कुछ बातें अंदर तक झकझोर जाती है। एक बंधु ने व्हाट्स्एप्प पर मैसेज भेजी है। एक खबर पर प्रतिक्रिया भेजी है। अमुमन ऐसी प्रतिक्रिया आती रहती है। जिसे अब तक नजरअंदाज करता रहा हूं। लेकिन…..
-: मुकेश भारतीय :-
आज मुझे महसूस हुआ कि किसी प्रतिक्रिया को नजरअंदाज करना अनैतिक है। मुझे प्रिंट मीडिया (अखबार), इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (न्यूज चैनल) में समाचार संपादन का लंबा अवसर मिला है। उस अनुभव के आधार पर यकीन के साथ कह सकता हूं कि प्राप्त खबरों में कई ‘प्लांटेड’ होती है। इसे पाठक भी अच्छी तरह समझते हैं। यही कारण है कि आज मीडिया पर हर तरफ से उंगली उठ रही है।
बड़े मीडिया हाउस की बात अलग है। पिछले एक दशक से मैं मूल मीडिया की धारा से इतर माइक्रो मीडिया का संचालन कर रहा हूं। www.raznama.com, www.expertmedianews.com , www.indianewsreporter.com मेरी न्यूज साइट है। इसके संचालन-संपादन-सज्जा के पीछे सिर्फ मैं हूं। इसमें जो भी लागत खर्च आती है, उसे मैं अपने रोजाना आमदनी (कंप्यूटर शिक्षा+ सेल्स एंड सर्विस कारोबार) से वहन करता हूं।
दूसरा मामला राजगीर की एक खबर को लेकर सामने आया। जब एक तथाकथित उच्श्रृखंल्ल पत्रकार ने थाना में बैठकर थाना प्रभारी के सामने मुझे मोबाईल पर धमकी दी। फिर रंगदारी का मुकदमा कर दिया। उस मुकदमें में राजगीर के वरीय पत्रकार राम विलास जी, एक व्यवसायी संघ के धर्मराज प्रसाद को भी घसीट दिया गया, जिन्हें तब जानता तक न था।
इस मामले से जुड़े साक्ष्य बिहार के सीएम, नालंदा के डीएम, एसपी समेत अनेक लोगों को भेजे। वहां के विधायक, सांसद और मंत्री को भी जानकारी दी। लेकिन कहीं से कोई यथोचित कार्रवाई अब तक नहीं हुई। आखिर बिहार के सीएम के गृह जिले में यह कैसा सुशासन का दौर है कि एक भू-माफिया थाना में थाना प्रभारी के सामने बैठकर पहले धमकी देता है, फिर रंगदारी का फर्जी केस कर देता है और शीर्ष पुलिस प्रशासन के लोग सब कुछ जानते हुये भी प्याज छिलने में मशगुल रहता है?
मैं भी नालंदा का ही मूल निवासी हूं। राजनीति, पत्रकारिता और शासन को गहराई से जानता हू। कोई विधायक, सांसद, मंत्री तो दूर सीएम नीतीश कुमार के उत्थान से अनभिज्ञ नहीं हूं। मंडल-कमंडल के दौर से पत्रकारिता कर रहा हूं। नीतिश जी शायद भूल गये होगें कि एक राष्ट्रीय पत्रिका के लिये स्व. लाल सिंह त्यागी जयंती समारोह मंच पर इंटरव्यूह के दौरान पसीना लाने वाला मैं ही हूं। उस इंटरव्यूह के मुख्य अंश दैनिक हिन्दुस्तान, पटना अंक में प्रकाशित हुये थे।
चार विधायक के साथ संघर्ष करने वाले अब वो नीतिश कुमार नहीं हैं। उनके साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि वे संकट के तारणहारों को ही दबाने की कला में माहिर हैं। उन्हें मिथ्या प्रचार पंसद है। आज की तारीख में कोई कितना भी कसीदा गढ़ ले, लेकिन जब कोई उनकी ईमानदारी से छवि गढ़ेगा तो स्थिति काफी बदरंग होगी।
आज कई लोग यत्र-तत्र दुष्प्रचार कर रहे हैं कि मैं लालू भक्त हूं। शायद ये व्यवस्था के नये कीड़े-मकोड़े हैं। वे नहीं जानते कि ‘छोटका मोदी’ के जिह्वा पर ‘जंगल राज’ शब्द किसने दिया था। अगर तब जंगल राज था तो वेशक आज बिहार में जो शासन तंत्र उभरा है, उसे ‘जल्लाद राज’ कहना कोई गलत न होगा।
बहरहाल, मूल बात पर आता हूं कि प्लांटेड खबरों का समाधान क्या है? कोई संपादक किसी समाचार लेखक-प्रेषक पत्रकार बंधु की खबरों की पुष्टि नहीं कर सकता। खास कर आर्थिक तौर पर मुझ जैसा निम्न स्तर का आदमी। क्योंकि मैं किसी समाचार लेखक-प्रेषक पत्रकार बंधु को सम्मान के आलावे कुछ नहीं देता। पिछले दस वर्षों के दौरान देश खास कर बिहार-झारखंड के कई बंधु मेरी साईट से जुड़े और हमने ईमानदारी से उनकी खबरों को महत्व दिया, आज वे राष्ट्रीय स्तर के मीडिया में लहरा रहे हैं।
कुछ लोगों को कई तरह के भ्रम हो सकते हैं। लेकिन मूल सच्चाई है कि मैं सिर्फ आम भारतीय नागरिक हूं। न किसी के कृपा से लिखता हूं और न ही किसी की कृपा चाहता हूं। करीब 3 दशक की पत्रकारिता में कई बार ऐसे लालच मिले कि किसी का भी ईमान डोल जाये, लेकिन मैं जहां था, आज तक वहीं खड़ा हूं। मेरी नजर में न कोई बड़ा है और न कोई छोटा। हमारी नजर सदैव सीधी रही है। ईश्वर न करे कि वह कभी टेढ़ी हो। रोज सुबह सबसे पहले गुणगुनाता हूं…इतनी शक्ति हमें देना दाता कि मन का विश्वास कभी कमजोर हो न….
मीडिया से जुड़े हर व्यक्ति जानता है कि परिवार, समाज और व्यवस्था में उसकी स्थिति क्या होती है। उसे उसके करीबी रिश्तेदार तक किस नजरों से देखते हैं। अर्धांगनि-बच्चे तक घिन उबकटते हैं। क्योंकि जीवन सिर्फ आदर्शों-सिद्धांतों से नहीं चलती है। उसके लिये अर्थ चाहिये। यहां कामयाबी का आंकलन सिर्फ कमाई और दिखाई से होती है।
एक बार नई दिल्ली में सुविख्यात लेखक-पत्रकार प्रभाष जोशी से सवाल किया था कि आपकी सफलता का मूल राज क्या है? तब उनका दो टूक जबाब था कि “ मैंने अपनी आववश्कताओं को जितनी सीमित किया है, उतना ही आपको नजर आता है कि मैं कितना सफल हूं और कितना असफल ”
इसके बाद मैंने BJMC करने के दौरान झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार मधुकर जी से क्लास में ही सबाल कर डाला था कि इस अर्थ प्रधान युग में एक पत्रकार की मूल भावना कितनी जिंदा रह सकती है? इस पर मधुकर सर का सैद्धांतिक प्रति उत्तर था कि “ पहले तय करनी होगी कि आवश्कताएं क्या है। आवश्यकताएं जितने कम होगें, मूल भावना की उम्र भी उतनी लंबी होगी।”
BJMC के बाद मैंने MJMC के साथ NIIT की पढ़ाई की। कभी किसी नौकरी की दिशा में प्रयास नहीं किया। कई मीडिया हाउस में असफल प्रयास किये। फिर माता-पिता से मिले छोटी पूंजी से कारोबार शुरु किया। साथ में ऑनलाइन राईटिंग करने लगा। 2004 में अपना ब्लॉग बनाया। फिर 2008 में राजनामा न्यूज वेबसाईट। एक सड़क छाप कारोबारी के लिये वर्ष में 10-12 हजार रुपये लगाना और दिन भर की कारोबारी थकान के बाद देर रात लेखन और विभिन्न स्रोतों से आये सूचनाओं का संपादन करना किस जुनून का घोतक है, आप भली-भांति समझ सकते हैं।
आज मुझे काफी खुशी है कि एक शुभचिंतक बंधु ने किसी समाचार को लेकर अपनी दो टूक भेजी है। ऐसे पाठक बंधुओं का ऋण कभी उतारा नहीं जा सकता। अगर आपको किसी भी समाचार विचार में खामियां नजर आये तो निःसंकोच भेजिये। क्योंकि आपकी यही दो टूक हमारी ताकत है। हमारी प्रेरणा है। ……जय मां भारती। तुझे सलाम।