Home आस-पड़ोस कुशासन-भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों की एकजुटता जदयू प्रत्याशी की बड़ी मुसीबत

कुशासन-भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों की एकजुटता जदयू प्रत्याशी की बड़ी मुसीबत

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नालंदा (एक्सपर्ट मीडिया न्यूज नेटवर्क)। मीडियाई सुशासन बाबू उर्फ बिहार के सीएम नीतीश कुमार का गृह जिला नालन्दा राजनीतिक करवट की अंगड़ाई लेता दिख रहा है।

राजनीतिक करवट तो 2014 के लोकसभा चुनाव में ही तय हो गयी थी, लेकिन मामूली मतों के अंतर से कौशलेंद्र कुमार की दोबारा वापसी हुई थी या जनता की भाषा में कहे तो वर्ष 2014 के मोदी लहर में एनडीए उम्मीदवार को सर्टिफिकेट नहीं मिल सका था।nalanda jdu ham election voter

इधर सुशासन बाबू के घटती लोकप्रियता ही है कि कभी लाखों वोट से नालन्दा पर फतह करने वाली उनकी पार्टी-गठबंधन गृह प्रखण्ड के लोगों के सामाजिक विद्रोह की लहर रोकने में सक्षम नहीं दिख रही है और बदलाव की हवा गांव गांव में साफ दिख रही है।

इसमें कोई विगत कुछ वर्षों से नालन्दा में बिगड़ती कानून व्यवस्था, प्रशासनिक निरंकुशता और कायम भ्रष्टाचार की वजह से सुशासन का ग्राफ काफी नीचे गिरा है। जिसके लिए नालन्दा वासी सीधे सीधे नीतीश कुमार और उनके लाट साहबों को जिम्मेवार मानते है।

यही वजह है कि सबसे निगेटिव माहौल उनके गृह प्रखण्ड हरनौत विधानसभा में ही देखने को मिल रहा है। उनके क्षेत्र से ही सबसे ज्यादा राजनीतिक विद्रोह की लहर नालन्दा में परिवर्तन का साफ इशारा कर रही है।

राजनीतिज्ञ विश्लेषकों की राय में नालन्दा का चुनाव विकास बनाम जातिवाद मानते हैं। लेकिन कड़वा सत्य यह है कि इन मुद्दों से अलग नालन्दा की जंग नीतीश के खिलाफ राजनीतिक विद्रोह की भी लड़ाई हो गयी है, जिसमे उनके स्वजातीय कुर्मी वोटर भी महत्वपूर्ण भूमिका में है।

नीतीश कुमार, रामस्वरूप प्रसाद सहित कौशलेंद्र कुमार की पहली पारी को कुर्मी वोटरों ने सहर्ष स्वीकार किया, लेकिन तीसरी पारी के लिए रिमोट छाप कौशलेंद्र कुमार पर लगाया गया दांव कुर्मी समाज का ही एक बड़ा तबका स्वीकारने के पक्ष में नहीं दिख रहा।

यहां पिछले तीन बार से दर्जनों दावेदारों को निराशा हाथ लगी है। जिस कारण उनके समर्थक कुर्मी मतदाता सबक सिखाने की फिराक में है। यही वजह है कि परिवर्तन का माहौल अन्य जातियों के साथ साथ कुर्मी समाज के वोटरों में भी है, जिसकी आवाज़ गांव गांव से आ रही है।

बहरहाल हाल के कुछ वर्षों में सुशासन बाबू एवं उनके अफसरों के गलत फैसलों से जनहित के कार्य मे गिरावट आई है और रिमोट छाप कौशलेंद्र कुमार के प्रति सामाजिक विद्रोह की स्थिति नालन्दा के राजनीतिक गलियारों ने उतपन्न कर दी है, जिसे पाटना नामुमकिन सा दिख रहा है।

जाहिर है कि इसका सीधा लाभ महागठबंधन के उम्मीदवार अशोक आज़ाद को सीधे मिलता दिख रहा है, जिसमें नीतीश के स्वजातीय वोटरों के साथ समाज के सभी वर्ग की महत्वपूर्ण भूमिका है।

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