“हमारे हुक्मरान या सड़ा गला सिस्टम। जो जनता को विकास का हसीन ख्वाब दिखा उन्हें ठगते हैं। कुछ ऐसा ही ठगापन 14 साल से सीएम नीतीश कुमार के गृह जिला नालंदा के चंडी की जनता महसूस कर रही है।”
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज (जयप्रकाश नवीन)। हमारे हुक्मरानों के लिए भले ही शिलापट्ट मजाक हो, भले ही उनके लिए वह पत्थर हो, मगर आम लोग पत्थर पर खींची लकीर को दिल पर ले बैठते हैं। विकास की उम्मीदें उनमें स्वत: कूलाचें भरने लगती है।
14 जनवरी 2004 को तत्कालीन रेलमंत्री और अब सूबे के मुखिया नीतीश कुमार ने चंडी के जैतीपुर में लगभग एक करोड़ की लागत से बनने वाले जैविक उर्वरक संयंत्र की आधारशिला रखी थी।
इफको द्वारा प्रस्तावित यह बड़ा खुला जैविक कारखाना प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के संसदीय क्षेत्र फूलपुर के बाद दूसरा संयंत्र बताया गया था ।
सबसे हास्यास्पद वाली बात यह है कि कृषि मंत्री तथा नालंदा कृषि पदाधिकारी को खुद पता नहीं कि उर्वरक संयंत्र का निर्माता कौन है? ना ही उर्वरक संयंत्र निर्माता से संबंधित कोई आवेदन या अभिलेख कृषि कार्यालय नालंदा के पास है।तो क्या जैविक उर्वरक संयंत्र को जमीन खा गया या फिर आसमान ।
आज केंद्र और राज्य में एनडीए की सरकार है। तुक्का उस पर बिहार से केन्द्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह आते हैं। बिहार विधानसभा के दौरान एनडीए नेताओं ने नालंदा को रौंद डाला था। लेकिन उन्हें अपने कार्यकाल में शिलान्यास हुए जैविक उर्वरक संयंत्र पर नजर नहीं गई।
4 दिसंबर को राज्य के पूर्व शिक्षा मंत्री डॉ रामराज्य की स्मृति दिवस समारोह के मौके पर पहुँचे सूबे के कृषि मंत्री प्रेम कुमार को स्थानीय आरटीआई कार्यकर्ता उपेन्द्र प्रसाद सिंह ने एक मांग पत्र देकर जैविक उर्वरक संयंत्र को आरंभ करने की मांग की थीं।
उन्होंने मंत्री प्रेम कुमार को लिखा कि पिछले 13 साल के बाद भी एक ईट तक नहीं लगी है। जबकि पीएम देश में जैविक खेती पर जोर दें रहें हैं।
उपेन्द्र प्रसाद सिंह ने कृषि मंत्री से उम्मीद लगाई थी कि पर परियोजना राज्य एवं केंद्र की मुख्य एजेंडे में शामिल होगा और प्रधानमंत्री का नारा ‘सबका साथ सबका विकास’ सफल होगा।
यहाँ से भी उक्त आवेदन इस टेबल से उस टेबल फिरता हुआ राज्य शिकायत निवारण में चला गया। वहाँ से इसे जिला लोक शिकायत निवारण को भेज दिया गया ।
लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी नालंदा ने इसकी सुनवाई की।जहाँ कृषि पदाधिकारी के प्रतिनिधि ने उपस्थित होकर प्रतिवेदन पत्रांक 688 दिनांक 23 फरवरी के द्वारा समर्पित किया।
उसमें जानकारी दी गईं कि परिवादी उपेन्द्र प्रसाद सिंह की शिकायत के बारे में कृषि विभाग कार्यालय नालंदा का कोई दायित्व नहीं बनता है। उर्वरक संयंत्र के निर्माता कौन है, इसकी जानकारी हमें नहीं है। न ही उर्वरक संयंत्र निर्माता से संबंधित कोई आवेदन या अभिलेख कृषि कार्यालय में उपलब्ध है। जिस पर कोई कार्य किया जा सकें।
अब सवाल यह उठता है कि जब कृषि विभाग को इस जैविक उर्वरक संयंत्र की जानकारी नहीं है तो इस संयंत्र को जमीन खा गया या फिर आसमान ।
एक तरह से जैविक उर्वरक संयंत्र अब अस्तित्व विहीन होकर रह गया है। शिलान्यास स्थल पर लगा बोर्ड कोई और ले भागा। शिलापट्ट अपने दुर्भाग्य पर आंसू बहा रही है।
14 साल बाद भी किसी को पता नहीं कि आठ कट्ठे की जमीन पर मालिकाना हक इफको का है या फिर किसी अन्य का। उस दस लाख रूपये किसकी जेब में गए जो संयंत्र के लिए निर्गत हुए थे।
इफको द्वारा प्रस्तावित इस कारखाने के शिलान्यास के अवसर पर तत्कालीन प्रबंध निदेशक उदयशंकर अवस्थी, नेफेड के पूर्व अध्यक्ष स्व. अजीत सिंह, सांसद राजीव रंजन सिंह,विधायक हरिनारायण सिंह गवाह थे।
लेकिन आज इन्हें भी जैविक उर्वरक संयंत्र की जानकारी नहीं है। नालंदा के सांसद यह कहकर पल्ला झाड लेते हैं कि यह उनके समय का मामला नहीं है।