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नालंदा एसपी ने दी अधिकार की दुहाई, लेकिन शराबी जमादार की जांच नहीं कराई

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अमुमन एक आम शराबी को पुलिस ईच्छित नजराना लेकर छोड़ देता है  या फिर उसकी मेडिकल जांच कराकर उसे जेल भेज देती है। लेकिन नालंदा एसपी सुधीर कुमार पोरिका ने जो कुछ भी होने दिया, वह सीएम नीतिश के जिले में ही उनकी राज्य में पूर्ण शराबबंदी की नीति को तार-तार कर देती है…..”

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नालंदा एसपी सुधीर कुमार पोरिका…. संदिग्ध भूमिका

एक्सपर्ट मीडिया न्यूज। नालंदा जिले के राजगीर थाना में पदास्थापित जमादार जबाहर प्रसाद ऑन ड्यूटी नशे में धुत होकर हंगामा मचा रहा था। 

पत्रकार राजीव एक वर्दीधारी जमादार की शराब के नशे में होने की पुष्टि करना चाहता था, लेकिन उसे थाना परिसर में बंधक बना कर पीटा गया। उसे हाजत में बंद कर दिया गया। नालंदा एसपी को भी जानकारी दी गई। उन्होंने जो कुछ कहा, वो रिकार्डेड है।

जब एसपी से पूछा गया कि एक आम नागरिक की तरह शराबी जमादार की भी मेडिकल जांच होनी चाहिये तो उनका कहना था कि जरुर होनी चाहिये और अभी वह थाना से फरार है, उसे ट्रेस किया जा रहा है। ट्रेस होने के बाद ही कुछ किया जा सकता है।

लेकिन, शराबी जमादार के ट्रेस हो जाने के बाद उसकी मेडिकल जांच नहीं कराई गई। उल्टे राजगीर थाना में ही घटना के 2.5 घंटे बाद उल्टे काउंटर केस करवाया गया। जिसमें पीड़ित पत्रकार पर अनाब-शनाब आरोप लगाये गये।

पीडि़त पत्रकार पर जिस तरह के आरोप लगाए गये हैं, अगर उस आधार पर शासन को चाहिये कि राजगीर थाना को तत्काल बंद कर दिया जाये, क्योंकि जब वह और वहां के कर्मी सुरक्षित नहीं है तो फिर आम आदमी की सुरक्षा क्या खाक करेगी।

कितनी शर्मनाक स्थिति है कि जिस थाना परिसर में पुलिस बल की भरमार है, उस महौल में एक शराबी जमादार की शिकायत पर जिस समय पीड़ित पत्रकार पर मनगढ़ंत मुकदमा किया जाता है, उसके आधा घंटा बाद यानि 11 बजे तक तक पीड़ित पत्रकार थाना में खुद मौजूद रहता है। फिर भी राजगीर थाना प्रभारी 10.30 यानि आधा घंटे पहले की एफआईआर दर्ज कर लेता है।

हास्यास्पद तो यह है कि काउंटर केस की संख्या में भी गैपिंग है। क्या थानाध्यक्ष ने घटना के बाद ही शाजिश रच ली थी कि आगे क्या करना है और कैसे पीड़ित पत्रकार को फंसाते हुये शराबी जमादार को बचाना है।

इधर जानकारी के बाबजूद शराबी जमादार का मेडिकल जांच कराने में विफल नालंदा एसपी सुधीर कुमार पोरिका का कहना है कि काउंटर केस करना किसी का संवैधानिक अधिकार है। उसे हम नहीं रोक सकते।

लेकिन एसपी साहब यह तर्क विश्वसनीय तभी माना जा सकता है, जब संवैधानिक अधिकार के साथ संवैधानिक कर्तव्य और दायित्व का भी निर्वहन हो। भारतीय संविधान उसी को कोई अधिकार देता है, जो राष्ट्र और समाज के प्रति कर्तव्य-दायित्वहीन न हो। (जारी…)  

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