“वैसे तो ग्रामीण फास्ट फूड के रूप में चूड़े की डिमांड साल भर तक रहती है। परंतु मकर सक्रांति पर्व को लेकर 14 जनवरी तक बिहार सहित अन्य राज्यों में चूड़े की विशेष डिमांड रहती है…”
नालंदा (कुमुद रंजन)। नई फसल कटने के साथ ही धान से बनने वाली बिहारी फास्ट फूड चूड़ा अपनी सोंधी धमक के कारण ग्रामीणों का पसंदीदा फास्ट फूड के रूप में जाना जाता है।
ग्रामीण इलाकों में नए धान के कटने के साथ ही चूड़ा मिल जगह जगह लग जाते हैं और चूड़ा कूटाने के उन मिलों में लोगों की भीड़ शुरु हो जाती हैं।
चूड़ा तैयार करने की विधि के अनुसार धान को फटक कर, ओसा कर साफ करके पानी में 24 से 48 घंटे तक फूलने के लिए डाला जाता है। उसके बाद पानी से निकालकर 8 से 10 घंटे के लिए टोकरी में उसे रखा जाता है, ताकि सारा पानी निकल जाए।
तदुपरांत उसे चूड़ा मिल में लोग ले जाते हैं, जहां चूड़ा मिल में लगे एक विशेष प्रकार के चूल्हे, जिसे डमरू कहा जाता है, उसमें 3 से 5 किलो धान की घानी में भूना जाता है और फिर उसे तेजी से घुमती एक चकरी में डाल कर चूड़ा तैयार किया जाता है।
एक मिल संचालक के अनुसार 100 किलो धान में 54 से 55 किलो चूड़ा तैयार होता है। अभी धान से चूड़ा बनाने का रेट 350 रूपये प्रति 100 किलो चल रहा है।
वैसे तो ग्रामीणों में हरा चूड़ा सबसे पसंदीदा चूड़ा होता है। पर सुगंधित चूड़ा लंबे धान का चूड़ा व देसी चूड़ा का भी अपना एक अलग पहचान है।
जानकार बताते हैं कि पुराने ग्रामीण परिवेश में ढेकी उखड़ी समाट व ठकुरा से परंपरागत तरीके से जुड़ा निर्माण किया जाता था, जो अब लुप्त प्राय हो गया है। अब ग्रामीण स्तर पर भी हर जगह उसका स्थान मिलों ने ले ली है।
सावन माह में बाबा धाम के प्रसाद के रूप में चूड़े का भोग लगाया जाता है। जो आज तक प्रचलित है। पर्व त्योहारों में भी चूड़े का प्रयोग होता रहा है।