गोड्डा (नागमणि कुमार)। कल्याणकारी योजनाओं का लाभ जनता तक पहुंचाने का दावा हर सरकार करती है, सड़क किनारे बड़े बड़े इस्तेहार लगाकर अपनी उपलब्धियों को गिनाने का काम हर सरकार करती है, मगर जमीनी हकीकत कुछ और है।
एक ऐसा विद्यालय जहां दसवीं तक की पढ़ाई होती है। सरकारी पंचायत भवन, पुस्तकालय और ग्राम सेवक आवास का इस्तेमाल प्राइवेट रूप में हो रहा है। सबसे दिलचस्प बात यह है कि हजारों बच्चों के इस शिक्षण केन्द्र में न तो पीने का पानी उपलब्ध है और न ही शौचालय।
विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों ने बताया कि पीने का पानी उपलब्ध न होने के कारण हर दिन प्यासे रहना पड़ता है वहीं बच्चियों ने बताया कि शौचालय न होने के कारण उन्हें हर दिन झाड़ियों के पीछे जाना पड़ता है।
वहीं विद्यालय प्रभारी सच्चिदानन्द ठाकुर ने बताया कि सन् 1993 से चलाए जा रहे विद्यालय को ग्राम समीति की मौखिक अनुमति से चलाया जा रहा है।
विद्यालय के संरक्षक व संचालक दीपनारायण यादव भी अपने उत्तरदायित्व से पल्ला झाड़ते नजर आए उन्होंने कहा कि अब तक की किसी भी सरकार ने किसी तरह की मदद नहीं की।
हालांकि देखा जाए तो खंडहर भवन को बच्चों की शिक्षा दिक्षा में इस्तेमाल किया जाना एक नजरिए से बहुत अच्छी बात है मगर सवाल उठता है कि जब बच्चों से मासिक षुल्क लिया जा रहा है तो यहां पेयजल और शौचलय की सुविघा अब तक क्यों नहीं? और सबसे अहम सवाल कि मुख्य सड़क किनारे चल रहे सोशल क्राइम से जिला प्रशासन अनजान कैसे है?
अब देखना दिलचस्प होगा कि सुशासन की बात करने वाली रघुवर सरकार कथित विषय को गंभीरता से लेते हुए मासूमों को अच्छे दिन दिखा पाती है या नहीं!