एक्सपर्ट मीडिया न्यूज़ नेटवर्क डेस्क। सीएम नीतीश कुमार कथित जंगलराज के जन्मदाता लालू प्रसाद यादव के साथ 2015 में सता में आएं तो एक ऐतिहासिक फैसला किया। इस फैसले से बिहारी समुदाय का एक बड़ा हिस्सा उत्साहित था। यह एक ऐसा सुधार आंदोलन था, जो नीतीश कुमार को नये दौर के राजा राममोहन राय की कद में खड़ा कर सकता था। यह सुधार था शराबबंदी।
पूर्ण शराबबंदी के पौने छह साल बाद भी सीएम नीतीश कुमार शराबबंदी के फैसले को एक क्रांतिकारी कदम बताते रहे हैं। लेकिन इसकी असलियत बेहद डरावनी शक्ल में सामने आती रही है।
सीएम नीतीश कुमार शराब से होने वाले नुक़सान को समझाते रहे, शराबबंदी का दावा करते रहे, लेकिन शराबबंदी से सांसबंदी का सिलसिला थमा नहीं। बिहार में कहने को पूर्ण शराबबंदी कानून लागू है, बाबजूद यहां के लोग जहरीली शराब पीकर दम तोड़ रहे हैं।
पिछले साल बेतिया, गोपालगंज,सासाराम, नवादा जैसे कई जिलों से आई मौत की भयावह खबरों ने शराबबंदी के जमीनी सच्चाई की पोल खोल रख दिया है। बिहार में जहरीली शराब का ऐसा कहर है, जहां मौतों की चीत्कार है।
बिहार में जहरीली शराब से मौत की घटनाएं आए दिन सामने आती रहती हैं। एक बार फिर ऐसा हुआ है। लेकिन खास बात यह है कि इस बार यह घटना मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा में हुई है।
जिला मुख्यालय बिहारशरीफ के छोटी पहाड़ी में मकर संक्रांति पर्व के मौके पर जहरीला जाम चीख पुकार लेकर आया,कई जिंदगियां छीन ली। जहरीली शराब से आठ लोगों की मौत की अपुष्ट खबरें हैं। यद्यपि पुलिस जहरीली शराब से मौत नहीं मान रही है।
लेकिन स्वजनों का कहना है कि शराब से ही मौत हुई है। मामला चाहे जो हो,सबको पता है। जहरीली शराब से पूरे गांव में गम है, मातम पसरा हुआ है। हाहाकार है, जिन्होंने जान गंवाई उनका लाचार परिवार,जो जहर के कहर से किसी तरह बच गए उनके दिल में दहशत भरमार होगी।
मन्ना मिस्त्री बरबीघा में बड़े वाहनों की बाडी बनाने का काम करते थे। शनिवार को मकर संक्रांति पर दही चूड़ा खाने घर आएं किसे पता था उनकी आखिरी गांव यात्रा होगी।उनकी चार पुत्रियां,दो पुत्र को पिता का साया से दुर हो जाना पड़ा।
ऐसे कई परिवार है जिनके घर के कमाऊ सपूत जहर के कहर से बच नहीं सके। जहरीली शराब से मौत की घटनाओं पर नजर डालें तो गोपालगंज और नवादा की घटनाएं तेजी से जेहन में आती हैं।
करीब दो महीने पूर्व समस्तीपुर, बेतिया और गोपालगंज में जहरीली शराब से करीब 40 लोगों की मौत हो गई थी। इसके बाद सीएम नीतीश कुमार ने विशेष बैठक बुलाई। तब पुलिस-प्रशासन हरकत में आया। कई लोगों की गिरफ्तारियां हुईं। लेकिन एक बार फिर नालंदा में आठ की मौत ने टीस को ताजा कर दिया है।जो पीड़ित परिवारों को सालों साल सालते रहेगा।
बिहार में वर्ष 2021 में जहरीली शराब के एक-दो नहीं पूरे 13 मामले सामने आए। इनमें करीब 66 की मौत हो गई। इस साल नालंदा में हुई घटना से पहले बीते वर्ष 28 अक्टूबर की रात मुजफ्फरपुर के सरैया थाना क्षेत्र में आठ लोगों की मौत के बाद हड़कंप मच गया। पता चला कि लोगों ने शराब पी थी।
इसके बाद उनकी तबियत बिगड़ने लगी। इससे पूर्व मुजफ्फरपुर के कटरा में वर्ष के आरंभ में 17 एवं 18 जनवरी को जहरीली शराब ने पांच की जान ले ली थी। अगले महीने 26 फरवरी को मनियारी में दो की मौत हुई थी।
वैशाली, सिवान में भी ऐसी एकाध घटनाएं होती रहीं। नवादा जिले में जहरीली शराब पीने से नगर थाना क्षेत्र के डेढ़ दर्जन लोगों की मौत की बात सामने आई थी। जुलाई महीने में पश्चिमी चंपारण में भी एक दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत हो गई।
नवंबर महीने में गोपालगंज जिले के 18 और पश्चिम चंपारण के 17 लोगों की जान जहरीली शराब के कारण चली गई। पता चला कि गोपालगंज के मोहम्मदपुर थाने के कुशहर तुरहा टोला और दलित बस्ती में दो दर्जन लोगों ने पाउच की शराब पी थी।
कुछ देर बाद ही उकी तबियत बिगड़ने लगी। पेट में जलन और मुंह से झाग आने के बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया। वहां 10 की मौत हो गई। अगले दिन तक मृतकों की संख्या 18 पहुंच गई।
शराबबंदी कानून लागू होने के कुछ ही महीने बाद गोपालगंज के खजुरबानी की घटना ने तहलका मचा दिया था। स्वतंत्रता दिवस के दिन 2016 में नगर थाने के खजुरबानी में जहरीली शराब से 19 लोगों की मौत हो गई। एक दर्जन लोगों की आंखों की रोशनी चली गई थी। इस मामले में कोर्ट ने पहली बार शराब कांड में किसी को मौत की सजा दी। कुल नौ को फांसी और चार को उम्रकैद की सजा दी गई।
वैसे नालंदा में जहरीली शराब पीने से लोगों की मौत की यह घटना भले ही आखिरी न हों, लेकिन बिहार में हर जगह एक चुटकुला मशहूर है, बिहार में क्या चीज़ है जो दिखती नहीं, लेकिन बिकती हर जगह है।
शराबबंदी कानून को बिहार के कई दिग्गज अलग तरीके से देखते हैं,सबकी नजरों में यह अच्छा काम तो है लेकिन इसे लागू करने के गलत तरीके से यह प्रभावी नहीं रहा। बिहार के पूर्व डीजीपी अभयानंद शराबबंदी कानून की नाकामी को आर्थिक नजरिए से देखते हैं। वे मानते हैं, शराबबंदी करके सरकार ने कुछ लोगों को बहुत अमीर बना दिया है, लेकिन दिक्कत है कि वह पैसा कहीं कागज पर नहीं है।
हर सरकार की तरह नीतीश कुमार और उनके सरकारी अमले के लोग शराबबंदी के नाकामी के आरोपों पर अच्छी नीयत का जुमला दुहरा रहें हैं। लेकिन अब तो सहयोगी भाजपा ने भी मुख्यमंत्री से साढ़े पांच साल पुराने शराबबंदी कानून की समीक्षा की बात कही है।
इसमें कोई दो मत नहीं कि शराबबंदी से बिहार के आम जन-जीवन को बड़ी राहत मिली। लेकिन शराब के धंधेबाजों ने उसके बाद जो शराब के ही अवैध कारोबार की दुर्गंध फैला रखी है,उसे रोकने सरकार नाकाम क्यों हो रही है?
इन मौतों के अंतहीन सिलसिले और चीत्कार के बाद नीतीश कुमार की अच्छी नीयत व्यावहारिक नीति की ओर जाती है या नही! वैसे जाहिर यही हो रहा है कि सुशासन के दावेदार नीतीश कुमार अपने दावे पर उठ रहे सवालों से उकताकर अब समाज सुधारक की प्रसिद्धि पाने जैसी जुगत में लग गए हैं।