Home आधी आबादी अब महज टाइमपास का अड्डा बना नालंदा महिला कॉलेज

अब महज टाइमपास का अड्डा बना नालंदा महिला कॉलेज

मगध विश्वविद्यालय का अंगीभूत नालंदा महिला कॉलेज बिहार शरीफ जिसकी स्थापना 1975 में हुआ। आज यहां शिक्षा के नाम पर छात्राओं को केवल टाइमपास करने का बन कर रह गया है….”

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नालंदा (राजीव रंजन)। जिला मुख्यालय बिहार शरीफ का एकमात्र नालंदा महिला कॉलेज जो आज अपनी दिशा और दशा से यूं भटक गई है। कभी छात्राओं के लिए जिले का एकमात्र सुरक्षित कॉलेज था, मगर आज यहां लड़कों का भी आवागमन आम बात हो गई है।

छात्राएं अपना टाइम पास कॉलेज परिसर में इधर उधर बैठकर मोबाइल चैटिंग में कर लेते हैं वही शिक्षक भी अपने डिपार्टमेंट में मोबाइल चैटिंग में व्यस्त रहते हैं।

नालंदा महिला कॉलेज के परिसर में प्रवेश करने पर महाविद्यालय में भवन पर  बड़े बोर्ड में स्पष्ट तौर पर प्रधानाचार्य का फरमान है कि छात्राएं महाविद्यालय परिसर में मोबाइल का उपयोग ना करें, मगर ऐसा परिसर में देखने को कम और इसका उल्टा ज्यादा मिलता है।

यत्र-तत्र लड़कियां झुंड बनाकर मोबाइल चैटिंग में व्यस्त रहती हैं या अकेले अपने फोन पर रिश्तेदारों से बातचीत करने में मशगूल रहती हैं। वहीं कुछ ऐसा ही फरमान की छात्राएं यत्र-तत्र में बैठकर कॉमन रूम में ही बैठे इसका भी असर उल्टा ही परिसर में दिखता है। जहां-तहां लड़कियां झुंड लगाकर बैठी रहती हैं एवं अपना समय बर्बाद करती है।

सबसे महत्वपूर्ण फरमान जो प्रत्येक स्कूल कॉलेज और ऑफिसों के लिए मान्य होता है और सभी का अपना अपना एक अलग ड्रेस कोड यूनिफार्म रहता है जोकि नालंदा महिला कॉलेज का भी है।

प्राचार्य का फरमान है कि छात्राएं महाविद्यालय में निर्धारित ड्रेस में ही प्रवेश करें मगर छात्राएं जो नामांकन करने के उद्देश्य से महाविद्यालय परिसर मे आई हुई थी। उसे छोड़ कर भी जो क्लास करने आती हैं।

एक भी नहीं जो अपने निर्धारित ड्रेस में महाविद्यालय परिसर में नज़र आती हैं। सारे के सारे अपने अलग ड्रेस में नजर आती है। वहीं महाविद्यालय परिसर में लड़कों का भी प्रवेश बिना रोक-टोक के आसानी से हो जाता है।

इतना ही नहीं महाविद्यालय परिसर के मैदान को देखकर आप यहां के विकास का अंदाजा खुद लगा सकते हैं कि मेंटेनेंस के नाम पर जो सरकारी राशि विद्यालय को मिलती है,उसका भी एक बंदरबांट हो रहा है। जिसका उदाहरण यहां खराब पड़े चापाकल मैदान में लंबी लंबी घास है।

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