते हुए डीजीपी ने कहा कि दोनों थानेदार नालायक हैं। अब उन्हें सजा भुगतनी होगी। प्रमोशन पाकर डीएसपी बनने वाले थे। लेकिन अब विभागीय कार्यवाही होगी। जिदंगी भर इंस्पेक्टर ही बने रहेंगे।
गुप्तेश्वर पांडेय ने यह भी कहा कि चुनाव आ गया है। बहुत कुछ बदला नहीं जा सकता। आचार संहिता लागू होने वाला है।
उन्होंने मीडिया से कहा कि पूरे बिहार को पता है कि डीजीपी कभी भी पहुंच सकते हैं। कई जिले सुधर गए। लेकिन आरा नहीं सुधरा था। बहुत कुछ गड़बड़ है। पर अब सुधरना होगा। नहीं तो सभी समझ लें। वे पूरे बिहार को संदेश दे रहे हैं।
बतौर डीजीपी, “स्टेशन डायरी को थानेदारों ने पर्सनल डायरी समझ रखा है। ये सब चलने वाला नहीं है।कई – कई दिनों तक पेंडिंग रहती है स्टेशन डायरी।”
उन्होंने कहा कि “यह मानने में गुरेज नहीं कि आरा की स्थिति ऐसी है कि सिर्फ पैसे वालों के लिए थानेदार काम कर रहे हैं। गरीब – गुरबा का ध्यान नहीं रखते हैं। बिना वजह भी थाने में लाकर बंद कर देते हैं। जो थेथर हैं, उनकी थेथरई छुड़ा देना उन्हें आता है।छुड़ा भी देंगे।”
अचानक आरा पहुंचे डीजीपी ने कहा कि “एसपी के कंट्रोल में नहीं है थानेदार, एक्शन तो ऐसा होगा कि सब देखेंगे”।
बकौल डीजीपी, “बिहार में थानों की सबसे ज्यादा खराब हालत आरा की है। यहां जो इंस्पेक्टर राज चल रहा है उसको खात्मा होगा।”
डीजीपी ने कहा कि “जिसे एसपी के कंट्रोल में थानेदार नहीं, उन्हें भी अब सोचना होगा। ऐसे लोगों पर एक्शन तो ऐसा होगा कि आप लोग देखिएगा।”
डीजीपी ने कहा कि “आरा के हालात ऐसे हैं कि ना तो यहां थाना में पुलिस है, न ही कोई गश्ती है। जो नहीं सुनेगा वो नपेगा।”
बहरहाल, डीजीपी की ऐसी कार्यशैली जहां प्रशंसनीय भी है तो उनका इस तरह से मीडिया के जरिए सामने आना कई सबाल भी खड़े करते हैं। यदि समूची आरा पुलिस निकम्मी है तो उसे बदल दीजिए। किसने रोका है। आप विभागीय हाईकमान हैं।
थाना स्तर पर भी अपनी समस्याएं हैं। पुलिस कर्मियों को उससे नित्य दो-चार होना पड़ता है। डीजीपी आरा और नवादा पहुंच गए, लेकिन एक ट्रक ने सरमेरा थाना के पुलिस गश्ती दल को कुचल डाला। उसमें एएसआई कार्तिक कुमार की दर्दनाक मौत हो गई।
उनका पार्थिव शरीर बिहारशरीफ में पड़ा रहा, लेकिन उसपर डीजीपी साहब की नजर नहीं गई और न ही सीएम साहब का। जबकी दोनों नालंदा की धरती पर ही थे।
कथार्थ, डीजीपी की नीति और नियत पर सबाल नहीं उठाए जा सकते। लेकिन मीडिया में जिस तरह के और जिस तरह से उनके वयान आ रहे हैं, वे कहीं न कहीं कार्यशील पुलिस का ही मनोबल तोड़ने वाला कहा जाएगा।