बताया जाता है कि मंत्री आवास पर हैवी ड्यूटी डिजिटल पार्किंग टाइल्स का भी प्रावधान है, पर बिना टेंडर निकाले ही सारे काम अपने चहेतो को देकर शुरु करा दिये गये और अब 26 मई को यानी कल उसी का टेंडर बिक्री किया जा रहा है, यानी जो काम पहले से ही शुरु करा दिया गया है या जो पूर्ण होने की स्थिति में है, उसकी टेंडर बिक्री की औपचारिकता पूरी की जा रही है, यानी कमाल की यहां सरकार है, मानना पड़ेगा। पहले अपने चहेतो से काम करा लो, उसके बाद टेंडर निकालकर औपचारिकता पूरी कर, उस टेंडर को अपने चहेतों के नाम पास करा दो।
सूत्र बताते हैं कि ये टेंडर सिर्फ खानापूर्ति के लिये निकाला गया है, ताकि सरकारी खजाने से रकम निकाली जा सके। नियम यह है कि पहले टेंडर निकाला जाता है, फिर काम शुरु होता है, पर यहां भवन निर्माण विभाग में पहले काम करो और फिर टेंडर भरो और पैसे लो, के तहत काम कर रहा है, ये कौन से नियम के तहत ऐसा हो रहा है, झारखण्ड की जनता को समझ में नहीं आ रहा।
सारी सच्चाई सामने है। अखबार का वह कटिंग जिसमें टेंडर की डेट छपी है और मंत्री आवास में काम कराया जा चुका है। वे सारे काम के चित्र जो बता रहा है कि कैसे राज्य में शासन चल रहा है? ये भ्रष्टाचार नहीं तो क्या है? सूत्र बताते है कि ये पूरा मामला करीब 33 लाख रुपये के घोटाले से जुड़ा है।