“बौद्ध धर्म गैर भौतिकवादी और अहिंसावादी है। 21वी सदी में बौद्ध धर्म की प्रासंगिकता और महत्व बहुत अधिक है। आइंस्टीन ने भी यही कहा था। मैं भी यही कहता हूं। विश्व शांति लिए बौद्ध धर्म सबसे उपयुक्त धर्म है। नालंदा दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक धरोहर है। यहां आकर उन्हें गौरव महसूस हो रहा है। पहली बार वे नालंदा (भारत) आए हैं। बार-बार यहां आने की उन्हें इच्छा है।”
उन्होंने कहा कि सत्य की तलाश में एक अन्वेषण की तरह धम्म है। भारत की यह पवित्र भूमि करुणा, दया, सहिष्णुता से भरपूर है। अन्य धर्मों की तुलना में बौद्ध धर्म का भविष्य सबसे अच्छा दिखता है।
उन्होंने कहा कि बौद्ध धर्म और दर्शन एक सही और व्यवस्थित जीवन जीने का तरीका है। वर्तमान में लोग भौतिकवादिता से त्रस्त होकर बुद्ध की शिक्षाओं का अनुसरण करना चाहते हैं। भगवान बुद्ध और नालंदा में स्थापित उनके शिक्षा चिन्हों को जॉनसन ने सांस्कृतिक निधि बताया।
भगवान बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग और आर्य सत्यो को बार-बार व्याख्या करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि बुद्ध के विचारों को अपने जीवन और आचरण में सम्मिलित करने की जरूरत है।
चार्ल्स रिचर्ड जॉनसन ने कहा कि अमेरिकी अश्वेत बौद्ध धर्म को अपना रहे हैं। हर साल उनकी संख्या बढ़ती जा रही है।
उन्होंने कहा कि अश्वेतो के ऊपर काफी जुल्म हुआ है। उसी जुल्म से तंग आकर अश्वेत बौद्ध धर्म को अपना रहे हैं। बौद्ध धर्म अंगीकार करने के बाद अश्वेतों में शिक्षा और आर्थिक सामाजिक परिवर्तन हुआ है।
अमेरिकी लेखक जॉनसन ने कहा कि अमेरिका में रंगभेद नीति की वजह से जीवन और संघर्ष दोनों ही कठिन हो गए हैं। ऐसी स्थिति में भगवान बुद्ध की शिक्षा जीवन को सरल बनाती है।
उन्होंने कहा कि अमेरिका में बौद्ध दर्शन का बहुत महत्व है। नव नालंदा महाविहार डीम्ड विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभागाध्यक्ष डॉ श्रीकांत सिंह की एक सवाल में उन्होंने कहा कि वे कर्म के सिद्धांत का आदर करते हैं।