“आठ पंचायत समिति सदस्यों ने एक्सपर्ट मीडिया न्यूज के साथ अविश्वास प्रस्ताव की बैठक से अनुपस्थित होने के जो कारण बताएं हैं, वे काफी चौंकाने वाले हैं। एक्सपर्ट मीडिया न्यूज उसे अलग से आप सुधी पाठकों के बीच प्रस्तुत करेगी। वेशक ‘ तीसरी सरकार’ इस कड़वा सच को जान आप सिहर उठेगें कि विकास को अमलीजामा पहनाने का जिम्मा जिन हाथों में है, वे कितने शातिर और निकम्मे हैं।“
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज। नालंदा जिले के नगरनौसा प्रखंड प्रमुख और उप प्रमुख के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का मामला और कार्यपालक पदाधिकारी की भूमिका एक बड़ा चर्चा का विषय बन गया है।
उपलब्ध साक्ष्य के अनुसार कार्यपालक पदाधिकारी ने हर स्तर पर पंचायती राज अधिनियमों की धज्जियां उड़ाई है, वहीं प्रमुख-उप प्रमुख समेत सभी पंचायत समिति सदस्यों उसको मखौल बना दिया है।
सदस्य विहिन बैठक हो नहीं सकती। बीडीओ खुद की उपस्थिति को बैठक मान नहीं सकते। और जब बैठक ही अमान्य हो तो फिर अविश्वास प्रस्ताव खारिज होना एक बड़ा सबाल है।
हो सकता है कि कार्यपालक पदाधिकारी ने अविश्वास प्रस्ताव की प्रक्रिया के निर्धारित प्रावधानों का भी पालन नहीं किया हो। लेकिन किसी भी सदस्य का बैठक में शामिल नहीं होना भी कम गंभीर चिंता का विषय नहीं है।
नगरनौसा में अविश्वास प्रस्ताव लाने की मांग वहां के प्रमुख और उप प्रमुख ने एक दूसरे पर गंभीर आरोप लगाते हुये की थी। दोनों ने एक साथ कार्यपालक पदाधिकारी को लिखित शिकायत आवेदन सौंपी थी। दोनों आवेदन पर पांच-पांच सदस्यों के हस्ताक्षर थे।
यहां रोचक तत्थ यह रही कि प्रमुख प्रति अविश्वास प्रकट करने वाले शिकायत आवेदन पर उन्हीं पांच सदस्यों के हस्ताक्षर थे, जिन पांच सदस्यों के हस्ताक्षर उप प्रमुख के प्रति अविश्वास प्रकट करने वाले आवेदन पर थे।
प्रखंड प्रमुख-उप प्रमुख के नेतृत्व में आपसी अविश्वास प्रस्ताव का दोनों आवेदन 25 जुलाई, 2018 को कार्यपालक पदाधिकारी सह प्रखंड विकास पदाधिकारी रीतेश कुमार को एक साथ सौंपा गया था।
प्रखण्ड प्रमुख अन्तरा देवी ने उप प्रमुख पर अविश्वास प्रस्ताव में स्थाई समिति की बैठक न करना, विकास कार्यों में रुचि नही रखना, अपने कृपा पात्र सदस्यों को ही विशेष तरजीह देना, पंजीयन का चयन मनमाने ढंग से करना, समिति के सदस्यों के साथ भेद भाव बरतना, जनहित में कार्य नही करना एवं कभी भी कार्यलय में न बैठने का आरोप लगाया था।
वहीं, उप प्रमुख सुनीता देवी ने अविश्वास प्रस्ताव में प्रखंड प्रमुख मनमाने ढंग से केवल अपने स्वार्थ हित में कार्य करने, योजनाओं को शिथिलथा वरतने, आम नागरिकों को योजनाओं की जानकारी न देने, योजनाओं के लाभ से उन्हें बंचित रखने, प्रखंड कार्यालय में कभी नहीं बैठने तथा समय पर पंचायत समिति का बैठक नहीं करने का आरोप लगाया था।
हालांकि यह दीगर बात है कि प्रमुख और उप प्रमुख ने कभी भी किसी बैठक में या कार्यपालक पदाधिकारी या वरीय पदाधिकारी से एक दूसरे की कर्तव्यहीनता-भ्रष्ट आचरण को लेकर कभी कोई मौखिक या लिखित शिकायत नहीं देखने को नहीं मिली।
जाहिर है कार्यपालक पदाधिकारी ने उपरोक्त बिन्दुओं पर गौर नहीं किया और आनन-फानन में 10 दिन बाद 4 अगस्त, 2018 को अविश्वास प्रस्ताव की बैठक बुला ली। इस बैठक को लेकर भी विरोधाभास देखने को मिली। अनेक पंचायत समिति सदस्यों का कहना है कि बैठक कार्यपालक पदाधिकारी ने बुलाई। कार्यपालक पदाधिकारी का कहना है कि प्रमुख के कथनानुसार अविश्वास प्रस्ताव की बैठक की तिथि-समय निर्धारित की गई।
यहां सबाल उठना लाजमि है कि यदि प्रखंड प्रमुख के कथनानुसार जब बैठक बुलाई गई तो खुद प्रमुख उस बैठक से खुद को अलग कैसे रखा। जबकि खुद उसने भी उप प्रमुख के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाई। उप प्रमुख समेत हस्ताक्षर करने वाले भी एक सदस्य क्यों नहीं बैठक में शरीक हुये। ऐसे में कार्यपालक पदाधिकारी का कोई भी निर्णय लेना समझ से परे है।
बिहार राज्य निर्वाचन आयोग के संयुक्त निर्वाचन आयुक्त रघुवंश कुमार सिन्हा ने अपने कार्यालय पत्रांकः30-149/2008-2535 के जरिये सभी जिला पदाधिकारी सह जिला निर्वाचन पदाधिकारी (पंचायत) को पंचायत प्रधानों, उप प्रधानों (यथास्थिति उप मुखिया, उप सरपंच, प्रमुख, उप प्रमुख, अध्यक्ष, उपाध्यक्ष) के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव की प्रक्रिया को लेकर बिहार राज्य पंचायती राज अधिनियम-2006 की धारा 44(3) के तहत स्पष्ट निर्देश दिये हैं।
उक्त निर्देश के आलोक में न तो नगरनौसा प्रखंड के कार्यपालक पदाधिकारी ने सही कार्यशैली अपनाई और एक दूसरे के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने वाले प्रमुख-उप प्रमुख ने।
आधा दर्जन से उपर पंचायत समिति सदस्यों का कहना है कि उसे बैठक की नोटिश प्राप्त हुई ही नहीं। जबकि प्रखंड प्रमुख हो या कार्यपालक पदाधिकारी का वैधानिक दायित्व है कि विशेष बैठक की सूचना सात दिन पहले सुनिश्चत की जानी चाहिये।
दरअसल, यह मामला कोई अदद नगरनौसा प्रखंड का नहीं है। सूबे के प्रायः प्रखंडों में इस तरह के अलोकतांत्रिक रवैये अपना कर महज विकास योजनाओं में लूट-खसोंट मचाने की मंशा से कार्यपालक पदाधिकारियों और निर्वाचित पंचायत प्रतिनिधियों की आपसी गलबहियां नासूर बनकर उभरी है, उसके उपचार के तरीके पर जिला निर्वाचन पदाधिकारी से लेकर राज्य निर्वाचन आयोग (पंचायती प्रभाग) को कड़े तेवर दिखाने जरुरी है। नियमों-अधिनियमों को तोड़-मरोड़ कर किसी के भी बचने-बचाने के खेल मात्र से किसी का भला होने वाला नहीं है।