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नीतीश भूल गए वो दिन, जहानाबाद के एएसपी को यूं जातिसूचक शब्दों के साथ विदा किया

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जी हां, देर ही से सही पर सुशासन के ‘टेक आफ’ करते ही बिहार में कुशासन ‘लैंड’ कर गया है…. बीते 12 सितम्बर को जहानाबाद के निवर्तमान एएसपी अभियान संजीव कुमार को जातिसूचक शब्दों का ईस्तेमाल करते हुए गृह आरक्षी विभाग ने उनकी सेवा वापस सीआरपीएफ को कर दी है….।”

3 1प्रतिदिन हत्याएं, अपहरण, दुष्कर्म सहित संज्ञेय अपराध में बढ़ोतरी और मुख्यमंत्री का अपने अधिकारियों पर कोई प्रभाव न रह जाने की हो रही अनवरत घटना ने नीतीश कुमार को वर्ष 2001 वाला वह दौर याद दिला दिया होगा, जब केन्द्र में कृषि मंत्री रहते हुए उनके गृह जिला नालंदा के एसपी भी उनकी बात सुनना तो दूर फोन तक नहीं उठाते थे

मामला 2001 का है। नालंदा जिले के चंडी थाना क्षेत्र के माधोपुर बाजार मेंनकली खाद विक्रेताओं और स्थानीय किसानों में तीखी झड़प हो गई थी। धीरे-धीरे मामला हिंसक रुप अख्तियार कर गया। तब पुलिस को वहां गोली चलानी पड़ी थी। इस पुलिस फायरिंग में तब एक बच्ची को गोली लग गई थी।

इसके आक्रोशित लोगों ने माधोपुर बाजार में सड़क जाम कर दिया। इसी बीच उक्त रास्ते से गुजरने वाले तत्कालीन केन्द्रीय कृषि मंत्री नीतीश कुमार भी फंस गए। उन्होंने तब नांलदा के डीएम व एसपी को फोन लगाया पर किसी अधिकारी ने उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया।

तब नीतीश ने लालू यादव को फोन लगाकर उन्हें सारी बाते बतायीं। उस समय श्रीमति राबड़ी देवी बिहार के सीएम थी।  नीतीश कुमार की बातें सुनते ही लालू प्रसाद ने नांलदा एसपी को फोन लगाकर फटकारते हुए कहा था कि ‘जानत नईखअ, नीतीश हमार छोट भाई बा।’

आज फिर से लगभग वैसी ही स्थिति हो गई है। 2005 से लेकर 2010 तक नीतीश कुमार के पहले मुख्यमंत्री काल में जहा बिहार में सुशासन व्याप्त हो गया था, क्रिमीनल अपनी मांद में छूप गए थे। वैसे ही अपराधी आज दिन-दहाड़े हत्या सहित अन्य वादातों को अंजाम दे रहें हैं।

बीते कई माह से बिहार की गिरती विधि व्यवस्था के कारण ही आज बिहार देश के तीस राज्यों में किए गए सर्वे में बेहतर शासन के मामले में सबसे फिसड्डी होकर 30वें पायदान पर पहुंच चुका है। अधिकारी वही हैं पर उनका मनोबल इतना गिर चुका है या गिरा दिया गया कि वह कु़छ भी कर पाने की स्थिति में नहीं हैं। अब यहां जाति के नाम पर अधिकारी क्रश हो रहें हैं।

ताजा मामला जहानाबाद के निवर्तमान एएसपी, अभियान संजीव कुमार का है। सीआरपीएफ से आए संजीव कुमार ने बीते 25 जनवरी को एएसपी अभियान के रुप में जहानाबाद में पदभार ग्रहण किया था। अपने कार्यों से उन्होंने काफी प्रशंशाएं भी बटोरी।

बीते 6 सितम्बर को एससी/एसटी एक्ट के खिलाफ भारत बंद के दौरान घोषी थाना के वैना गांव में संजीव कुमार पर उनके स्वजातीय आंदोलनकारियों ने ही रोड़ेबाजी की जिससे उनका सर फट गया।

पर आश्चर्य जनक तो है कि बीते 12 सितम्बर को इसी संजीव कुमार पर यह आरोप लगाते हुए गृह आरक्षी विभाग ने उनकी सेवा वापस सीआरपीएफ को कर दी। गृह आरक्षी विभाग द्वारा इस संदर्भ में जो नोटिस जारी की गई वह भी काफी चौकाने वाला है।

इस नोटिश में कई जगह जाति सूचक शब्दों का इस्तेमाल किया गया है जो किसी भी तरह के सरकारी सर्कुलर या अधिसूचना के खिलाफ है। अधिकारी चाहे किसी भी जाति का हो किसी अधिसूचना में उसपर जातिसूचक शब्दों का प्रयोग निंदनीय ही माना जाएगा।

बिहार में अभी कई ऐसे पुलिस अधिकारी है जो अपने कार्यों के लिए पूर्व में जनता का विशवास पा चुके हैं और जिनके नाम से कभी अपराधियों ने जिला तो क्या सूबा तक छोड़ दिया था, पर ऐसे अधिकारियों में से कई अभी सेंटिंग पोस्ट पर है और कमान अनुभवहीनों के हाथ में। फिर अपराधियों का मनाबल बढे़ तो क्यूं नहीं ?

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