Home देश श्रद्धांजलि: खालिस्तानी आतंकवादियों से लोहा लेते यूं शहीद हुए थे रंधीर वर्मा

श्रद्धांजलि: खालिस्तानी आतंकवादियों से लोहा लेते यूं शहीद हुए थे रंधीर वर्मा

एक्सपर्ट मीडिया न्यूज (बिहार ब्यूरो)। जनसेवा में अपने को समर्पित एवं कुछ कर गुजरने की तमन्ना लिए आइपीएस स्व रंधीर वर्मा की आज शहादत दिवस है।

28 साल पहले तब बिहार के धनबाद से कर्मठ एवं ईमानदार प्रहरी की भूमिका में रहे एसपी रंधीर वर्मा खालिस्तानी आतंकवादियों से लोहा लेते हुए शहीद हो गए थे। वे आज उन पुलिसकर्मियों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं जिनके पास कुछ कर गुजरने  की तमन्ना है।Randhir Verma1

वैसे भी आज भारतीय पुलिस सेवा में जान हथेली पर लेकर देश हित में काम करने वाले अधिकारियों का सर्वथा अभाव है और संकट के समय सिपाहियों को मोर्चे पर रख उनका आत्मबल बढ़ाने वाले पुलिस अधिकारियों की तलाश होती है, ऐसे में रणधीर वर्मा जैसे अधिकारी याद आते हैं।

धनबाद का वह हीरो जिसने बतौर एसपी कम समय में जनता के बीच चहेते बन गए थे। उनमें कुछ कर गुजरने की अदम्य साहस था तभी तो वें बैंक लूटेरे खालिस्तानी आतंकवादियों से सीधे लोहा ले लिया। एक तरफ आतंकवादियों के पास एके 47 तो दूसरी तरफ एक मामूली रिवाल्वर फिर भी शहीद होने से पहले दो आतंकवादी को मार ही गिराया।

तीन जनवरी 1991 को धनबाद स्थित बैंक आफ इंडिया की हीरापुर शाखा को लूटने को  पंजाब से कुछ  दुर्दांत खालिस्तानी आतंकवादी  आए हुए थे। वे  सभी बैंक ऑफ इंडिया को लूट के इरादे से बैंक में धावा बोल दिया ।

धनबाद एसपी  वर्मा अपने दफ्तर में थे। तभी उन्हें बैंक पर आक्रमण की सूचना मिली। वें व्यक्तिगत सुरक्षा की चिंता किए बगैर अपने अंगरक्षक के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए। आतंकवादियों को ललकारते हुए पहली मंजिल स्थित बैंक की सीढिय़ों पर चढऩे लगे।

आतंकवादियों ने गोलियां चलानी शुरू कर दी। एक मामूली रिवाल्वर से एके 47 एसाल्ट राइफल का मुकाबला करना एक हिम्मतवाले पुलिस अधिकारी  का ही निर्णय हो सकता था।

इस हिम्मत के पीछे थी वह कर्तव्यनिष्ठा, देश समाज के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा। उन्होंने अपने मामूली रिवाल्वर से गोलियाँ दागनी शुरू कर दी।  उन्हें गोली लग चुकी थी, लेकिन उन्होंने हिम्मत नही हारी दनादन गोलियों के बीच  घायल रणधीर वर्मा ने रिवाल्वर से ही दो आतंकवादियों को मार गिराया।

अपने दो  साथी की मौत के बाद सभी आतंकवादियों के पांव उखड़ गए।वहाँ से भागने में ही अपनी भलाई समझी। लेकिन तब तक रंधीर वर्मा शहादत को प्राप्त हो गए। यह उनके ही अदम्य साहस और शौर्य था कि  झारखंड क्षेत्र में आतंकवादियों के पैर जमाने की एक बड़ी साजिश विफल हो गई थी।

वर्मा की मौत एक तेजस्वी परमवीर योद्धा की तरह शानदार ढ़ंग से हुई। राष्ट्रपति ने मरणोपरांत उन्हें विशिष्ट वीरता सम्मान से सम्मानित किया, जहां उद्घोषित हुआ कि यह राष्ट्र का सपूत भारतीय पुलिस सेवा में एक अनोखा उदाहरण है, जिसकी कर्तव्यपरायणता और साहस की मिसाल भारतीय पुलिस सेवा के पदाधिकारियों में अब तक नहीं मिली।

उन जैसा देहदानी पुलिस विभाग में पहले कोई नहीं हुआ था। इसलिए भारत सरकार ने उन्हें अशोक चक्र से सम्मानित किया तथा उनके सम्मान में डाक टिकट तक जारी किया गया।

1952 को बिहार के सुपौल जिले के जगतपुर गांव में जन्मे रणधीर वर्मा एक प्रतिभाशाली छात्र थे, जो बीए (आनर्स) की परीक्षा पास कर भारतीय पुलिस सेवा के अंग बने। रणधीर वर्मा 1974 में  पुलिस सेवा की नौकरी शुरू की थी।

उनमें विवेक, कर्तव्यपरायणता तथा हिम्मत के बल पर किसी के आगे न झुकने वाला एक निर्भीक व्यक्तित्व था। जो उत्ताप, उत्तेजना, उद्वेग के विकारों से वंचित था। पर निर्णय में कठोर था। उनके प्रभावशाली क्रिया-कलापों के कुछ नमूने प्रारंभ में ही सरकार के सामने आए।

अविभाजित बिहार सरकार ने उन्हें बेगूसराय जैसे अपराधग्रस्त जिले का पुलिस अधीक्षक बनाया था। वर्मा ने वहां पदस्थापित होते ही माफिया कामदेव सिंह के आतंक से जनता को मुक्ति दिलाने के लिए अभियान चलाया।

जब रणधीर रण में निकले तो विजयी उनके हाथ लगी। कामदेव सिंह की लाश गिरते ही उसके गिरोह का गरूर ध्वस्त हो गया। वर्मा जहां-जहां पदस्थापित हुए अपने कार्यों के लिए जनता के हृदय समाहित होते गये।

अयोध्या आंदोलन की आग में जब देश भर में साम्प्रदायिक सौहार्द छिन्न-भिन्न हुआ तो धनबाद ने सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल कायम की। इसका श्रेय रणधीर वर्मा को जाता है।

स्व. रंधीर वर्मा भारतीय पुलिस सेवा के ऐसे पुलिस अधिकारी थें जो खुद ही मोर्चा लेने में भरोसा रखते थे। इसलिए शहादत के इतने सालों बाद भी उनके यश की गाथाएं सबकी जुबान पर है।

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