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‘इन दंगों के लिए अगर कोई दोषी है तो वह हैं खुद सीएम नीतीश कुमार’

रामनवमी के पहले से डीजीपी गृह सचिव और स्वयं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बैठक में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये अधिकारियों को हिदायत था कि किसी भी कीमत पर शांति नही टूटनी चाहिए, दंगे नही होना चाहिए। अगर होते है तो सीधे डीएम और एसपी जिम्मेदार होंगे। लेकिन क्या हुआ। आज बिहार के छह जिलो में दंगा फैल चुका है। कार्रवाई किसी पर नही।”

नीतीश जी आप तो ऐसे न थे ………

-: अमिताभ ओझा :-

बिहार में रामनवमी के बाद जिस तरह से हिंसा फैली है उससे कई सवाल खड़े हो गए है। कई राजनीतिक मायने निकाले जा रहे है। सत्ता के गणित का ताना बाना बुना जाने लगा है। इन दंगों के पीछे की राजीनीतिक तार तलाशे जा रहा है। आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी है।

लेकिन मैं खुद को क्राइम रिपोर्टर मानता हूं और उस नजरिये से इन दंगों के पीछे के कारणों को बताता हूं। भले ही इन दंगों के पीछे आप बीजेपी, आरएसएस या बजरंगदल का हाथ माने, लेकिन मेरी नजर में इन दंगों के लिए कोई दोषी है तो वो है मुख्यमंत्री नीतीश कुमार।

nitish kumar bihar cmआप पूछेंगे क्यो?  सवाल जायज है लेकिन इसके पीछे भी बड़ा कारण है। गुड गवर्नेंस, न्याय के साथ विकास की बात अब बेमानी हो गई है। अगर देखा जाए तो इन घटनाओं के पीछे जो सबसे कारण है वो है शासन के प्रति अधिकारियों में कोई डर नही रहना। जो जहा है वही पड़ा है।

अगर देखा जाए तो आरजेडी के शासन के बाद जब नीतीश कुमार सत्ता में आये तो थे बिहार की पुलिस बिहार की ब्यूरोक्रेसी में एक बड़ा बदलाव आया था। ऐसा लगा था मशीनरी में लगा जंग साफ हो गया है।

कानून का राज स्थापित हुआ ,सिर्फ अपराध और अपराधियों पर ही लगाम नही लगा बल्कि पुलिस और नौकरशाही को भी दुरुस्त किया गया। उनमें यह डर पैदा हुआ कि अगर गलत काम किये तो सरकार नही छोड़ेगी। मनपसंद पोस्टिंग नही मिलेगी। तबादला कर दिया जाएगा।

लेकिन अगर पिछले कुछ वर्षों से देखे तो ऐसा लगता है कि नीतीश कुमार खुद सिस्टम से हार गये है। अधिकारियों से वे डरने लगे है, अधिकारी उनसे नही।

2015 में आरजेडी के साथ सत्ता में आने के बाद से ही आईएएस और आईपीएस अधिकारियों का बड़े पैमाने पर तबादला नही हुआ है।

इससे पहले 2014 में मे जब जीतन राम मांझी सत्ता में आये तो कुछ किया, लेकिन पुनः नीतीश कुमार ने उन अधिकारियों की तैनाती की, अधिकांश का पुराने स्थान पर ही रहा।

आईएएस और आईपीएस ही क्यों डीएसपी स्तर के पदाधिकारियों का तबादला भी नही किया। तबादले नही होने से शासन के प्रति जो डर रहता है वो समाप्त हो गया है।

एक एक अधिकारी चार साल पांच साल से एक ही जगह पदस्थापित है। उसे इस बात का डर नही है कि अगर कुछ गलत हुआ था उसका तबादला हो सकता है, उस पर कार्रवाई हो सकती हैं।

मीडिया के लोग स्थानीय लोग फोन करते रहे, दुकानें जलती रही अधिकारी कानों में तेल डालकर सोए रहे। ऐसा इसलिए कि इनके मन का खौफ खत्म हो गया है।

राजधानी पटना में डीएसपी ,एएसपी स्तर के कई अधिकारी है जो साढ़े तीन से लेकर चार सालों से एक ही जगह तैनात है। कमोबेश यही हाल दूसरे जिलों का भी है।

क्योंकि 2015 के बाद से डीएसपी का तबादला ही नही हुआ है। इसी तरह कई जिलो के एसपी भी तीन से चार वर्षों से एक ही जगह बने हुए है।

कही न कही मेरी समझ से यह एक बड़ी समस्या है। अधिकारी काम नही करना चाहते है। बात बढ़ जाती है और फिर सरकार की किरकिरी होती है लेकिन फिर भी इन अधिकारियों का तबादला नही होता।

जिन जिन शहरों में दंगा हुआ है, वहा अगर देखिये तो यही हालत है। तैनात अधिकारियों की लापरवाही के कारण मामला बढ़ा है। ये तमाम घटनाएं इन नौकरशाहों के लिए एक डेली रूटीन बन गया है, जिस कारण वो बिंदास रहते है।

चूंकि कार्मिक और गृह दोनो सीएम नीतीश कुमार के पास ही है, इसलिए इस आरोप का ठीकरा वो दूसरे पर नही थोप सकते है। उनकी पहचान रही है कि बेगुनाह फंसाये नही जाएंगे और गुनाहगार बक्शे नही जाएंगे….लेकिन वर्तमान हालात में नही लगता कि बिहार में ऐसा हो रहा हैं।

यहां बेलगाम अपराधी नही बेलगाम अफसर हो गए है….नीतीश जी आप तो ऐसे न थे…सिस्टम सुधरेगा तो बाकि लोग खुद ब खुद समझ जाएंगे।

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