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चारा घोटाला पर फैसला टला, लालू ने दी एजी को आरोपित करने की अर्जी

लालू प्रसाद के अधिवक्ताओं का तर्क है कि तत्त्कालीन एजी अगर सतर्क होते और सरकार को इस घोटाले की जानकारी देते तो यह नौबत ही नहीं आती।

एक्सपर्ट मीडिया न्यूज (विनायक विजेता)। बहुचर्चित चारा घोटाले के चौथे मामले में रांची सीबीआई कोर्ट में सजा के बिन्दुओं पर आज सुनाया जाने वाला फैसला टल गया।

आरसी 38/ए-96 के इस प्राथमिकी में दुमका कोषागार से 3.76 करोड की अवैध निकासी के आरोप में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद सहित 31 आरोपितो के खिलाफ सीबीआई जज शिवपसल सिंह की अदालत में ट्रायल चल रहा था।

lalu jail 1इस मामले में 244 गवाहों की गवाही के बाद अदालत ने सजा के बिन्दुओं पर आज फैसला सुनाने की तिथि मुकर्रर की थी। पर रांची जिला बार एसोशिएशन के आज हो रहे चुनाव के कारण इस फैसले को कल तक के लिए टाल दिया गया।

गौरतलब है कि शिवपाल सिंह की अदालत ने ही लालू प्रसाद, पूर्व सांसद डा. जगदीश शर्मा आर के राणा सहित कई आरोपितों को देवघर कोषागार से अवैध निकासी मामले में सजा सुनायी थी। जिसके बाद से सभी रांची के होटवार जेल में हैं।

इस बीच आज लालू प्रसाद की ओर से उनके वकीलों ने सीबीआई जज शिवपाल सिंह की अदालत में एक रिवाइज पीटीशन दाखिल कर इस मामले में तत्कालीन एजी को भी अभियुक्त बनाकर उन्हें भादवि की धारा 319 के तहत उन्हें समन करने का आग्रह किया है।

तत्कालीन सरकार को 1991-92 में जैसे ही इस घेटाले की जानकारी मिली तो सरकार ने जांच तब सही कदम उठाते हुए संबंधित लोगों पर एफआईआर करने का आदेश दिया था।

क्या है सीआरपीसी-319

वर्ष 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान यह आदेश जारी किया था कि पुलिसिया या किसी जांच एजेंसी ने आरोपपत्र या एफआईआर में जिस व्यक्ति को अभियुक्त नहीं बनाया है और ट्रायल के दौरान उसके खिलाफ पहली नजर में सबूत आते हैं, तो ऐसे में अदालत उस व्यक्ति को आरोपी के रूप में समन कर सकती है।

तब संविधान पीठ ने स्पष्ट किया कि इसके लिए अदालत को गवाह से जिरह तक इंतजार करने की जरूरत नहीं है। गवाह के बयान होने पर अगर अदालत समझती है कि जिस व्यक्ति को कटघरे में खड़ा होना चाहिए था, वह अभियुक्त के रूप में कोर्ट में नहीं लाया गया तो ट्रायल कोर्ट उसे समन करके तलब कर सकती है।

तत्कालीन चीफ जस्टिस पी सदाशिवम, जस्टिस बीएस चौहान, जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई, जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस एसए बोबडे की संविधान पीठ ने इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों तथा देश की विभिन्न हाईकोर्ट के विरोधाभासी निर्णयों को स्पष्ट करते हुए सीआरपीसी की धारा 319 की बड़े स्तर पर व्याख्या की थी। फौजदारी कानून में संविधान पीठ के इस फैसले को बेहद अहम माना जाता है।

हालांकि सीआरपीसी की धारा 319 के तहत अदालतें नए बनाए गए अभियुक्त को समन करती रही हैं। लेकिन अदालतें यह अधिकार किस समय और ट्रायल के किस चरण में इस्तेमाल करेंगी, इस पर विभिन्न अदालतों के फैसलों ने पेचीदा बना दिया था।

सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्टों के परस्पर विरोधी फैसलों से निचली अदालतों को खासी परेशानियों का सामना करना पड़ता था। इस मुद्दे पर संविधान पीठ के फैसले से स्थिति स्पष्ट हो गई है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 319 का इस्तेमाल आरोप निर्धारित होने के बाद गवाही शुरू होने पर किया जा सकता है। गवाही के दौरान किसी ऐसे शख्स के खिलाफ सबूत आ गए हैं, जिसे पुलिस या जांच एजेंसी ने आरोप पत्र में अभियुक्त नहीं बनाया है तो ट्रायल कोर्ट उसे समन कर सकती है।

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