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जनता दल के लोमड़ियों की कहानी, एक्सपर्ट मीडिया की जुबानी

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jantadal pariwar1“आज हम जनता दल परिवार के बनने और टूटने की  इतिहास पर बात करेंगे । 1977 में केन्द्र में पहली बार गैर कांग्रेसी जनता पार्टी की सरकार बनी थी। लेकिन पहली बार सत्ता का स्वाद चख रहे जनता पार्टी में उसी समय स्वार्थ आ गया। जिस वजह से एक बहुमत वाली सरकार महज ढाई साल में बिखर गई । और ऐसी बिखरी कि आज तक बनती-बिखरती ही रही। जनता दल उसी की एक इकाई बन उभरी थी”

जयप्रकाश नवीन /एक्सपर्ट मीडिया न्यूज डेस्क। बिहार में एक और सियासी भूचाल की पृष्ठभूमि तैयार हो रही है। आने वाले दिनों में जनता दल परिवार में एक और टूट की कयास लगाई जा रही है। 19 अगस्त को जदयू के समानांतर एक सम्मेलन में नेता पद से हटाए गए शरद यादव के बयान के बाद तय हो गया है कि जनता परिवार में एक और टूट तय है। जदयू ने साफ कर दिया है कि यदि वे(शरद यादव) 27 अगस्त को राजद की रैली में शामिल होते हैं तो उनका जद यू से निष्कासन तय है। ऐसी स्थिति में शरद यादव जल्द ही एक नई पार्टी का गठन कर सकते हैं ।

राजनीतिक दलों में टूट की कहानी कोई नई नहीं है। कांग्रेस से लेकर कई राजनीतिक दल टूटते रहे है, उनका विलय होता रहा है। आज कांग्रेस(आई) के नाम से जानी जाती है। इसका चुनाव चिन्ह भी बदला । राष्ट्रीय दलों के साथ -साथ क्षेत्रीय दल भी इससे अछूते नहीं रहे हैं । कभी हरियाणा की राजनीति में “आया राम गया राम” कहावत ही बन गई थी।

छोटे छोटे राज्यों में आज भी क्षेत्रीय दल किसी न किसी राजनीतिक दल में समाहित हो जाते हैं ।कहीं- कही तो एक सीट के साथ राजनीतिक दल बने हुए है । या फिर किसी राजनीतिक दल में उनका विलय हो जाता है ।कभी अकेले एक सीट के दम पर सरकार गिराने का माद्दा भी ये दल दिखा चुके हैं ।

बात करेंगे 1988 की ।यह वहीं दौर था जब उस समय के कदावर नेता वीपी सिंह, चंद्रशेखर सिंह, चौधरी देवीलाल, लालू प्रसाद यादव, शरद यादव, नीतीश कुमार और रामविलास पासवान तथा मुलायम सिंह यादव जैसे नेता राष्ट्रीय राजनीति की फलक पर उभर रहे थे ।सभी को एक मंच पर लाने की कवायद शुरू हो चुकी थी।

एक राजपरिवार से आने वाले विश्वनाथ प्रताप सिंह जो कभी कांग्रेस में रह चुके थे और वीपी सिंह के नाम से जाने जाते थे । 11 अक्टूबर 1988 को एक नए राजनीतिक दल “जनता दल” का गठन किया ।इस नए दल में जनता पार्टी, जनमोर्चा तथा लोकदल जैसी पार्टियाँ भी शामिल हुई।यह वही दौर था जब देश में कमंडल के खिलाफ मंडल का नारा दिया गया।

1989 में लोकसभा का चुनाव सर पर था । जनता दल ने लोकसभा चुनाव में 142 सीटें प्राप्त की थी।कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी लेकिन 142 सीटें मिलने के जनता दल ने दूसरे राजनीतिक दलों के समर्थन के सहयोग से सरकार बनाने में कामयाब रही ।वीपी सिंह के पीएम बनने के पीछे की कहानी भी गजब है।चंद्रशेखर सिंह चौधरी देवीलाल को पीएम बनाना चाह रहे थे लेकिन देवीलाल ने विश्वनाथ प्रताप सिंह के पीएम बनाने पर अपनी मुहर लगा दी।

लेकिन जनता पार्टी की तरह ही विश्व नाथ प्रताप सिंह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके और महज 11 महीने में ही उनकी सरकार गिर गई।चंद्रशेखर सिंह जनता दल से मतभेद के बाद अलग हो गए ।बाद में चंद्रशेखर सिंह ने कांग्रेस के बाहरी समर्थन से अपनी सरकार बना ली।लेकिन सिंह की भी सरकार सात महीने में ही खत्म हो गई।

इसके बाद चंद्रशेखर सिंह, चौधरी देवीलाल तथा मुलायम सिंह यादव ने साथ मिलकर समाजवादी पार्टी का गठन किया । कुछ माह बाद इस दल में भी दरार पड़ने लगी और मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी जनता पार्टी को जन्म दिया ।मुलायम सिंह के अलग पार्टी बनाने के बाद अजीत सिंह भी जनता दल को अलविदा बोल अपनी एक नयी पार्टी “राष्ट्रीय लोक दल” का गठन कर लिया ।

1994 अब जनता दल से जार्ज फनार्डीज तथा नीतीश कुमार के जाने की बारी आ गई । दोनों जनता दल से अलग होकर “राष्ट्रीय लोकदल” बनाई जिसे बाद में नाम बदल कर “समता पार्टी “रखा गया । उसके बाद नीतीश कुमार ने समता पार्टी का विलय जनता दल यू में कर लिया जो अब तक बरकरार है।

1999 में शरद यादव भी जनता दल से अलग होकर नीतीश के समता पार्टी में शामिल हो गए।  वर्ष 1996 में उप पीएम रहे चौधरी देवीलाल ने भी अपनी अलग राह बना ली।हरियाणा में उन्होंने जनता दल से अलग होकर “हरियाणा लोकदल(राष्ट्रीय)” पार्टी का निर्माण किया ।

1997 में जनता दल के अस्तित्व पर सबसे बड़ा खतरा मंडराया ।लालू प्रसाद यादव जनता दल के लिए आखिरी कील साबित हुए ।1997 का वर्ष बिहार की राजनीति में एक बड़े बदलाव का वर्ष रहा ।

जनता दल परिवार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहे बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव का नाम चारा घोटाला में आ चुका था । उन्हें लगातार रांची में पेश होने की मजबूरी उनके सामने थी। साथ ही जनता दल तथा विपक्षी दल उनपर सीएम पद छोड़ने का राजनीतिक दबाव बना रहे थे । लेकिन अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा की बलि नहीं देने वाले लालू प्रसाद यादव को यह गवारा नहीं था कि उनकी जगह कोई और बिहार का सीएम बन जाए।

उन्होंने एक बड़ा कदम उठाते हुए रातों रात जनता दल में एक बड़ी फूट पैदा कर दी। जनता दल को तोड़ कर एक नयी राजनीतिक दल बना ली। नाम रखा “राष्ट्रीय जनता दल”। राष्ट्रीय जनता दल के गठन के बाद उन्होंने बिहार के सीएम पद से इस्तीफा देकर अपनी अर्धांगनी राबडी देवी को सीएम की कुर्सी पर विराजमान कर राजनीतिक पंडितों को अंचभित कर दिया । लालू प्रसाद यादव जनता दल के चुनाव चिन्ह चक्र पर भी दावा किया।

इसके बाद भी जनता दल से कई नेता अलग होते चले गए ।1997 में बिहार के बाद उड़ीसा की राजनीति में कदावर पटनायक परिवार से आने वाले नवीन पटनायक ने भी जनता दल का साथ छोड़ दिया ।और अपने पिता बीजू पटनायक के नाम पर “बीजू जनता दल” का गठन किया । नवीन पटनायक आज उड़ीसा के सीएम हैं ।

1999 में जनता दल में टूट की आग कर्नाटक तक फैल गई ।रामकृष्ण हेगड़े भी जनता दल से विदा होकर लोक शक्ति पार्टी बना ली।बाद में उन्होंने अपनी पार्टी का विलय जनता दल यू में कर लिया ।इसी वर्ष पूर्व पीएम एच डी देवगौडा ने भी कर्नाटक की राजनीति में जनता दल से अलग होने के बाद अपना अलग दल जनता दल (एस) का निर्माण किया ।

दलित राजनीति में अपनी उपस्थिति दर्ज करने वाले रामविलास पासवान ने वर्ष 2000 में जनता दल से नाता तोड़ कर लोक जन शक्ति पार्टी बना ली।

1988 में बनी जनता दल एक बड़े कुनबे के रूप में जाना जाता था । इस राजनीतिक दल से कई बड़े नेता अपने अपने राज्य में मुख्यमंत्री रहे और आज भी है।लेकिन 29 साल के सफर में एक एक कर बड़े नेता अलग होते चले गए । कुनबा बिखरने लगा। जनता दल टूटता रहा, कई नाम बनते गए । जनता दल का चुनाव चिन्ह चक्र भी चुनाव आयोग ने जब्त कर लिया ।

एक बार फिर से जनता परिवार में टूट की आशंका लगाई जा रही हैं । 1999 के बाद शरद यादव फिर से एक नयी राजनीतिक दल का निर्माण करने की दिशा में जा रहे हैं ।

राज्य सभा में जद यू ने पहले ही उनके पर काटकर संदेश दे दिया है कि उनका जदयू से जाना तय है। अब देखना है कि अलग पार्टी बनाकर शरद यादव जदयू को कितना नुकसान पहुँचा सकते हैं, या फिर वे राजद का दामन थाम सकते हैं । आखिर सियासत है यहाँ सब कुछ संभव है। (ग्राफिकः साभार भास्कर)

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