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डीएम और एसपी के अनुदेश को यूं ढेंगा दिखा रहे हैं नालंदा पुलिस-प्रशासन के नुमाइंदे

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New Doc 2017-10-01

एक्सपर्ट मीडिया न्यूज (मुकेश भारतीय)। बिहार के  नालंदा जिले में  डीएम डॉ. त्यागराजन एसएम और एसपी सुधीर पोरिका  ने सोशल मीडिया को लेकर कई तरह के संयुक्त अनुदेश जारी कर रखे हैं। लेकिन, दुर्भाग्य की बात है कि यहां पुलिस-प्रसाशन के लोग ही उसकी धज्जियां उड़ाने में लगे हैं।

नालंदा में थाना, अंचल, अनुमंडल या फिर जिला स्तर पर पुलिस-प्रशासन अपनी दैनिक या विशेष कार्रवाईयां करती है। उसे लेकर प्रायः डीएसपी और एसपी स्तर पर प्रेस कांफ्रेस (वार्ता) आयोजित की जाती है। लेकिन आश्चर्य की बात  है कि थाना स्तर पर उसी की प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दी जाती है, उस पर न तो किसी अधिकृत अफसर का हस्ताक्षर होता है और नहीं किसी कार्यालय का मुहर। जबकि एसपी और डीएम द्वारा अनुदेश के अनुसार सोशल मीडिया यथा Whatsapp / Facebook / Twitter पर बिना पुष्टि की सूचनाएं न डालने की हिदायत दी गई है।

एक सर्वेक्षण के अनुसार नालंदा डीएम और एसपी द्वारा सोशल मीडिया पर जारी अनुदेश के बाबजूद राजगीर, बिहारशरीफ, हिलसा डीएसपी या फिर एसपी स्तर पर अनेक ऐसे प्रेस विज्ञप्ति जारी किये गये हैं, जिन पर किसी भी स्तर से जारीकर्ता के अनुमोदन नहीं किया गया है।

प्रायः यह भी देखा गया है कि अपनी उपलब्धियों को लेकर प्रेस वार्ता में जो कुछ भी बताया जाता है, प्रेस विज्ञप्ति में हुबहु वही सब होता है। जो प्रेस विज्ञप्तियां जारी की गई जाती है, वह प्रेस कांफ्रेस करते समय संबंधित अफसर की टेबल पर भी पड़ा रहता है, जिसे बाद में अधिनस्थों के जरिये अनाधिकृत तौर पर शोसल साइटों पर वायरल कर दिया जाता है। कई मौकों पर तो प्रेस कांफ्रेस सिर्फ नाम की होती है। वहां कोई मीडियाकर्मी नहीं होता है। पुलिस अफसर खुद फोटो खींचवाते हैं, एक नोट लिखते हैं और उसे सोशल ग्रुपों में वायरल कर देते हैं।  

सबाल उठता है कि किसी भी माइक्रो सोशल साइट ग्रुप में अनाधिकृत तौर पर प्रशासनिक उपलब्धियों को सार्वजनिक तौर पर वायरल करने का औचित्य क्या है। कभी कोई असमाजिक तत्व या सिरफिरे इसकी आड़ में कभी कोई अनहोनी भरी सूचनाएं वायरल नहीं करेगा, इसकी गारंटी कौन देगा।

आज कल मीडिया में ऐसे लोगों की भरमार हो गई है, जिसे महज दो चीजें ही चाहिये। पहला थाना, प्रखंड, अंचल, अनुमंडल, जिला स्तर पर मूल पत्रकारिता के सिद्धांतों  से इतर अफसरों से स्वार्थगत संबंध और घर बैठी सूचनाएं। इस होड़ में वे वहीं सब छाप-दिखा जाते हैं, जो उन्हें हास्यास्पद बना जाती है।

नालंदा में हाल ही में एक अखबार में एक कॉलेज की असंबंद्धता की खबर छप गई। बाद में उसी अखबार में खबर छपी कि उक्त कॉलेज की मान्यता कभी असंबंध हुई ही नहीं।

एक अखबार में स्नातक की परीक्षा की तिथि से जुड़ी खबर प्रकाशित कर दी गई। खबर प्रकाशित होने के बाद पता चला कि स्नातक की परीक्षा की तिथि अभी घोषित ही नहीं हुई। इस तरह के दर्जनों उदाहरण हैं, जो सोशल मीडिया पर वायरल किये गये थे और वायरल करने वाले भी व्यवस्था से जुड़े लोग थे।

नालंदा में मीडिया खास कर सोशल मीडिया के वहाट्सएप्प ग्रुप को लेकर सबसे बड़ी समस्या है कि जितने लोग हैं, उतने ग्रुप। पुलिस, प्रशासन के लोग भी अपने चहतों के ग्रुप में शामिल होते हैं और अप्रत्यक्ष रुप से उन्हें संचालित करते हैं।

राजगीर, बिहारशरीफ, हिलसा अनुमंडल क्षेत्रों से लेकर अंचल, प्रखंड, थाना स्तर पर मीडिया से जुड़े कथित लोग अपना अलग-अलग ग्रुप बनाये हैं। उसमें वहीं सूचनाएं प्रसारित होती है, जैसा कि बीडीओ, सीओ, थाना प्रभारी लोग चाहते हैं। निश्चित तौर पर उनकी चाह अनाधिकृत होती है और उनकी नीयत में बेईमानी। उनकी इस बेईमानी की पुष्टि कई मौकों पर होती रही है।

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