Home देश यह कैसा सुशासन? नकारा बैठी पुलिस और सरेआम घूम रहे दोषी!

यह कैसा सुशासन? नकारा बैठी पुलिस और सरेआम घूम रहे दोषी!

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बिहार में सुशासन और कानून का राज है। लेकिन इस तरह के दावे का सीएम नीतिश कुमार के गृह जिले नालंदा  में आंकलन करें तो सब कुछ उल्टा-पुल्टा और सिर्फ थोथी ढिंढोरे नजर आता है।”

RAJGIR POLICE STATIONएक्सपर्ट मीडिया न्यूज। पटना प्रमंडलीय आयुक्त सह प्रथम लोक शिकायत निवारण पदाधिकार श्री आन्नद किशोर ने एक शिकायतवाद पर सुनवाई के बाद नालंदा जिला प्रशासन को राजगीर मलमास मेला सैरात भूमि की फर्जी तरीके से जमाबंदी व लगान निर्धारण करने-कराने वाले दोषी लोगों को खिलाफ एफआईआर दर्ज कर विधिसम्मत कार्रवाई करने के आदेश दिये थे।

इसके बाद मिले आदेश के अनुरुप राजगीर डीसीएलआर प्रभात कुमार ने राजगीर थाना में लिखित शिकायत की। इस शिकायत के आलोक में  भादवि की धारा-467, 468, 471, 420 व 34 के तहत दिनांक-12.04.2018को थाना कांड संख्या- 85/18 दर्ज की गई।

इस कांड में  सैरात भूमि के एक बड़े चिन्हित अतिक्रमणकारी शिवनंदन प्रसाद पिता स्व. रामचन्द्र प्रसाद, तात्कालीन राजगीर भूमि उप समाहर्ता उपेन्द्र झा, अंचलाधिकारी आनंद मोहन ठाकुर एवं वर्खास्त राजस्व कर्मचारी अनिल कुमार को  दोषी अभियुक्त नामजद किया गया।

इसके पूर्व प्रमंडलीय आयुक्त के आदेश के आलोक में नालंदा डीएम ने दोषियों के खिलाफ एक त्रिस्तरीय जांच कमिटि गठित की। इस कमिटि में उप विकास आयुक्त नालंदा, अपर समाहर्ता नालंदा और जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी शामिल थे।

इस जांच टीम ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट रुप से लिखा कि राजगीर मेला सैरात भूमि पर काबिज अतिक्रमणकारी ने विभागीय सांठगांठ से अवैध ढंग से जमाबंदी ही न कराई बल्कि, सैरात भूमि का लगान भी निर्धारण करा लिया।

बहरहाल, जिन अपराधों को लेकर जांच में दोषी करार दिये गये लोगों के खिलाफ राजगीर थाना में एफआईआर दर्ज की गई है, उसमें सारे गैर जमानतीय धाराएं लगाई गई है।

हालांकि राजगीर के वर्तमान उप भुमि उप समाहर्ता ने थाना में जिस तरह की लिखित शिकायत की है और उसके साथ जो ठोस प्रमाण संलग्न  किये हैं, उस आलोक में मामला दर्ज करने वाले एएसआई ने अन्य आवश्यक धाराओं को लोपित रखा है।

वर्तमान थाना प्रभारी विजेन्द्र कुमार सिंह भी दोषियों की गिरफ्तारी को लेकर बचते नजर आ रहे हैं। उनका कहना है कि अभी तक किसी वरीय अधिकारी का इस मामले में कोई निर्देश नहीं मिला है। जैसा निर्देश मिलेगा, वैसा किया जायेगा। उसके बाद किसी भी सबाल पर वे निरुत्तर व खामोश दिखे।

उधर, इस मामले में जितने भी दोषी करार दिये गये नामजद अभियुक्त हैं, वे सरेआम घुमते हुये नजर आ रहे हैं। उच्च राजनीतिक व प्रशासनिक संरक्षण के बल वे आम लोगों के बीच पुलिस की ऐसी की तैसी कर रहे हैं। उनकी हरकतों से साफ जाहिर होता है कि दोषियों को पकड़ना राजगीर थाना पुलिस की औकात से बाहर की बात है।

विधिवेत्ताओं की राय है कि प्रमंडलीय आयुक्त के आदेश से जिला प्रशासन की जांच रिपोर्ट के आधार पर दोषी लोगों को अरेस्ट करने की जबाबदेही स्थानीय पुलिस की है। किसी वरीय पुलिस अफसर के आदेश के इंतजार की आड़ में अरेस्ट नहीं किया जाना दोषियों को खुला लाभ पहुंचाना और कानून के साथ खिलबाड़ है। इस मामले में न्यायालय से वारंट का बहाना भी नहीं बनाया जा सकता है, क्योंकि आरोप और दोष दोनों अलग-अलग चीजें हैं।  

सबाल उठता है कि जब प्रमंडलीय आयुक्त के आदेश से दोषी लोगों के खिलाफ थाना में एफआईआर दर्ज की गई है, तो फिर राजगीर पुलिस किस दबाव में किस उपरी आदेश का इंतजार कर रही है।

वर्तमान राजगीर थाना प्रभारी से लोगों से उम्मीदें बंधी थी, लेकिन इस गंभीर मामले में उनकी भी कार्यशैली शुरुआती दौर में ही पूर्व थाना प्रभारी से इतर नजर नहीं दिख रही।      

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