“बिहार की धरती प्राचीन काल से ही भगवान सूर्य की उपासना, अराधना और अघ्र्यदान के लिए महत्वपूर्ण रहा है। सूर्य अराधना की परंपरा आज भी मगध व बिहार में है। छठव्रत के रूप में यह पर्व यहां मनाया जाता है।”
यूं तो देश में कुल 12 प्रमुख सूर्य मंदिरें हैं। इनमें सबसे अधिक बिहार में सूर्य मंदिर हैं। इन्हीं में से एक बड़गांव का सूर्य मंदिर है। यहां प्रागैतिहासिक कालीन सूर्य तालाब है। इसके पौराणिक महत्व हैं।
कहा जाता है कि भगवान भास्कर को अघ्र्य देने की परंपरा इसी बड़गांव पुराना नाम बर्राक से शुरू हुआ था। यह परंपरा अब लोक परंपरा बन गई है। अब इसे पूरे देश और दुनिया में लोक आस्था के महापर्व के रूप में मनाया जाता है। अघ्र्यदान परंपरा की आदि भूमि बड़गांव में संयम और पवित्र मन से भगवान सूर्य की उपासना, अराधना और अघ्र्यदान करने से मनवांछित फल प्राप्त होता है।
बड़गांव की ऐतिहासिक और पौराणिक महता को देखते हुए यहां साल में दो बार कार्तिक और चैत मास में छठ पर्व के मौके पर भारी मेला लगता है। इस मेले में बिहार के प्रायः सभी जिलों के अलावे झारखंड, पश्चिम बंगाल, उतरप्रदेश के छठव्रती यहां आकर सूर्य नारायण की अराधना करते हैं।
बड़गांव मगध साम्राज्य की ऐतिहासिक राजधानी राजगीर और नालंदा जिला मुख्यालय बिहारशरीफ से करीब 13 किलोमीटर दूर प्राचीन नालंदा विष्वविद्यालय के पाष्र्व में है। बड़गांव का सूर्य मंदिर जितना पुराना है, उतना ही इसका अधिक महत्व है। हिन्दूओं के लिए यह आस्था का महान केन्द्र है।
यहां बिहार के अलावे पड़ोसी राज्यों के सूर्य उपासक और छठव्रति बड़ी संख्या में आते हैं। सभी छठव्रति बड़गांव सूर्य तालाब के पवित्र जल में स्नान ध्यान व अघ्र्यदान करती हैं। यहां द्वापर कालीन सूर्य तालाब है। इसमें छठव्रति अघ्र्यदान और सूर्य मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं।
कहा जाता है कि इस परंपरा के अधिष्ठाता जाम्बंती एवं भगवान श्री कृष्ण के पुत्र राजा सांम्ब हैं। पिता से भी अधिक रूपवान राजा साम्ब को महर्षि दुर्वासा के श्राप से उन्हें कुष्ट व्याधि हो गयी थी। भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें कुष्ट व्याधि से मुक्ति के लिए वर्राक अब का बड़गांव में सूर्य उपासना, अराधना और पूजा अर्चना करने पर रोग से मुक्ति का मार्ग बताया था। पिता के बताये अनुसार राजा साम्ब बर्राक पहुंचे। लेकिन उन्हें यहां सूर्योपासना कराने वाले पुरोहित नहीं नहीं मिले।
कृष्णायन ग्रंथ के अनुसार साम्ब ने मध्य एषिया के क्र्रौंच द्वीप से पूजा कराने के लिए ब्राह्मण बुलाये थे। वाचस्पति संहिंता के अनुसार कुष्ट व्याधि से पीड़ित राजा साम्ब को 49 दिनों तक बर्राक (बड़गांव) में सूर्य उपासना, अराधना और अघ्र्यदान उपरांत श्राप और व्याधि से मुक्ति मिली थी। द्वापर काल में बड़गांव में सूर्य तालाब के मध्य में दो कुंड होने के प्रमाण मिले हैं।एक कुंड दूध से भरा होता था दूसरा जल से। सरोवर में अघ्र्य दिये जाते थे। दोनों कुंड से दूध और जल सूप पर ढ़ारे जाते थे। वह पौराणिक सूर्य तालाब जमीनदोज हो गया है। उसी तालाब के उपर एक विशाल तालाब मौजूद है।
इस तालाब का वर्णन ह्वेनसांग की डायरी में भी है। जहां सूर्य उपासक स्नान और अघ्र्यदान करते हैं। बड़गांव सूर्य तालाब के उत्तर-पूरव कोने पर पत्थर की एक मंदिर थी। इस मंदिर में भगवान सूर्य की एक भव्य प्रतिमा थी। इस मंदिर का निर्माण पल राजा नारायण पाल के काल में 10वीं सदी में कराया गया था।
वर्तमान में वह मंदिर अस्तित्व में नहीं है। वह 1934 ई. के भूकंप में ध्वस्त हो गया था। दूसरे स्थान पर बड़गांव में सूर्य मंदिर का निर्माण कराया गया है। इस मंदिर में पुरानी मंदिर की सभी प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं। ये सभी प्रतिमाएं पलकालीन बतायी जाती हैं।
किंवदंति है कि जो कोई सच्चे मन से बड़गांव में पूजा, अराधना और मनौती मांगने आते हैं। उनकी मनोकामनाएं पुरी होती है। साथ ही यह प्रचलित है कि बड़गांव के सूर्य तालाब में स्नान करने से चर्म और कुष्ट रोग जैसी व्याध्यिां भी दूर होती है।
इसी मान्यता को साकार करने के उद्देष्य से कार्तिक और चैत महीने में यहां विषाल मेला लगता है। सूर्य तालाब में स्नान कर शरीर और पूजा अर्चना व अघ्र्यदान कर मन और तन कंचन कर सूर्य उपासक और छठव्रती घर लौटते हैं।
हिन्दू धर्म में केवल सूर्य ही एक देवता हैं, जिन्हें मूर्त रूप में देखा जाता है। छठ पर्व के मौके पर भगवान सूर्य नारायण के साथ उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा की भी अराधना की यहां परंपरा है। यहां पूजा अराधना व अघ्र्यदान से शरीर तो कंचन होते ही हैं महिलाओं को पुत्र रत्न की भी प्राप्ति होती है।
सिद्धि-प्रसिद्धि के बाद भी पौराणिक सूर्यपीठ बड़गांव में छठव्रतियों को बुनियादी समस्याओं से दो चार होना पड़ता है। आजादी के 70 साल बाद भी यहां एक अदद सार्वजनिक शौचालय और छठव्रतियों के विश्राम के लिए धर्मषाला तक का निर्माण नहीं हो सका है। छठ मेले के मौके पर बड़गांव तम्बुओं का नगर बन जाता है।
भारत में कुल 12 प्रमुख सूर्य मंदिरें हैं। इनमें सबसे अधिक मगध यानि बिहार में सूर्य मंदिर हैं। इनमें कोर्णाक सूर्य मंदिर – जगन्नथपुरी, उड़ीसा, दशर्नाक – अयोघ्या , चार्णाक – हिमाचल प्रदेश , वेर्दाक – हरियाणा , लोलार्क – बनारस में स्थापित है। इनके अलावे नालंदा के वर्राक (बड़गांव), पटना के पुण्र्याक (पंडारक) , उलार (दुल्हिन बाजार) औरंगाबाद के देव , सहरसा के कन्दाहा और नवादा के हड़िया में प्राचीन सूर्य मंदिर है।