“राजगीर में किन लोगों का सम्मेलन था और किन कारणों से नहीं हुआ, सबाल इसका नहीं है। मूल सबाल है कि सम्मेलन के नाम पर जो लाखों-करोड़ों की सरकारी राशि यूं ही बह गये। समूचा सरकारी महकमा सब काम-धाम छोड़ वीआईपी व्यवस्था में जुटे रहे, उस खामियाजे की जबावदेही कौन लेगा।”
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज / मुकेश भारतीय। सरकारी खजाने की राशि विधायिका या कार्यपालिका से जुड़े किसी व्यक्ति विशेष की जागीर-संपति नहीं है। लेकिन आज कल ‘काम के न काज के-दुशमन सिर्फ अनाज के’ टाइप के सरकारी रहनुमाओं ने सब कुछ को मजाक बना दिया है। आम आदमी की गाढ़ी कमाई को पानी की तरह बहा डालते हैं। और नतीजा सिफर निकलता है।
इस सम्मेलण को लेकर आवश्यक औपचारिक तैयारी चल रही थी। तैयारियां करीब-करीब पूरी कर ली गई थी। बड़े से लेकर छोटे अधिकारी तक तैयारियों में जुटे थे। सम्मेलन आज से शुरू होने वाला था। कन्वेंशन सेंटर में इस सम्मेलन को लेकर ड्यूटी पर लगाए गए मजिस्ट्रेट और पुलिस पदाधिकारियों की ब्रीफिंग शुरू ही होने वाली थी। लोगों का आना शुरू हो गया था।
बैठक को लेकर मंडप, पंडाल सब बन कर तैयार था। अतिथियों के बैठने के लिए बीआईपी पंडाल बनाया गया था। जगह-जगह पर लोगों को बैठने के लिए बांस का मंडप तैयार किया गया था, जो देखते ही बनता है।
कन्वेंशन हॉल में बगल में ही तरह-तरह के लजीज व्यंजनों के लिए भोजनालय भी अतिथियों के स्वागत के लिए तैयार था। सारी तैयारियां धरी रह गई।
जिला प्रशासन और विभाग ने अपनी ओर से पूरी तैयारी कर रखी थी। व्यवस्था में कहीं कोई कसर नहीं छोड़ा गया था। खाना नाश्ते का समान भी बीते कल से बनना शुरू हो गया था। निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार कल ही को ही काफी अतिथि पहुंचने वाले थे। जिनके लिये भोजन नाश्ते की व्यवस्था की गई थी।
कारीगर गुरूवार से लेकर सम्मेलन के अंतिम दिन तक सौ से भी अधिक व्यंजन बनाए वाले थे। दर्जनों व्यंजन बन कर तैयार हो गया था। पनीर, कचौड़ी, चिकेन, मिठाई आदि बने थे। सब धरा का धरा रह गया।
बिहार के सीएम नीतिश कुमार भी इस महात्वाकांक्षी ऊर्जा सम्मेलन में शामिल होने वाले थे। विभिन्न राज्यों के ऊर्जा मंत्री व अधिकारी गण भी राजगीर की शोभा बनने वाले थे। फिर भी इसे अचानक रद्द कर दिया गया। शायद यह एक इतिहास की बात हो कि इस तरह के सरकारी कुकर्म कहीं हुआ हो।
बहरहाल कितनी शर्म की बात है कि केन्द्र और राज्य स्तर के सम्मेलन को पूरी तैयारी के बाद अचनाक स्थगित कर दी जाती है। आखिर देश या राज्य में अचानक ऐसी कौन सी राष्ट्रीय आपदा आ गई कि किसी मंत्री या संत्री की व्यस्तता को बहाना बना जनहित से जुड़े मुद्दों के सम्मेलन को ऐन मौके पर रद्द कर दिये जाये। कहीं न कहीं इसमें गड़बड़ जरुर है।