….किस रिश्ते के आधार पर एक पत्रकार को दी वीडियो फूटेज ?
“पप्पू यादव की शिकायत सिस्टम से है ना कि किसी महिला से। अगर एसएसपी अपने-आप को महिला मानती हैं तो उन्हें कानून-व्यवस्था संभालने की जिम्मेदारी से मुक्त हो जाना चाहिये। चौखट में रहना चाहिये और पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वहन करना चाहिये….. श्याम सुंदर, प्रदेश प्रवक्ता, जन अधिकार पार्टी।”
एक्सपर्ट मीडिया न्यूज। बात निकली है तो दूर तलक जाएगी। मुजफ्फरपुर एसएसपी बड़ी आहत हैं जन अधिकार पार्टी (लोकतांत्रिक) के संरक्षक माननीय सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव की बातों से।
वह कह रही हैं कि नारी सम्मान के लिये पदयात्रा करने वाले पप्पू यादव एक नारी का अपमान कर रहे हैं और लव लेटर लिखने की बात कर रहे हैं। पप्पू यादव ने यह तब कही जब एसएसपी अपनी सफाई पटना के एक पत्रकार को दी।
दूसरे जगह का वीडियो जारी की। घटना खभरा मुहल्ले की है और वीडियो चंद्रहट का जारी की हैं। क्या मुजफ्फरपुर में कोई पत्रकार नहीं था? क्या एसएसपी अपनी सारी सार्वजनिक करने वाली बातें पटना के ही पत्रकार से करती हैं? आखिर माजरा क्या है?
किस रिश्ते के आधार पर उस पत्रकार को वीडियो जारी करती हैं एसएसपी? इस पर एसएसपी क्यों नहीं बोल रहीं। किसके इशारे पर चंद्रहट के वीडियो को खभरा का वीडियो बता रही हैं।
वह क्यों कह रही हैं कि महिला होने के नाते मेरा अपमान हैं। आने वाले दिनों में वह यह भी कह सकती हैं कि अनुसूचित जाति के हैं, इसलिये पप्पू यादव ने हमें निशाने पर लिया।
क्या यह सच नहीं है कि जब भी कोई सरकारी सेवक फंसता है तो इसी तरीके से मामले को तोड़-मरोड़ कर पेश करता है। बहरहाल, देश को झूठ बोलकर दुमराह करने वाली एसएसपी का नारको टेस्ट कराया जाना चाहिये। ताकि सच्चाई सामने आ जाये।
मोबाइल और टेलीफोन पर हुई बातचीत भी सार्वजनिक होना चाहिये ताकि, देश को यह पता चल सके कि संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति कैसे देश को गुमराह कर रहा है। एसएसपी देश की कड़ी प्रतियोगिता परीक्षा पास कर आयी हैं।
खैर, भावुक होकर जिस लहजे में एसएसपी ने अपने फेसबुक अकाउंट से पहले अंग्रेजी और बाद में हिंदी में पोस्ट करते हुए लिखती हैं कि पप्पू यादव की बातों से आहत हूं तो फिर सवाल है कि ईमानदारी से काम करने का दावा करने वाली एसएसपी यह बताएंगी कि आखिर क्यों शेल्टर होम में रहने वाली नाबालिग लड़कियों की चीख से आहत नहीं हो रही थीं, जबकि लड़कियां शाम होते ही दरिंदों के डर से आये दिन चीखना-चिल्लाना शुरू कर देती थी।
तत्कालीन कल्याण मंत्री मंजू वर्मा का बलात्कारी पति लंबे समय से फरार है। क्यों नहीं गिरफ्तारी कर रही है? किस बिल में छुपा है बलात्कारी मंत्री का पति। शेल्टर होम के कुकर्मों का गवाह मधु कहां गायब है? सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी किसकी थी?
सरकारी संरक्षण में 32-32 लड़कियां गर्भवती बनीं। सैकड़ों का गर्भपात कराया गया, तब आहत क्यों नहीं हुई एसएसपी? बेटे की चाहत में आये दिन इसी मुजफ्फरपुर में सैकड़ों महिलाओं का गैर-कानूनी गर्भपात कराया जा रहा है, तब आहत क्यों नहीं हो रही हैं एसएसपी? धन्य हो टिस के ऑडिट रिपोर्ट का।
जिसने खुलासा किया कि सरकारी संरक्षण में चलने वाला शेल्टर होम सेक्स का अड्डा बन गया है। यहां आये दिन लड़कियों का गर्भपात करवाया जा रहा है। यह सारा खेल नेता-अधिकारी गठजोर का परिणाम है। तब भी तीन महीने तक एसएसपी अंजान बनी रही।
इस मामले में जब पप्पू यादव संवेदना दिखाते हुए सवाल उठाते हैं तब एसएसपी क्यों आहत हो रही हैं? पप्पू यादव तो 6 सितंबर को नारी के सम्मान में मधुबनी के बासोपट्टी में आयोजित सभा में भाग ही तो लेने जा रहे थे।
पत्रकारों को कहती हैं कि दो सालों के बाद सोशल साइट पर आयी हूं। आहत हूं। भावना को ठेस पहुंची है। सवाल तो है कि महिला होने के बावजूद बच्चियों की चीख क्यों नहीं सुनी एसएसपी।
न्यायिक हिरासत में रह रहे बलात्कारी ब्रजेश ठाकुर को बतौर सरकारी मेहमान कभी जेल तो कभी अस्पताल में कैसे रख रही हैं एसएसपी? जबकि वह संगीन अपराध का आरोपी है। मुजफ्फरपुर में सक्रिय तस्करों के खिलाफ अभियान चलाने से क्यों डरती हैं सांसद?
आये दिन इसी मुजफ्फरपुर में लड़कियों के साथ बलात्कार हो रहे हैं। तब क्यों नहीं आहत हो रही हैं एसएसपी? यही नहीं, सुना है कि कोई अजय पांडेय नामक व्यक्ति एसएसपी पर पप्पू यादव ने जो टिप्पणी की है, उससे वह आहत है और मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी, मुजफ्फरपुर के कोर्ट में मुकदमा दर्ज किया है।
अगर यह सच है तो इसकी भी जांच होनी चाहिये कि अजय पांडेय ही क्यों आहत हुआ? जबकि ना तो वह रिश्तेदार है और ना कोई रिश्ते ही सार्वजनिक हुए हैं? उस व्यक्ति का चरित्र भी सार्वजनिक किया जाना चाहिये कि आखिर किन वजहों से वह आहत हो रहा है? आहत तो एक जिम्मेदार पद पर बैठे उनके पति को होना चाहिये था। परिवार के अन्य सदस्यों को होना चाहिये था।
बहरहाल, जब पप्पू यादव ने कॉमन एजुकेशन और हेल्थ का सवाल उठाया तब भी गुंडों ने चुनौती दी। शेल्टर होम के कुकर्मों को उजागर किया तब भी चुनौती मिली। गुरुग्राम के एक स्कूल में जब अबोध प्रदुमन ठाकुर की हत्या सेक्स के सौदागरों ने कर दी, तब जानलेवा हमला किया।
फतुहा में भी दरिदे एक लड़के की हत्या कर दी, तब भी आहत पप्पू यादव ही हुए। बक्सर में दलितों पर पुलिसिया जुर्म कहर बनकर टूटा तब भी पप्पू यादव की पुकार हुई। गुरारू में मां-बेटी का सामूहिक बलात्कार, तब भी पप्पू।
सूबे में नियोजित सेवकों का मामला हो या फिर आशा, आंगनबाडी, यूपीएससी / बीपीएससी तब भी पप्पू। चिलचिलाती धूप में पागलों की तरह नारी के सम्मान के लिये डेली दर्जनों मिल पैदल चलने का माद्दा पप्पू। जाति और धर्म से ऊपर उठकर सियासत करने वाला पप्पू। तब भी संवैधानिक पद पर बैठा जिम्मेवार व्यक्ति पप्पू यादव से ही आहत?
आश्चर्य तो यह कि सोशल मीडिया पर जिस तरीके से पप्पू यादव की कुटाई/पिटाई की बातें लिखी जा रही है। वह पप्पू लगातार संवैधानिक मूल्यों की बातें सड़क से लेकर सदन तक कर रहा है।
आखिर आरक्षण विरोधियों के गुस्से का शिकार पप्पू यादव ही क्यों? दिल्ली से लेकर पटना तक उन्हीं की तो सरकार है। क्यों नहीं नीतियां बनाते? किसने रोका है? आबादी के अनुसार सत्ता/सरकारी सेवाओं में भागीदारी संविधान सम्मत तो है फिर गुंडई पप्पू यादव के साथ क्यों?
माना कि सांसद पर हमला असमाजिक तत्वों ने किया था। लेकिन एसएसपी क्यों एक राजनीतिक दल की तरह पार्टी बनना चाह रही हैं? उनको अपनी पूरी ऊर्जा अपराध मुक्त समाज निर्माण में लगाना चाहिये। अगर एसएसपी ऐसा करती हैं तो अवाम एसएसपी का सम्मान करेगी। हम सलाम करेंगे।